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Bài hát margashirsha masik shivratri vrat katha do ca sĩ Kanchan thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat margashirsha masik shivratri vrat katha - Kanchan ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Margashirsha Masik Shivratri Vrat Katha chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Margashirsha Masik Shivratri Vrat Katha

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

जया श्री कृष्णा राधे राधे
आज अपने सुनेंगे माशिक शिवरात्री वर्ध कथा
माशिक शिवरात्री भगवान सिव और शक्ती के संगम का विशेस परव माना जाता है
माशिक शिवरत्री का वर्थ हर महिने के क्रिशन पक्ष की चतुर दसी तिथी को रखा जाता है।
शिवरत्री का वर्थ रखने से मनुष्य की सारी मनो कामनाई पुर्ण होती है।
शिवरत्री का वर्थ बोलेशंकर को स्मर्पित है।
जो भी मनुश्य सच्छे मन से शिवरात्री का वर्थ करके भोले शंकर की और माता पारवती जी की पूजा करता है
तो उसकी सारी मनो कामनाई पूर्ण होती है
तो आईए अपने मंगल जीवन की कामना करते हुए अब अपनी सुनेंगे मासिख शिवरात्री वर्थ कैथा
वीडियो को ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें
बगवान भूले शंकर आपकी सारी मनो कामनाई पुरुण करें
सुनते हैं मासिक्सी वरातरी वर्थ कथा
बोलो भूले शंकर की जेहो
बोलो माता पारवती जी की जेहो
एक बहुती गरीब और अंधी बूडिमाई थी
उसका चोटा सा परिवार था
जिसमें उसका बेटा और एक बहु रहती थी
बूडिमाई की गनेश बगवान में बहुती शर्दा थी
वहें हमेशां गनेश ची की पूजा किया करती थी
तो एक रोज गनेश ची ने कहा कि बुड़ी माई कुछ तो माँग मैं तेरी पूजा से बहुत ही परसिन कुछ
तो बुड़ी माई गनेश ची की बात सुनकर कहने ले कि भगवान मुझे तो माँगना नहीं आता है मैं तुमसे क्या माँग
तो गनेश जी कहने लगे कि कोई बात नहीं आज तुम घर पर अपने बेटे बहु से पूछ कर आ जाना कल मैं भी राउंगा
तब मुझे बता देना कि तुम्हें क्या चाहिए
तो बुढिया ने कहा ठीक है और वो बड़ी ही खुशी खुशी अपने घर आई
घर आकर अपने बेटे से बोली कि बेटा आज मुझे परभु विनाईक बाबा ने स्व्यम दर्शन दिये है
और मुझे वरदान मांगने के लिए कहा है लेकिन मुझे तो पता ही नहीं कि मैं क्या मांगू
इसी लिए आज तुम ही मुझे बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए
गनेश जी बगवान तो कल फिर आएंगे
तो उसके बेटे ने कुछ देश सोचने विचारने के बाद में कहा कि मां धन दोलत मांगलो
तो बेटे की बात सुनने के बाद बुढिया अपनी बहु के पास गए और जाकर पूछा कि बहु अब तुम बताओ
तो सास की बात सुनकर बहु बोली कि माजी हमारी साधी को ना जाने कितना समय हो गया है
अभी तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई है आपको भी पोता चाहिए तो क्यों ना आप पोता मांगलो
तो बेटे और बहु की बात सुनकर बुढिया सोचने लगे कि ये दोनों तो अपने मतलब की चीज मांग रहे हैं
मैं अपनी पिरिय पड़ोसन से पूछकर आती हूँ वो मुझे सही राय देगी कि मुझे क्या मांगना है
तो यह सोचकर बुढि माई पड़ोसन से जाकर बोली कि मुझे तो बिना एक चिन्याज दर्शन दिये हैं और कहा है कि कोई वरदान मांग ले
तो मैंने तो अपने बेटे से पूछा तो कहता है कि धन मांग बहुने कहा कि पोता मांग ले
अब तुम मुझे बताओ कि मैं क्या करूँ
