आजकल दिल मेरा कहीं लकता नहीं
बात उसके किये बिना रहता नहीं
है कोई हसीना मेरे ख्वाबों में
अब ख्वाबों में भी बस चलता नहीं
बेखबर सा मैं हो रहा हूँ
तेरी आदतों में खो रहा हूँ
अब बाते बस तेरी होती है
खुद का ना रहा तेरा हो रहा हूँ
ना जाने क्यूं?
ना जाने क्यूं?
जिंभिगी तेरे हवाल कर रास्ते वटक गए हैं
दूंडते रहे तुझे इन आदितों में अटक गए हैं
सिलसिला यही है रोजका तेरी और की चाथा हूँ
प्रत नहीं किसी सौक का तुझे सोच खो जाता हूँ
ना जाने क्यूं