जो तिर लिंग स्वरूप है, मूल शीव शंभो, देवों में महादेव है, गौरिनाथ प्रभो
ओम ओम
होती है यह परम क्यान की, नील कंठ करुणा निधान की
सवराष्ट सोमनाथ प्रथम है, सागर जिन को करता न मन है
चंद्र देव ने करी स्थापना, हैरिक वेद में बड़ी नामना
तूटा था पर आज अखंड है, किरती जिसकी
जग में प्रचंड है
दक्षिन का कैलास धाम है, मले कार्जुन द्वितिया नाम है
कृष्णा नदी के निर्मल तट पर, आसिन है श्री शैल पे शंकर
मले कार्जुन का गुण कार्जुन है
अश्वमेध का फल वो पावे
त्रीतिय नाम महा कालेश्वर, उज्जैनी बसे काल के ईश्वर
शिप्रा तट पर दक्षिन मूखी, पीठ है यहां श्री महा शक्ति की
ग्रंथ हमें देते यह ज्ञान है, पृत्वी का यह मध्यस्थान है
नाम चतुर्थ है ओम कारेश्वर, ममलेश्वर है नर्मदा तट पर
बोधिक रूप में शिव है रहते, तैतिस कोटी देवता भजते
बक्त जों कारेश्वर आवे, अडि सठती रहते
रथ का फल पावे, बैद्यनाथ है पंचम पूजित
त्रेता में रावन कर स्थापित, कामनालिंग ये सिद्ध पीठ है
महिमा इसकी सदा अमित है, शिव रात्री में शोभान्यारी
बाबा दूर करे बिमारी
भीमा शंकर नाम है शश्टम, श्रदा और विश्वास का संकम
बैठे सहयात्री परबत पर, रीजे भागतों पे शिव शंकर
चोतर लिंग ये बहुत बड़ा है, श्री मोटेश्वर नाम पड़ा है
राम प्रभू ने पूजे शंकर, धाम हुआ सप्तम रामेश्वर
दर्स करे लाखों नरनारी, रामेश्वर की महिमा भारी
सागर संगम पर है सुशोबुत, शंभुवर देते मनवाँचित
द्वारिका नगरी में दारुक वन, श्री नागेश्वर नाम है अश्कम
दारुक नामुक दैत्य कुमारा, सुप्रिया को शिव ने उपारा
नागेश्वर को जो भी ध्याए, सब कश्टों से मुख्यी पाए
काशी नगरी प्राच्छा,
जिनतम है विश्वनाथमा, देवनवम है
गंगा तट पर शिव की स्थापना, सकल स्रिष्टी में फैली नामना
शिव भक्ती से वाग बदलता, काशी में जिव मुख्यी पाता
तीन रुपों में शिव है समाए, त्रंप केश्वर दसम कहाए
नासिक में गोदावरी सरिता, कुम्ब का मेदा लगे पुनीता
कौतम रिशी के तप से प्रकटे, शंकर यहां त्रिनेत्र है धरते
के दारेश्वर एका दश है, कूच हिमाई
मालै में ये बसत है, बैल के रूप में शिव जी प्रकटे
पांडव के सब पाप है हरते, वासु की ताल कहो ता दर्शन
करती ब्रह्म कमल का सरजन
द्वादश नाम है श्रीवान
धूष्मेश्वर प्रकट भाए तालाब से शंकर
धूष्मा सुत को जीवित करते, जोली शिव खुशियों से भरते
लोक और परलोक सुधारे, जो हर हर महादेव उचारे
ओम रिशी स्वामी गुण गावे, जो तिरलिंग चाली सारा चावे
पाठ करे जो नित चाली सा, बरसे शिव की कृपा हमेशा
बार है जो तिरलिंग में, बसे है शम्भू स्वयम
नमह शिवाय के जाप से मुक्ति पाओ परम
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