हम परशुराम भगवान की भक्तों कता सुनाते हैं
पावन कता सुनाते हैं
परशुराम विश्णू के छटवे रूप कहाते हैं
हम परशुराम भगवान की भक्तों कता सुनाते हैं पावन कता सुनाते
हैं परशुराम विश्णू के छटवे रूप कहाते हैं हम कभाई आते हैं
भुह मांगा वरदार
सत्यवती रीतीक की पत्नी भक्तों कहलाई
विश्वामित्र की बहिन सुताये गाधी की बतलाई
सत्यवती रीटीक लाल जमदगिन कहाते हैं
पत्नी रेनुक के गर्ब से पुत्र ये पाते हैं
नारायन अवतार लिये भिगपुल में आए हैं
मात पिताने पुत्र को पाकर जश्न मनाए हैं
वेशाक शुकल के तुतिय दिवस का था वो प्रतं पहल
प्रदोश काल के फुनर वसूनक शक्त्र का था वो पहल
अब आगे इनकी जीवन की गाता गाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशुराम विश्ण के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महान सब सुनो लगा के ध्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह मांगा वरदान
वैसे तो कईं जगा पे बतलाए है जन्मिस्थान
आगे हम बतलाते कहां से पाए परशु ज्ञान
दादर चीजम दगनी ने शास्त्र पढ़ाए हैं
शिवजी और विश्वा मित्र ने युद्ध सिखाए हैं
योदवेद और निती में परशु पिर्तों ने पुन हुए
महरिश्व विश्वा मित्र कीख के ये तोरिणी हुए
ब्रह्म आस्र और दिव्यास्र भी तप से पाए हैं
लाखो शिष्च त्रेता द्वापर तक बनाए हैं धीमकर्ण और
द्रोणाचार्य भी शिष्च कहाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशु राम विश्णों के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
सब सुनो लगाखे ध्यान इस कथा की है पहचान मिले मोह मांगा वरदान
मात पिता की पाँचव ये संतान कहाए हैं
चार बड़े थे ध्राता आप तो चोटे कहाए हैं
एक समय मारेण काक स्नान आती हैं गंधर्व
राज को देख स्वयम को रोक न पाती हैं
जान विकार जमदगनी फिर त्रोध में आए हैं
रुक्मवान सुशेनु वासु विश्ववशु आए हैं
जमदगनी ने रेन कवद आधेश दैशा देना है
चार सुतोने मारने को नाकदं बढ़ाया हैं
चार सुतोनी अमारों की नापान पावण कृत खदा देना हैं
पर्शुरम विश्ववशु के खड़ा मुझे तक distination करते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है पड़ी महान
सब सुनो लगा के ध्यान
इस कथा की है पहचान
मिले मुह वाँगा वरदान
तब ही वहाँ पर पर्शुराम फिर तो आ जाते हैं
पिता के कहने पर माता का शीश उडाते हैं
देख काज वो पर्शुराम के रिशिवर हुए प्रसन
क्या वर चाहते हो बेटा तुम बोले जमदगनी
मा को जीवित शाप मुक्त मेरे भ्राता अब कर
दो भूले स्मृति सारे ही मुझे अजेक अब वर दो
फैलि समाज में अवधारना आज मिचाते हैं
शत्री भीहिन न हुई था धर्ती सच बतलाते हैं
एया वन्शी राजा का इतिहास बताते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशुराम विश्णों के छट में रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महार सब सुनो लगा के ध्यार
इस कथा की है पहचार मिले मुह वांगा वरदार
युद्ध के दो थे कारण जो हम आज बताते हैं
काम धेन है पहला दूजारेन का बताते हैं
परशुराम के समय बड़ाता है या अत्याचार
करन सफाया दुश्टों का परशु हो गए तयार
है या वंशी राजर शी मुनी को सताता था
करता था अपमान यग्य विदवंश कराता था
जम्दगणी के पास में राजा के सुत आये हैं
मार दिया परशु के पिता को गाए चुराए हैं
सती हुई पत संगरेण का वेद बताते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशु राम विश्ण के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
इस कथा है बड़ी महाद चब सुनो लगा के ज्याद
इस कथा की है पहचाद मिले मुह मांगा वरदाद
इस घटना से परशु राम फिर क्रोधित बड़े हुए
है ये वंश का नास करूँगा फिर तंकलप लिये
परशु राम ने फिर तो 36 बार युद्ध किया
हे या वंश के वंश जो काफिर है सफाया किया
तब से ही ये कुछ लोगों ने ये भंपहैलाया है
36 बार धरा को ख़त्रिविहीन बनाया है
हे या वंश का राज महस्मति को बताया है
आज के युग में भक्तों जो मेहश्वर कहलाया
पर्शुराम भारगव संगथन करने लग जाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
पर्शुराम विश्णु के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
इस कथा है बड़ी महान सब सुनो लगा के ध्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह मांगा वरदान
तालिश आयुद्ध दिव को रत को पाए हैं शिव
के फरसे को भी अभी मंत्रित कराए हैं
करक तयारी महिश्मती नगरी को घेर लिया है
या वश्च का क्रोध में आकर है फिर नाश किया
चारो युग में परशुराम जी जाने जाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
परशुराम विश्णु के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
कथा है पड़ी महाण सब सुनो लगा के ज्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह मांगा वरदान
सत्युग में शिवधर्शन को जब परशुराम आये
द्वार पे गौरी पुत्र गनेश को भगवन थे पाए
परस प्रहार से श्री गनेश का दान्त थकाट दिया
एक दंत गनपती को फिर है नय नाम दिया
जनक और दशलत का त्रेता में सम्मान किया
सीता सोयंबर में राम का था सम्मान किया
द्वापर युग में सभाबीच कृष्णा का मान बढ़ाया
श्री कृष्ण को दिया सुदर्शन और सम्मान को पाया
भिश्म द्रोण और कर्ण शस्त्र विद्व्या सिखाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
पर्शुराम विश्ण के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महार सब सुनो लगा के ध्यार
इस कथा की है पहचार दिले मुह मांगा वरदार
तप के कारण विश्णू ने ता दिया इने वरदार
चिरन जीवी हो आप तो भगवन कहते वेद पुराण
विश्णू के अवतार कलकी को ज्यान सिखाओगे
अस्त्र सस्त्र भी दोगे विध्या मार्ग दिखाोगे
महेंद्रगिर परवत पर आज भी तप करते हो तुम
पौराण एक गाथा को सुनकर जो कहते हैं हम
अधिकारी ने पर्शुराम की कथा सुनाई है
मुनेंद्रप्रेम जिसु मिर्शारदा कलम चलाई है
प्रेमतन भगवान पर्शु कोशीश नवाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं पर्शुराम विश्णों
के छटवे रूप कहाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महान सब सुनो लगाके ध्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह मांगा वरदान
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