यह पुढ़वा खली पालो गंगे लेखनी हो
परहेले धीर धीर बूनी
परहेले धीर धीर बूनी
काधा यमुना तद परखे रहने बकुरीया
परहेले धीर धीर
काधा यमुना तद परखे रहने बकुरीया
परहेले धीर धीर
संगे ताल बजेता हैं, मैं फूर बूजाता हूँ
अरे कितना निका काम धाव कुन रुबेन हो
अरे उदर बासुरी तरकार का बज़र नात में
कितना भोजन करती भोजनीया छोड के डबरली
अक्हो नधोवें,
कितना पती का सेज लगावती चोड के डबरली
कितना लरीका पीआवती लरीका वें के पालने पने टाइंगे डबरली
अरे कोई खाती, कोई पीती थी
भाईया,
आवाज लगावाज
कोई खाती, कोई पीती थी
जब प्रभु नहीं मिलन,
तो वह तरह हो,
कि पारदेश गईल हो, दरह से सुना,
कि पारदेश गईल हो मरो सजन वाना
एब भीया लगनी,
जब नहीं मिलन,
तो दस्ह करहल,
कि तरह सस्याम भीना,
तरह सस्याम भीना भी रही नजरीयाना
यहाँ भाव सुना है,
कि मोर सोर ना मचावे,
कोईल डाली ना ही गावे
एक लाइन में,
कभी जी फूल का नाम देलें,
कि गोपीयन के दस्हा करहल,
कितना परिशान भगवान बदेलें
भिंग सोए नहीं,
पाली की से जरीयाना
लेके उधो येले पाती, जो है गोपी धर्क चाटी
गोपीयन के कहनां भरहल,
कि जबले ना यही है कनहाई,
देवा प्राये भी सराई
मन
सताई घन,
घेरी के बदर्याना
मुट ताई घन, घेरी के बदर्याना
कब मुसाफिर बजी है मोहनी बसूरीयाना
कब
मुसाफिर बजी है मोहनी बसूरीयाना
भरहल, कि जियार चकोर भैला सज़ानी,
तो भात हुए हो,
कि तर सच्याम भी न भी रही न जहरीयाना
तर सच्याम भी न भी रही न जहरीयाना