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Pradosh Vrat Katha

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Lời bài hát: Pradosh Vrat Katha

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

हम प्रदोष व्रत की आज भगतों कथा सुनाते हैं,
पावन कथा सुनाते हैं,
इस व्रत में शिव गोरा दोनों पूझे जाते हैं,
हम कथा सुनाते हैं,
हम प्रदोष व्रत की आज भगतों कथा सुनाते हैं,
पावन कथा सुनाते हैं,
इस वरत में शिव गौरा दोनों पूजे जाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये
प्रदोष वरत है महार
कर शिव शंकर कल्यार
ये प्रदोष वरत है महार
प्रतेक मां में जैसे दो इकादशिया होती
वैसे ही दो प्रदोष वरत की तिथिया भी होती
हिंदु धर्म में इकादशी दिन हरी को ध्याते हैं
वैसे ही प्रदोष वरत में शिव गुण गाते हैं
चन्द्र दोश इस वुरत को करने से मिट जाता है
वरत के पुन से जीवन का हर पल हर शाता है
जो भी भक्त इस वरत को निष्ठा से निभाते हैं
भोले नात जी भगतों पर किरपा बरसाते हैं
क्या है विधी इस व्रत की भगतों आच बताते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
इस व्रत में शिव गोरा, दोनों पूजे जाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये
प्रदोष व्रत है महान
करि शिवशंक्र कल्याढ
प्रदोश वरत के दिन सुबहां को जल्दी उठना चाहिए
अमरत वेला में भगतों इस नान को करना चाहिए
पूजा अस्थल की सुबहें को कर ले घर की साफ सफाई
गाए के गोपर से मंडप की करते फिर लिपाई
श्वेत वस्त्रों को भगतों फिर धारन हम करते हैं
पाँच रंगो की रंगोली से मंडप बनते हैं
श्वेत पुष्प और चंदन श्वेत गृत से थाल सजाते हैं
श्वेत मिठाई बेल पत्र धर्तूरा भांग मंगाते हैं
भूब वस्त्र सब चड़ा के गृत का दीप चलाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
इस व्रक्त में शिव गौरा दोनों पूजे जाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोष व्रत है महाण
कर शिव शंकर कल्याण
ये
प्रदोष व्रत है महाण
कर शिव शंकर कल्याण ये प्रदोष व्रत है
महाण कर शिव शंकर कल्याण ये प्रदोष व्रत है
महाण कर शिव शंकर कल्याण ये प्रदोष व्रत है
महाण कर शिव शंकर कल्याण ये प्रदोष व्रत है महाण
कर शिव शंकर कल्याण ये प्रदोष व्रत है महाण कर शि�
शंकर कल्याण
ये प्रदोष व्रत है महाण
एक नगर में एक पुजारी का रहता परिवार
मांग मांग कर पेट ते भरते
चाहे हो कोई वार
पता नहीं है मित्तु समे जाने कब आ जाए
मो माया के चलते मानव इसको न जान पाए
इस व्रत में शिव गउरा दोनो पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
एक बार भी
धर्वदेश का
राजकुमार आया
छीन लिया
दुष्टों ने राद और उसको भगाया
पिता की मित्यू के बाद वो भटक रहा दरदर
तो फिर मिला है वो आकर
बेक दशा पुजारिन उसको अपने घर लाई अपने पुत्र के जैसा
उसको भी है अपनाई दोन सुतों को लेके पुजारिन दिशी
आश्रम आई शानदिल रिशी ने प्रदोष वरद की कथा बतिलाई
क्या है वरद की विधी वो रिशी वर सब समझाते हैं पावन कथा सुनाते
हैं इस वरद में शिव गोरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोष वरद है महाण कर शिव शंकर कल्यान
ये प्रदोष वरद है महाण
कर जाते हैं प्रदोष वरद को पिर तो पुजारन जी अपनाई
है एक दिन दोनों पुत्र तो वन में घूमन जाते हैं