बेटा बहु तो अपने मतलब की बात कर रहे हैं
तो बुढिया की बात सुनकार उसकी पड़ोशन बोली
कि बुढिया ना तो तु धन माँ ना तु पोता माँ
तुम तो थोड़े ही दिन जीएगी
तु तेरी आँखे मांग ले जिसे तुम संसार को देखेगी
तो पड़ोशन की बात सुनकार बुढिया सोचने लगी
कि अगर मैं आँखे मांग लोगी तो संसार का क्या देखोगी
जब मेरे बेटे बहु की अलावा कुछ भी नहीं है
अगर पोते पोतियां होते तो मैं उन्हें अपनी आँखों से देखती
आँखों से देखने लाइक मेरे लिए तो कुछ भी नहीं है
यह सोचती सोचती बुढिया घर आ गई
सारी रात सोचने में ही विचार दी
सुबह जल्दी उठी नहा धो कर फिर वो गनेश्ची के मंदिर जली गई
और वहां बेठी मन में सोच रही थी
कि ऐसा क्या वर्दान माँगूं कि जिससे बेटा बहु भी खुश हो जाए
और मेरा मतलब भी सिद्ध हो जाए
इतनी ही देर में वहां पर गनेश्ची आ गई और बोले
कि बुड़ी माई आज कुछ मांग ले आज मैं भी राया हूँ
तो वह बोले कि हे गनेश्ची बगवान मैं आपको परणाम करती हूँ
मुझे तो और कुछ नहीं चाहिए
मुझे आँख दे जिसे सोने के कटोरे में पोते को दूद पीता हुआ देख सक और अंतकाल में मोक्ष दे
तब गनेश्ची बोले कि बुड़ी माई तूने तो मुझे ठग लिया
तुमने तो भोली बन कर सब कुछ मांग लिया
और मुस्कुराने लगे और कहा कि बुड़ी माई जैसा तुमने कहा है वैसा सब कुछ तुमें मिल जाएगा
यह कहे कर गनेश्ची वहां से अंतर ध्यान हो गए और बुड़ी माई को मांगे अनुसार सब कुछ मिल गया
हे गनेशी भगवान जैसा आपने बुड़ी माई को दिया वैसा सबको दिना और अपनी कृपा द्रश्टी हम सब पर बनाई रखना।
करजा ना चुकाने के कारण सहुकार को गुशा आ गया। एक दिन क्रोधित होकर सहुकार ने सिकारी को ले जाकर सिव मठ में बंदी बना दी।
लेकिन धीरे धीरे उस सिकारी का ध्यान उस पुजारी की तरफ गया जो सिव कथा सुना रहा था तो उसने भी ध्यान मगन होकर वो सारी कथा सुनी और सिव समंदी सारी धार्मिक बातें भी उसने बड़े ही ध्यान से सुनी।
चैतुर दशी को उसने सिवरात्री की वर्थ कथा भी इस तरहें सुन ली और ओम नमेश शिवाई के जाप भी उसने कर ली
जैसे ही साम हुई तो साहुकार वहाँ पर आया और उससे पूछा कि तू मिरा रिन कब चुकाईगा
तो सिकारी ने हाथ जोड़ कर कहा कि साहुकार जी मुझे आज तुम छोड़ दो मैं कल तुम्हारा सारा करजा शुका दूँगा
मैं आपको ये वचन देता हूँ तो ऐसा कहने पर साहुकार ने उसे छोड़ दिया और वहाँ वहाँ से छूटते ही जंगल की ओर चला गया
वहाँ तो अपनी दिन चर्या की बहानती जंगल में सिकार के लिए निगला था लेकिन दिन बार बंदी ग्रह में रहने के कार वहाँ भूप प्यास्ते व्याकुन था
सिकार खोजता रहा खोजता खोजता बहुत दूर निकल गया लेकिन उसे कोई सिकार नहीं मिला वहाँ बुरी त्रहें से ठक चुका था
जब अहंदेरा हो गया तो उसने विचार किया कि आज तो पूरी रात जंगल में ही बितानी पड़ी तो वहाँ ऐसा सोच कर वहीं जंगल में एक तलाव के किनारे एक बेल वरिश था उसी पर चड़ कर रात बितने का इंतजार करनी लगा
उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो बिलो पत्रों से ढखा हुआ था सिकारी को उस बात का पता नहीं था पड़ाओ बनाते समय उसने जो तहनिया काटी थी वो संयोग से शिवलिंग पर गिती चली गए
इस परकार दिन पर बुखे प्यासे सिकारी का वर्थ पूरा हो गया और शिवलिंग पर बेल पत्र भी चड़ गए
इस परकार दिन पर बुखे पर बेल पत्र भी चड़ गए
इस परकार दिन पर बेल पत्र भी चड़ गए
इस परकार दिन पर बेल पत्र भी चड़ गए
