तुम्हें देखूं तुम्हारे चाहनेवानों के महफिल में
महावबत की कसम इतनी काहता पर
मेरे देन में तुम्हें देखूं
मुबारक हो तुम्हें ये शाम ये हंगा महारारी
मुझे महसूस होती है भरे महफिल में तनहाई
भला कैसे मैं खो जाँँ किसी रंगीन महफिल में
महावबत की कसम इतनी काहता पर
मेरे देन में तुम्हें देखूं
उजाला तुम समझ बैठे हो चमकेले अंधेरे तुम
खुद अपना हमसफर तुमने बनाया है लुटेने को
तुम्हें लुटते हुए देखूं
तमनाओं के मंधिल में महावबत की कसम इतनी काहता पर
मेरे देन में तुम्हें देखूं
महावबत पूल है और पूल शोलों में नहीं किलता
जो दुफानों में घिर जाये उसे साहिल नहीं मिलता
खुशी से मैं भी अपना लूँ किसी दुफान को साहिल में
महावबत की कसम इतनी काहता पर
मेरे देन में तुम्हें देखूं
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