काम करके घर का सारा घर से वो निकल पड़ीपैर चूए पापा के वो बोले है अकल बड़ीकांदे पे था टांगा बसता रस्ते पे वो चल पड़ीचेहरा खिल रहा था उसका टूटी थी चपल पड़ीउमर दस थी उसकी ओर थी कक्षे उसकी साथवीजुबा थी इतनी मीटी जैसे गुर की थी वो चासनीदिल की भी थी साप सारे दोस्तों में खास थीचीज लेती पाँच की चार दोस्तों में बांट थीतोप थी कलास में वो स्कूल की भी शान थीऐसी कोई टीचर ना थी जो उसे न जानतीलड़के जो सकूल के थे भाईया उनको मानतीजो होने वाला पाप था उस बात से अंजानतीछुटी होते बैग लेके स्कूल से वो चल पड़ीदेख के अकेला उस पे लड़कों की नजर पड़ीदर्द बोच वैशी उसको ले गए थे खेत मेंनना सा वो फूल तूटा मिल गया फिर रेत मेंआजकल मैं अपनी ही नजर को समबालताघर में बेटी मेरे भी बस मन में ये खियाल थाआजकल मैं दिल से अपने दर्दों को निकालतापापी मन मेरा भी है बस मन में ये सवाल थाआजकल मैं अपनी ही नजरों को संभालताघर में बेटी मेरे भी बस मन में ये खयाल थाआजकल मैं दिल से अपने दर्दों को निकालतापापी मन मेरा भी है बस मन में ये सवाल थाये भी ना पता था उसके साथ ये क्या हो रहाये तो हस रहे है दर्द मुझको पर क्यों हो रहागलती क्या थी मेरी पूछती रही खुदा से वोसुनके ये सवाल उसका खुद खुदा भी रो रहासारे कपड़े गंदे उसके खून में वो लगपतीजिसम सांसे ले रहा था रूथी कब की मर चुकीनजरे ना मिला पाया कोई मर्द उसकी लास सेगलती इतनी सी थी उसकी क्योंकि ना वो मर्द थीलोयालिटी है कून में तभी तो आज जिन्दा मैंदिल पत्र का जो होता तो बन ही जाता धरिंदा मैंनोच के चला गया वो घर से उसकी बेटी कोआज कल मैं अपनी ही नजरों को संभालताघर में बेटी मेरे भी बस मन में ये खयाल थाआज कल मैं दिल से अपने दर्दों को निकालतापापी मन मेरा भी है बस मन में ये सवाल था