उम जै जगदी शहरेनात जनों के संकतचेना में गूर करेउम जै जगदी शहरेजो जावे फल पावे दुख बिन से मन कासुख संपति घर आवेउम जै जगदी शहरेमात पिता तुम मेरे शरण पड़ूं किस कीउम बिन आउर न दूझा आस करूं जिस कीउम जै जगदी शहरेतुम हो एक अगूचर सब के प्राणपतीकिस विद मिलों दया मैंतुम को मैं तुमती उम जै जगदी शहरेदीन बंदू दुखा हर ताथापुर तुम मेरेअपने हाथ बढाओ द्वार पड़ा तेरेउम जै जगदी शहरेविशय विकार मिताओ पाप रो देवाशर्धा भक्ति बढाओसंतन की शेवा उम जै जगदी शहरेधन मन धन सब तेरा सब कुछ है तेरातेरा तुझ को अरपन या लागे मेराउम जै जगदी शहरेभक्त जनों के संकत शरमे दूर करेउम जै जगदी शहरेभक्त जनों के संकत शरमे दूर करेउम जै जगदी शहरेभक्त जनों के संकत शरमे दूर करेउम जै जगदी शहरे