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Bài hát narmada jayanti ki katha do ca sĩ Devesh Kundan thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat narmada jayanti ki katha - Devesh Kundan ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Narmada Jayanti Ki Katha chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Narmada Jayanti Ki Katha

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

प्रिये भक्त जनों जहां कंकड कंकड शंकर है
पहती जो अविरल धार है है पाप नाशनी मोक्षदायनी मात नर्मदा नाम है
प्रिये भक्त जनों आज हम माता नर्मदा की कथा का वर्णन करने जा रहे हैं
जिने जटाशंकरी रेवा शोना महा लदी कहा जाता है
हम मात नर्मदा की भक्तों तुम्हें कथा सुनाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
कैसे जनमी नर्मदमा हम ये बतलाते हैं हम कथा सुनाते हैं
मात नर्मदा की भक्तों तुम्हें कथा सुनाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
कैसे प्रकटी नर्मदमा हम ये बतलाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये गादारां बड़ी महायाँ सब सुनों लगाके जारों इस गादां के हैं कहचायाँ मिले मुहाबां वरगाल
प्रिये भक्त जनों वरदा प्रानदा जो रहेगी सरवदा
ऐसी है हमारी मान नरवदा
भक्त जनों माता गंगा से भी प्राचीन है मान नरवदा
सात कलप पूर्व से इस धरापर सतत अविरल धार बनकर प्रवाहित हो रही है मान नरवदा
प्रेम से बोलिए नरवदा मय्या की
असकंद पुरान में विशी मरकंडे जीबत लाते हैं
श्री विश्णू हर अवतार नरवदा को ध्याते हैं
नरवदा को ध्याते हैं
नर्म दमा की यक्ष नाग परिक्रमा लगाते हैं
सिद्ध महात्म सन्यासी तट ध्यान लगाते हैं
बड़ी विचित्र है जन्म कथा हम गाके तुम्हें सुनाए
सबसे पहले नर्म दमा को अपना शीश जुकाए
एक पुराणिक गाता शिव जी तप में लीन हुए
बीता बहुत समय है भक्तों अतितल लीन हुए
निकला तन से शिव के पसीना वेद बताते हैं
कैसे प्रकटी मानर मदहम ये
ये बतलाते हैं हम महिमा गाते हैं
ये गदारा मडी महालों सब सुनो लगाते जालों
इस गदार के परचालों मिलें वो माँगा भरगाल
प्रिये भक्त जनों नर्मदा मा को रेवा, चटा, शंकरी, तक्षिन, वाहिनी, गंगा, शोण, महानत आधी के नाम से भी जाना जाता है
प्रिये भक्त जनों माता नर्मदा को शिव की पुत्री भी कहा जाता है
जब मैखल परवत पर देवा दीदेव, महादेव, गहन तपस्या में लीन थे
तभी उनके पसीने की भूदों से माता नर्मदा का जन्म हुआ
शिव के पसीने से ही मा नर्मदा का जन्म हुआ
शिव गोले ने माता को है फिर वरदान दिया
आपके दर्शन करने मात्र से कस्ट नस्ट होंगे
पत्त आपके कभी नहीं फिर पत्थ ब्रस्ट होंगे
मैं कल परवत पर प्रकटी मा धरा पे आई है
मैं कल राज की पुत्री मा नर्मदा कहाई है
रिश मुनियोंने नर्मदमा को बहुत ही ध्याया है
पित्रों का पिंड दान राजाहीरन कराया है
राजाहीरन कराया है
नर्मदमा की दयास विश्वी नस्ट हो जाते है
विश्वी नस्ट हो जाते है
नर्मदमा के जनम की हम तो
गाथा गाते हैं हम गथा सुनाते हैं
ये गाथा रभडी महाल जब सुनो लगाते जाल
इस गथा के अपने चाल मिले वो माधा बरदा
ओम नमः शिवाई
प्रिय भक्त जनों राजा हिरन्न तेजा ने अपने पूर्वचों के उद्धार के लिए
चोदः हजार वर्षों तक कठिन तपस्चा की
और भगवान देवादी देव महादेव को प्रसन कर लिया
प्रसन कर लिया
वर्दान सुरूप नर्मदा जी को पृथ्वी पर लाने का आशिर्वाद माँगा
शिव शंकर से मात नर्मदा ने माँगा वर्दान
प्रले काल में भी न मिटेगा कभी मेरा ये नाम
चोदः हजार दिब्बी वर्स किया राजा ने तप घोर
हो के प्रसन शिव जी ने फिर तो ध्यान दिया उस ओर
राजा हिरन ने ही मात नर्मदा को धरा पिलाए है
राजा हिरन ने ही इस धर्ती को स्वर्ग बनाए है