वहाँ से लेकर शाम तलक वही वक्त बिताते हैं
पुत्र पुजारी का लोटकर घर आ जाता हैं
किन्टू राजा का पुत्र वही वन में रह जाता हैं
गंधर्व कन्या अन्शूमती को उसने वहाँ पाया
करने लगा
बाते वो घर
देरी से फिर आया
कुमार दूसर दिन भी वही पे जाते हैं पावन कथा सुनाते हैं इस
व्रत में शिव गोरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोष व्रत है महार कर शिव शंकर कल्यार
कर शिव शंकर कल्यार ये प्रदोष व्रत है महार
देश के राजा की संकान राज कुमार हो तुम तुमारा धर्म गुप्त है ना
फिर तो धर्म गुप्त मात पिता के मन है भाया
मेरी सुतासे कर लो शादी उसको बतलाया
शिव कुरपा से दोनों की शादी है करवाई
धर्म गुप्त को पाकर अन्शूमती है हर शाई
राज कुमार सेना लेके विधर्प जाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
इस वृत में शिव गौरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
प्रेम
पूर्वक राज राज पर करने लगता है
एक दिन धर्म गुप्त पुजारिन के घर आया है
आदर और सम्मान से महल में उनको लाया है
फिर तो पुजारिन की दर्ता सारी दूर हुई
प्रदोष वृत के पुण से सारी मन्शा पूर्ण हुई
किया वर्त था सबने वो सब ही सुख पाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
इस वृत में शिव गौरा दोनों पूजे जाते हैं
कथा सुनाते हैं
ये प्रदोष वर्त है महान
कर
शिवशंकर कल्यान
कर शिवशंकर कल्यान
ये प्रदोष वर्त
है महान
कौन पुजारिन है ये उसने पती से प्रश्न किया
धर्म गुप्त ने अन्शूमती को सब बतलाया है पिता
की मिठ्यों कैसे हुई वो द्रिश्य बताया है
धरधर भटका ये
पुजारिन बनी सहाई थी
जनम दात्र के बाद से ये तो मेरी माई थी
फिर प्रदोष वर्त की विदि रिशीवर से पाई
थी हम सब ने प्रदोष वर्त की विदि अपनाई थी
करी कृपा भोलेने फिर तो राज को पाते हैं पावन कथां सुनाते हैं
इस वर्त में शिव गोरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथां सुनाते हैं
ये
प्रदोष वर्त है महाँ करिशिव शंकर कल्याण करिशिव शंकर कल्याण ये
प्रदोष वर्थ है महाँ
वरनाीयekk रिजार गंगा चींगा कंगा श्वेवळ शुरूदवारचा sacred pani viraas
ने ख्याती पाई है।
अन्शूमती ने प्रदोष व्रत की विधी अपनाई है।
इस्त्री और पुर्ष दोनों ही रख सकते उपवास।
फलदाई और उत्तम व्रत ये व्रतों में है खास।
इस व्रत को करने से रोग दोश ना आते हैं।
उनने से क्रहे दोश भी तो मिट जाते हैं।
शिव की दयास मानव भक्तों मोक्ष को
पाता है।
एक नजर के रपा की हो नरभव तर जाता है।
शिव ही सुन्दर सुंदर लीला सबको दिखाते हैं।
पावन कता सुनाते हैं।
ये
प्रदोश भत है महान समकर
खळ्याण कर।
प्रदोशवरत का
महत्त जीवन में सुखदाई है
त्री और पुर्ष दोनों को अतिफल दाई हैं
त्रियोधशी तितिप्रदोशवरत चो शिव को
समर्पित हैं
शिव के संग मा गौरा को भाव ये अर्पित हैं
बृजवासी ने आज ये गाथा गाके सुनाई है
मुनेंड्र प्रेम जी सुमिर शारदा कलम चलाई है
प्रेमतने शिव सुन्दर सत्य हैं ये बतलाते हैं पावन कथा सुनाते
हैं इस वरत में शिव गौरा दोनों पूजे जाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये प्रदोष वरत है महार कर शिव शंकर कल्याण
कर शिव शंकर कल्याण ये प्रदोष वरत है महार

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