इस परकार दिन पर बेल पत्र भी चड़ गए
इस परकार दिन पर बेल पत्र भी चड़ गए
इस परकार दिन पर बेल पत्र भी चड़ गए
इस परकार दिन पर बेल पत्र भी चड़ गए
तो उसे देखते ही सिकारी ने सोचा कि मैं इसका सिकार तो अवश्य करूँगा
आज चाहे कुछ भी हो जाए इसे जीवित नहीं जाने दूँगा
तो जैसे ही सिकारी तीर छोड़ने वाला था
तो वह हिरन भी विनित सवर में कहने लगा
कि हे सिकारी यदि तुमने मुझसे पुरू आने वाले तीन हिरनियों को
और उसके छोटे छोटे बच्चों को मार डाला है
तो मुझे भी मारने में देरी मत करो
तुरंत मुझे मार दो
ताकि मुझे उनके वियोग में एक छण भी दुख ना सहना पड़े
मैं उन हिरनियों का पती हूँ और उन बच्चों का पिता हूँ
यदि तुमने उसे जीवन दान दिया है
तो मुझे भी कुछ छण का जीवन दान देने की किरपा करो
मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्तित हो जाओंगा
तो इस तरहे हिरन की बात सुनते ही
सिकारी के सामने पूरी रात का घटना जकर भूम गया
उसने सारी कथा हिरन को सुना दी
तब हिरन ने कहा कि मेरी तीनों बतनिया
जिस परकार पर्तिक्या बध हो कर गई है
मेरी मिर्त्यू से अपने धरम का पालन नहीं कर पाए
इसलिए हे सिकारी जैसे तुमने विश्वास पातर मान कर उनको छोड़ा है
वैसे मुझे भी जाने दो
मैं उन सब के साथ तुम्हारे सामने बहुत ही जल पर्स्तुत हो जाओंगा
मेरा भी विश्वास करो
तो सिकारी को ना चाहते हुए फिर से दया आ गए
सिकारी ने उसे भी जाने दिया
इस परकार सुबह हो गई
उपवास, रात्री का जागराण तथा सिवलिंग पर बेल पत्त चड़ने से
अनजाने में ही सिवरात्री की सारी पुजा संपन हो गई
इस तरहें सिकारी के सिवरात्री का वर्त और पूजन भली बांती पूर्ण हुआ
अन्जाने में हुई पूजा का फल सिकारी को ततकाल मिल गया
सिकारी का हिंसक हिर्द्य बगवान बोलेनाथ की किरपा से निर्मल हो गया
उसमें भगवत शक्ती का वास हो गया
थोड़ी ही देर बाद में वो देखता है कि वह हिरन सै परिवार सिकारी के सामने उपस्तित हो गया है
ताकि वह उनका सिकार कर सके
परंतु जंगली पस्वों की ऐसी सत्यता को देखकर सिकारी का हिरद्य फिंगल आया
उसे बड़ी ही सर्मिदगी में हेसूस हुई
कि जंगली जानवर होकर भी अपने वचन के कितनी सत्य है और कितनी प्रेम भावना है इन में
तो उसने पूरे हिरन परिवार को जीवन दान दे दिया
तो वह हिरन का परिवार बहुत ही खुश हुआ और खुशी-खुशी कुलान से मारता हुआ वहां से चला गया
तो इस तरहें अनजाने में हुए शिवरात्री के वर्थ का फल सीकारी को मिला
जिसके चलते वहे एक अच्छा आदमी बन गया
फिर वहे अपने जीवन के समस सुखों को भोगता हुआ अंत में शिवलोग को गया
बोलो भोले शंकर की जेहो, बोलो माता पार्वती जी की जेहो
तिरी सूत जी ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति सुन्नी, मनन और किर्तन के स्थान पर
शिवलिंग की स्थापना करके उसका पूजन करता है
तो भी वहे इस संसार रूपी सागर से मुक्ति पा जाता है
वे सभी कलाओं से युक्त है और साकार निराकार से ही शिव जी ब्रह्म संग्यक भी है
व्यक्ति शिव जी के साकार रूप और निराकार रूप दोनों को पूजते हैं
प्राचीन में जब बर्मा विश्णू के विवाद में उन्होंने शिवलिंग के रूप में परकट होकर दर्शन दिये थे
तबी से शिवलिंग इस संसार में पुजनिय हो गया था
इसकी पूजा करने से सबका कल्यान होता है और मुक्स की प्राप्ती होती है
कुराने समय की बात है कि बगवान विश्णू अपने पारसदों सही लक्षमी जी के साथ सेश सयया पर सयन कर रहे थे
