जै जै ओंकारे श्वर्षंकर बोले त्रिपुरारी
जो तिरलिंग स्वरूप है पावन जै भव भयाहारी
ओ हर हर हर महाने
जै जै ओंकारे श्वर्षंकर बोले त्रिपुरारी
मान धाता परवत पे शोभित मंदिर है अनुपम
ओ प्रभु मंदिर है अनुपम
मान अर्मदा चरणों में
करती है जल अरपम
ओ हर हर हर महाने
चौसर खेले पारवती संग यहाँ पे गंगधारी
तीवी ओ प्रभु यहाँ पे गंगधारी
चौसर खेले पारवती संग यहाँ पे गंगधारी
खेल से चल रही जिनके खेल से चल रही है ये सिष्टि सारी हो हर हर हर महादेश
ओमकारेश्वर और ममलेश्वर दोनों है एक रूप
ओमकार का रूप स्वयंभू
ओमकार का रूप स्वयंभू
शिव साख्षात अनूप
हो हर हर हर महादेश
ओमकारेश्वर शिव स्वरूप का जो भी ध्यान धरे
प्रभु जो भी ध्यान धरे
सभी काम ना पूरी हो
उसका सब मान करे
हो हर हर हर महादेश
सुबह शाम जो करे आरतीश
भाग जगे उसका
ओ प्रभु भाग जगे उसका
मान सम्मान मिले उसे
मान सम्मान मिले
लुख दर्द मिटे उसका
हो हर हर हर महादेश
जै जै ओमकारेश्वर
शंकर बोले तिपुरारी
जो तिरलिंग स्वरूप है पावन
जै भव भयहारी
ओम हर हर हर महादेश
ओम हर हर हर महादेश
ओम हर हर हर महादेश
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật