रात भर चांद से बातें की मैंने
तेरी आदों को सजाया है मैंने
हावा भी कह रही है घीरे से
तू जो गया
मैं कहाँ खो गया
मेरा था तू
ये दिल मनता नहीं
तुझ बिन कोई भी अपना लगता नही
बरसों की चाहत पल में चली गई
मेरी मुहबब तनहा रह गई
सुनती हैं दिवारे रोते हैं लम्हे
हर जगा तेरी ही बाते है
क्या तुझे भी कभी यादाता हूं मैं
या सिर्फ मैं ही
फिजाओं में हूं
काश एक पल के लिए लोट आए तु
मेरी बाहों में सिमत जाए तु
नित्ती की कुश्बू भी महके फिर से
तेरी आदों से जीलूं फिर से
मेरा था तु ये दिल मानता नहीं
तुझ बिन कोई भी
अपना लगता हूं