मगर मच्च की करके सवारी माता चलती है
अमर कंटक से सबसे पहले मात गुजरती है
विपरीत दिशा में बहती माता सत्य बताते है
हम तो सत्य बताते है
कैसे जनमी माता नर्मदा ये बतलाते है
हम कथा सुनाते है
ये गांवान अमरी महान
आमरी महान
आमरी महान
प्रिये भक्त जलों सनातन धर्में अमर कंटक महत्व पुर्ण स्थान है
इसी पुन्नी भूमी में मा नर्मता का उद्गम मस्थल है
मा नर्मता को शांकरी भी कहा जाता है
मैकाल परवत पर उद्गम होने के कारण माता को मैकाल सुता भी कहा जाता है
जब यह परवतिय छेतर में भेहती हैं तो आवाज करती हुई जाती हैं
आता इन्हें रो भी कहा जाता है
मेकल व्यास ब्रिगू कपिल ने किया जहां तप ध्यान
अमर कंटक है बड़ा ही पावन भक्तों ये अस्थान
नर्म दमा का पहला पड़ा मंदला है बतलाया
उत्तर घाट पे सहस्त धारा को सुन्दर बतलाया
यहां के राजा सहस्त बाहू ने जल धारा रोकी
आगे को फिर चली नर्मदा भेड़ा घाट को होती
इस घाट पर वामन गंगा का है यहां संगम
सिंग नाद करमात नर्मदा करती है फिर गुञ्जन
यहां के राजा सहस्त धारा रोकी
आगे को फिर चली नर्मदा भेड़ा घाट को होती
इस घाट पर वामन गंगा का है यहां संगम
मुक्त हो मोक्ष को प्राप्त करता है
यहां का द्रिश है अती ही सुन्दर बड़ा मनोरम है
यहां से आगे चल कर आता जो नेमावर है
नेमावर में आकर माता करती है विश्राम
द्वापर काल का मंदिर सिधे स्वर जो अती महाम
इस अस्थान को ना भी नाम से जाना जाता है
यहां से आगे चल कर धायडि कुंड फिराता है
ओम कारेश्वर वराह कल्प में पावन बतलाया
मारकंडे रिशिका आश्टम वेदों ने बतलाया
मंडले श्वर महेश्वर आगे अस्थल आते हैं
हाँ अस्थल आते हैं
कैसे जन्मी मात नर्मदा ये बतलाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये घटार अमणी महाई
सब सुनो लगा के जान
इस घटा के एक पहचान
मिलें हो माँदा हर दिन
प्रिये भक्त जनों
नर्मदा नदी की कुल लंबाई
1312 किलो मीटर है
नदियों के पास हमारी सभ्यता
और संस्कृति का उद्गम अस्थल भी है
इन्ही कारणों से
नदी को मा की संज्ञा दी गई है
तो आईए भक्तों प्रेम से बोलिये
नर्मदा मैया की
आगे चल कर कुष रिश की नगरी है शुकलेश्वर
विश्वा मित्र गौतम रिश ने ध्याय है परमेश्वर
ध्याय है परमेश्वर
आगे चल कर बावन गजा में पार्शुनाथ अस्थान
मेघनाथ और कुम्ब करण की तप भूमी अस्थान
आगे चल कर शूल पाण को फिर हम पाते है
यहाँ से आगे गरुणेश्वर करणाली आते है
करणाली आते है
अन्सुय्या अस्थान जहाँ अन्सुय्या तप की इन्हा
तीनों देव ने आके यहाँ पर जन्म यहाँ लीना
आगे चल कर अंगारेश्वर अस्थल आते है
पावन कथा सुनाते है
कैसे जन्मी धर्मदमा हम ये बतलाते है
हम कथा सुनाते है
ये कथा रमणी महाल
सब सुनो लगाते जा
इस कथा के एक पहचाल
मिले मुहाँ आगा भर्गा
प्रिये भक्त जनों
शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कर ही
कूजने का विधान है
किन्तु नर्मदा नदी में जो भी पत्थर पाए जाते है
उनको प्राण प्रतिष्ठा की आवशक्ता नहीं होती
उसे जागृत शिवलिंग ही माना जाता है
यहाँ से चलकर नर्मदा फिर भड़ूच में आती है
मोक्ष दायनी नर्मदा मासागर में जाती है
इस अस्थल को भृगू तिर्थ भी सब बतलाते है
अश्वमेद यगदस की बलीन ये बतलाते है
ये बतलाते है
नर्मद जन तीके दिन गथा का जो करे रःस पान
गश्ट नश्ट हो जाते है
और मा करती कल्याण
और मा करती कल्याण
देवें स्कुञ्दन ने पावन ये गाथा गाई ही है
मुनिंद्र प्रेम जी सुमिर शार्दा कलम चलाई ही है
कलम चलाई ही है
प्रेमत ने मानर्मद की जैकार लगाते हैं
कैसे जन्मी मानर्मद हम ये बतलाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये कथा रवणी महाल जब सुनो लगाते जाओ
इस कथा के पहचाल मिले वो आगा बरदा
हुआ है

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