मीरा वाई ने उस भूद घर को भी महराज भगवान का घर बना दिया
गोपाल जी आ गए
विक्रम राणा को ये बात पता चली
कि मीरा ने वहाँ पे भी महराज भगवान का भजन शुरू कर दिया
तो उसी समय उसने एक अंतिम युक्ति सोची
कैसे में सों की sakle man
जो चर्णामरत से भरा हुआ था भूद घर में
ले जा कर के मीरा वाई के सामने जो रखा
तो मीरा की द्रश्टी पढ़ते ही मीरा ने जैसे ही उस कटोरे को देखा
बोले करमे पयाला देख करमे पयालो देख मीरा है अधीर नाची
करमे महराज उस पयाले को देख कर के मीरा अधीर हो गए
जो दासी लेकर के आई थी वो नाचने लगी कि अभी ये पीएगी और मर जाएगी
बोले नाच उठी दासी निजजीवन सफल जान और नाच उठी कुमती कराल भूपाल की
राजा की बुद्धी इसलिए नाच उठी कि अब ये काटा रास्ते का हड जाएगा
पुतली में नाच उठी मूरत गोपाल की
पुत्ति में लाच उठी मूरत गोपाल की
भरतने की बारेज़ी की परदियों गोपाल की चोटि शी गिरधर
की मूर्ती काली हो गयी और रोते हुए मीरा कहने लगी।
राना जी जहर दियो हम जानी
महराज पूरा का पूरा विष पी लिया लेकिन
उस विष से भी मीरा का कुछ नही विवा।
देख गटनाएं मीरा वाई के जीवन में इसी हुई.
और उसके बाद इन घटनाओं की चर्चा जब घर घर में पूरे देश में होने लगी,
दीरे दीरे मीरा वाई को लोगों ने पहचाना,
और उनके दर्शन के लिए आने लगे.
पर अन्त में मीरा वाई जो हैं वो द्वारिका में जा करके रहने लगी
और आखरी शमय में जब पुनह राजिस्थान की धर्ती से बुलावा आया,
तो मीरा ने कहा कि मैं बिना भगवान की इक्षा के यहां से जाओंगी नहीं,
द्वारिका धीश के शामने दोनों हाथ उठा
सरीर मीरा द्वारिका धीश में समा गई और साड़ी लिफटी रह गई,
बोलो द्वारिका धीश भगवान की जए,
सावरिया सेथ की जए