बैठा ब्रभु आकाश पे लेकर कल्म दवात
अरे कागद पर दिन रात वो सज लिखता रे सबकी बात
मेरे मालिक की दूकान पे है सबका खाता रे
कितना जित्वे भाग में होता वो उतना ही भाखा
मेरे मालिक की दूकान पे सबका खाता
कल जुगवालों सोनों पते की मैं इक बात सुनाता
मेरे मालिक की दूकान पे है सबका खाता
ਮੀਲੀ ਕੇ ਦੁਖਾਣ ਪੇ ਤੈ ਸਬਕਾ ਖਾਤਾ ਰੇ
ਇਤਨਾ ਦੀਪ ਕੇ ਭਾਗ ਮੀ ਹੋਤਾ ਵੋ ਉਦਨਾ ਲੀ ਭਾਤਾ
ਮੀਰ ਮੇਲੀ ਕੇ ਦੁਖਾਣ ਪੇ ਸਬਕਾ ਖਾਤਾ
नहीं चले उसके घर दिश्वत नहीं चले चालाकी
उसके अपने लेन देन की रीत बड़ी है बाकी
पुन्य कम्बेडा पार करे वो
पाप की नाओ दुबाता
मेरे मालिक की तूकान पे स्वैश्वा खाता था
गितना जिते भाग में होता वो उतना ही भाता
मेरे मालिक की तूकान पे स्वैश्वा खाता था
करता है इनसाब सभी का हरी आशन पर डटके
उसका फैसला कभी न पल्टे लाख कोई सर पटके
ब्ले बैलार्ग
समझदार को चुप रहता है, मूरक शोर मचाता, मेरे मालिक की खोकान पे तै तब खाता रे, कितना जित्से भाग्य होता वो उतना ये पाता, मेरे मालिक की खोकान पे तब खाता रे.
उजली करनी करो रे भैया, करम न कर यो काला, रे कोई करम न कर यो काला, देख रहा है लाक आख से तुम्हे देखने वाला.
अच्छी खेती करो चतुर्जन, समय बुजरता जाता, मेरे भालिक की खोकान पे तब खाता रे.
मेरे भालिक की खोकान पे तब खाता रे.