बलबला जी महराज की, बलनदरी के लाल की
अरे हनुमत प्यारे जलदी आरे, तन कहां लगा दैदेर संजीवन लियाए ना
अरे हनुमत प्यारे जलदी आरे, तन कहां लगा दैदेर संजीवन लियाए ना
अरे हनुमत प्यारे जलदी आरे, तन कहां लगा दैदेर संजीवन लियाए ना
अरे प्रान बचे ना लछ्मन के जब तक बूटी आवे ना
कुछ तो घबर दे ओ भाईया, राम को और रुलावे ना
कुछ तो घबर दे ओ भाईया, राम को और रुलावे ना
कुछ तो घबर दे ओ भाईया, राम को और रुलावे ना
बड़ा पूर जित है लछ्मन से ना रे सोग में है सारी
रो रो अखिया दूख गई हो गई कैसी लाचारी
चिलता चूट जिगर खारी रे चिलता चूट जिगर खारी
अब कद आओगे फेर संजीवन लियाए ना
हनु मत प्यारे जलदी आरे कहा लगा दैई देर संजीवन लियाए ना
अरे आवधपुरी में जा करके किसको मुझ दिखलाऊँ ना
माता पूछेगी सारी लच्छवन को कहा बताऊँ मा
आज में भी ब्राण खपाऊँ मा
यो होने लगी सबेर संजीवन लियाए ना
हनु मत प्यारे जलदी आरे कहा लगा दैई देर संजीवन लियाए ना
पलपल भारी होती जाने कुछ तो खबर देओ आंके
पलपल भारी होती जाने कुछ तो खबर देओ आंके
क्या संजीवन मिली नहीं बैठ गये मू तुब काके
नरेश चंद से लिखवा के
दियो मेट सब ही अंदेर संजीवन लियाए ना
अनुमत प्यारे जलदी आरे कहां लगा दै देर संजीवन लियाए ना
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