तबी वहाँ पर पितामे बर्मा जी भी पहुंच गए और वहाँ जाकर विश्णू जी को संबोधन करके कहने लगे
कि हे पुत्तर तुम कौन हो उठो तुम मुझे देखो मैं तुम्हारा बगवान यहां आया हूं
विश्णू जी को यह सुनकर क्रोध आ गया और अपनी गुस्से को दबाते हुए कहने लगे
कि ये पुत्तर तुम्हारा कल्यान हो आओ बैठो देखो मैं तुम्हारा पिता हूँ
कहो तुम्हारा मुक टेड़ा क्यों हो गया है
तो ब्रह्मान जी कहने लेगे कि समय के फेर से तुम्हें गमण्ड हो गया है
हे पुतर मैं तुम्हारा स्वामी हूँ इस समस्थ संसार का पिता मैं हूँ
तो विश्णु जी कहने लगे कि अरे चोर तुम मुझे अपना बड़पन क्यों दिखाते हो
सारा संसार तो मुझे में निवास करता है तुम मेरी ही नाबी कमल से उत्पन हुए हो
और मुझे ही ऐसी बातें कर रहे हो यह सब तुम्हें सोबा नहीं देता
तो इस परकार ब्रह्मान जी और विश्णु जी में वाद विवाद बढ़ता गया
ये दोनों अपने को पर्बू कहते कहते आपस में युद्ध करने लगे
दोनों के परहारों से देवता व्याकुल होकर कांपनी लगे
और कहने लगे कि जब आप दोनों अराजक्ता उत्पन कर रहे हो
तो यह समस्रिष्टी भगवान सिव की है
उनके बिना तो इस स्रिष्टी का एक तिन का भी इदर से उधर नहीं हो सकता
अतै आप लड़ाई बंद करो
हम सारे सिव संकर के पास चलते हैं
इतना कहे कर सारे देवता वहाँ पहुंच गए
जहां महादेव जी पारवती जी के साथ सभा में
मनिम्य सिहासन पर विराजमान थे
तो देवताओं को आया हुआ देख कर
सिव जी ने उन सब को अपने पास भुला कर बोले
कि हे देवताओं मैंने सुना है कि विश्णू और ब्रह्मा में
बीशन संग्राम चल रहा है
जिसके कारण तुम्हें महान दुख उठानी पड़ रहे है
परन्तु अब तुम गबराओ मत
मैं इसका जरूर कोई उपाई करूँगा
यह कहे कर सिव जी वहाँ पहुँच कर
बादलों की ओट में से उनका विश्ण यूद देखने लगे
वे परस्पर एक दूसरे पर महेश्वर और पशुपत अस्त्रों का परियोग कर रहे थे
इनके परियोग करने पर तिलों की बसम हो जाती है
इस परले की वातागरण को देखकर
सिव जी एक तेजोम्य अगनी के समान
दोनों के पथ्या में जाकर
चमकते हुए स्तंब के रूप में परकट हो गए
विश्णू और बर्मा
महान तेज वाले स्तंब को देखकर हैरानी में पढ़ गए
दोनों कहने लगे
कि यह इंदर याति अगनी सवरूप स्तंब क्या है
हमें इसका पता लगाना होगा
यह कहे कर दोनों वीर सिगरता से चल पड़े
विश्णू जी ने सुकर का रूप धारन किया और पाताल में चले गए
और पितामे बर्मा जी ने हंस का रूप धारन करके
उपर आकास में चले गए
परन्तु दोनों में से किसी को भी उस परकास्मिय लिंग के बारे में पता नहीं चला
तो ब्रह्मा जी ने आकास में केटकी का फूल देखा और उसे तोड़ कर ले आई
उन्हें यह निश्चे हो गया कि उन्होंने महा तिजस्विस्तम का पता पा लिया है
वे केटकी के फूल को लेकर विश्णु जी के पास चले आई
तो विश्णु जी ने देखते ही ब्रह्मा जी के पैर पकड लिये
और ब्रह्मा जी के इस छल को देख कर सिर जी उसी समय पर कट हो गई
विश्णु जी ने भगवान संकर के चरण पकड कर प्रणाम किया
विश्णों जी की इस महानता से बगवान शिव बहुत ही खुश हुए
और उन्होंने परशन होकर उनकी सत्यवादिता की परशनसा की
और अपनी शम्ता परदान की
शिरी नंदी के स्वर कहने लगे कि इसके परस्चात शिव जी ने
अपनी बोहों के बीच से बहरव को परकट किया
बहरव ने परकट होते ही बगवान शिव को परणाम करके पूछा
कि मेरे लिए क्या आग्या है
