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Parshuram Bhagwan Ki Katha

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Lời bài hát: Parshuram Bhagwan Ki Katha

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

हम परशुराम भगवान की भक्तों कता सुनाते हैं
पावन कता सुनाते हैं
परशुराम विश्णू के छटवे रूप कहाते हैं
हम परशुराम भगवान की भक्तों कता सुनाते हैं पावन कता सुनाते
हैं परशुराम विश्णू के छटवे रूप कहाते हैं हम कभाई आते हैं
भुह मांगा वरदार
सत्यवती रीतीक की पत्नी भक्तों कहलाई
विश्वामित्र की बहिन सुताये गाधी की बतलाई
सत्यवती रीटीक लाल जमदगिन कहाते हैं
पत्नी रेनुक के गर्ब से पुत्र ये पाते हैं
नारायन अवतार लिये भिगपुल में आए हैं
मात पिताने पुत्र को पाकर जश्न मनाए हैं
वेशाक शुकल के तुतिय दिवस का था वो प्रतं पहल
प्रदोश काल के फुनर वसूनक शक्त्र का था वो पहल
अब आगे इनकी जीवन की गाता गाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशुराम विश्ण के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महान सब सुनो लगा के ध्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह मांगा वरदान
वैसे तो कईं जगा पे बतलाए है जन्मिस्थान
आगे हम बतलाते कहां से पाए परशु ज्ञान
दादर चीजम दगनी ने शास्त्र पढ़ाए हैं
शिवजी और विश्वा मित्र ने युद्ध सिखाए हैं
योदवेद और निती में परशु पिर्तों ने पुन हुए
महरिश्व विश्वा मित्र कीख के ये तोरिणी हुए
ब्रह्म आस्र और दिव्यास्र भी तप से पाए हैं
लाखो शिष्च त्रेता द्वापर तक बनाए हैं धीमकर्ण और
द्रोणाचार्य भी शिष्च कहाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशु राम विश्णों के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
सब सुनो लगाखे ध्यान इस कथा की है पहचान मिले मोह मांगा वरदान
मात पिता की पाँचव ये संतान कहाए हैं
चार बड़े थे ध्राता आप तो चोटे कहाए हैं
एक समय मारेण काक स्नान आती हैं गंधर्व
राज को देख स्वयम को रोक न पाती हैं
जान विकार जमदगनी फिर त्रोध में आए हैं
रुक्मवान सुशेनु वासु विश्ववशु आए हैं
जमदगनी ने रेन कवद आधेश दैशा देना है
चार सुतोने मारने को नाकदं बढ़ाया हैं
चार सुतोनी अमारों की नापान पावण कृत खदा देना हैं
पर्शुरम विश्ववशु के खड़ा मुझे तक distination करते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है पड़ी महान
सब सुनो लगा के ध्यान
इस कथा की है पहचान
मिले मुह वाँगा वरदान
तब ही वहाँ पर पर्शुराम फिर तो आ जाते हैं
पिता के कहने पर माता का शीश उडाते हैं
देख काज वो पर्शुराम के रिशिवर हुए प्रसन
क्या वर चाहते हो बेटा तुम बोले जमदगनी
मा को जीवित शाप मुक्त मेरे भ्राता अब कर
दो भूले स्मृति सारे ही मुझे अजेक अब वर दो
फैलि समाज में अवधारना आज मिचाते हैं
शत्री भीहिन न हुई था धर्ती सच बतलाते हैं
एया वन्शी राजा का इतिहास बताते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशुराम विश्णों के छट में रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महार सब सुनो लगा के ध्यार
इस कथा की है पहचार मिले मुह वांगा वरदार
युद्ध के दो थे कारण जो हम आज बताते हैं
काम धेन है पहला दूजारेन का बताते हैं
परशुराम के समय बड़ाता है या अत्याचार
करन सफाया दुश्टों का परशु हो गए तयार
है या वंशी राजर शी मुनी को सताता था
करता था अपमान यग्य विदवंश कराता था
जम्दगणी के पास में राजा के सुत आये हैं
मार दिया परशु के पिता को गाए चुराए हैं
सती हुई पत संगरेण का वेद बताते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशु राम विश्ण के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
इस कथा है बड़ी महाद चब सुनो लगा के ज्याद
इस कथा की है पहचाद मिले मुह मांगा वरदाद
इस घटना से परशु राम फिर क्रोधित बड़े हुए
है ये वंश का नास करूँगा फिर तंकलप लिये
परशु राम ने फिर तो 36 बार युद्ध किया
हे या वंश के वंश जो काफिर है सफाया किया
तब से ही ये कुछ लोगों ने ये भंपहैलाया है
36 बार धरा को ख़त्रिविहीन बनाया है
हे या वंश का राज महस्मति को बताया है
आज के युग में भक्तों जो मेहश्वर कहलाया
पर्शुराम भारगव संगथन करने लग जाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
पर्शुराम विश्णु के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
इस कथा है बड़ी महान सब सुनो लगा के ध्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह मांगा वरदान
तालिश आयुद्ध दिव को रत को पाए हैं शिव
के फरसे को भी अभी मंत्रित कराए हैं
करक तयारी महिश्मती नगरी को घेर लिया है
या वश्च का क्रोध में आकर है फिर नाश किया
चारो युग में परशुराम जी जाने जाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशुराम विश्णु के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
कथा है पड़ी महाण सब सुनो लगा के ज्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह मांगा वरदान
सत्युग में शिवधर्शन को जब परशुराम आये
द्वार पे गौरी पुत्र गनेश को भगवन थे पाए
परस प्रहार से श्री गनेश का दान्त थकाट दिया
एक दंत गनपती को फिर है नय नाम दिया
जनक और दशलत का त्रेता में सम्मान किया
सीता सोयंबर में राम का था सम्मान किया
द्वापर युग में सभाबीच कृष्णा का मान बढ़ाया
श्री कृष्ण को दिया सुदर्शन और सम्मान को पाया
भिश्म द्रोण और कर्ण शस्त्र विद्व्या सिखाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
पर्शुराम विश्ण के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महार सब सुनो लगा के ध्यार
इस कथा की है पहचार दिले मुह मांगा वरदार
तप के कारण विश्णू ने ता दिया इने वरदार
चिरन जीवी हो आप तो भगवन कहते वेद पुराण
विश्णू के अवतार कलकी को ज्यान सिखाओगे
अस्त्र सस्त्र भी दोगे विध्या मार्ग दिखाोगे
महेंद्रगिर परवत पर आज भी तप करते हो तुम
पौराण एक गाथा को सुनकर जो कहते हैं हम
अधिकारी ने पर्शुराम की कथा सुनाई है
मुनेंद्रप्रेम जिसु मिर्शारदा कलम चलाई है
प्रेमतन भगवान पर्शु कोशीश नवाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं पर्शुराम विश्णों
के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महान सब सुनो लगाके ध्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह मांगा वरदान

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