तो शिव जी बरम्मान जी पर क्रोध करते हुए कहने लगे
कि तुम अपनी पैनी तलवार से इनकी सिवा करो
तो शिव जी की आग्या पाते ही बहरव ने
बरम्मान जी के केसों को पकड़ लिया
और उनके पांचे मुख को काठ डाला
जिन्होंने ऐसत्य बुला था
और अन्य सीरों को काठने के लिए जैसे ही बहरव तयार हुआ
तो बरमान जी सिव जी के चर्नों में गिरकर छमा याचना करनी लगे
तो यह देखकर विश्णुन जी भी सिव जी के चर्नों में गिरकर
बरमान जी को छमा करने की प्राथना करनी लगे
और कहने लगे कि हे भगवान आपने ही प्रारम में इनको पांच सिर परदान किये थे अब इनका एक सिर कट चुका है अब तो आप इन पर परशन हो जाएगी तो भेरव ब्रह्मान जी को छोड़ कर बोले कि हे ब्रह्मा तुमने अपनी परतिष्ठा और इस्वर्तव के लिए
शिव जी से वरत और स्वामी कहकर अपना पांचवा सिर मांगने लगे तो इस पर शिव जी ने कहा कि अराजक्ता के डर से मैं संसार की इस्तती बिगड़ने नहीं दूँगा हे पुत्तर जो अपरादी है उसे तुम दंड परदान करो तुम गणों के अतिपती होकर रहो ल
केटकी को दूर भगा दिया तो केटकी हाथ जोड़ कर बोली कि हे स्वामी मुझे माफ करने की किरपा करें हे परबु आपकी किरपा से कुछ भी दुरलब नहीं है तो केटकी की बात सुनकर शिव जी कहने लगे कि मेरा वचन कभी भी मिठ्या नहीं हो सकता अब मैं तुम्ह
मौर ही रहोगे इस परकार भगवान शिव ब्रह्मा केटकी और विश्णू पर किरपा करके देवों के पास भगारे देवताओं ने शिव जी का पूजन कर स्तूती की और फिर शिव जी पुने अपनी सभामी जाकर बैठ गए ब्रह्मा जी और विश्णू जी हाथ जोड़
देवा यह बड़ा ही पवित्र दिन है उस दिन कृष्ण पक्ष की 14 स्तिति थी तो उस स्तिति को शिव रात्री के नाम से जाना गया और कहने लगे कि इस दिन मेरे लिंगेश्वर की पूजा करेंगे वे मुक्त हो जाएंगे जो व्यक्ति परपंच रहित होकर इस दिन पू
जो व्यक्ति मारकशिष महा में आधरा नक्षतर में उमा सहित मेरी पूजा मेरे रूप में या बेर लिंग में करेगा या मेरे दर्शन करेगा वह मुझे कार्तिके के समान परमभीर्य होगा
शिवरात्री पर दर्शन का यही महान फल है। पूजन से जो फल प्राप्त होगा उसका मैं मुख से वर्णन नहीं कर सकता।
यह कहकर शिव जी विश्णु जी और बर्मान जी से कहने लगे कि जिस जगह तुम दोनों का युद्ध हुआ था उसी युद्ध भूमी में मेरा लिंग यानि की स्तम परकट हुआ है।
वह अरुनाचल के नाम से प्रशिद होगा। यहाँ पर जो भी मनुष्य अपना सरीर छोड़ेगा उसकी मुक्ति अवश्य होगी। जो विक्ति मुझ परमेश्वर की लिंगेश्वर रूप में पूजा करेंगे उन्हें चारों परकार की मुक्ति प्राप्त होगी।
तभी से इस कथा को शिवरात्री के दिन जरूर सुना जाता है। इससे भगवान शिव जी का आशिर्वाद हम सब पर हमेशा बना रहता है।
इसका जला विशे करने के लिए आये हुए थे। मंदिर का प्रिशर भगतों की भीड से भरा हुआ था। तभी अचानक आकास में बिजलियां चमकने लगे और बादल गर्जने लगे। और एक सोनी का थाल वहां से उत्रा। उसी के साथ एक बविश्यवाणी भी हुई कि �
जो कोई भगवान शंकर का सचा भगत होगा और प्रेमी होगा उसी को यह थाल मिलेगा। तो वहां पर उपस्तित सभी लोगों ने यह बविश्यवाणी सुने। धिरे धिरे सभी लोग इकठे हो गए। जो लोग मंदिर की विवस्ता देखते थे उन्हें तो पूरा विश
सबसे पहले एक पंडित जी आये और बोले कि देखिए मैं पर्ति दिन महादेव का अभिशेक करता हूँ। इसलिए मैं ही भगवान बोलीनाथ का सबसे निकट वर्ती प्रेमी भग हूँ। इसलिए थाल को मुझे मिलना चाहिए। इतना कहे कर जैसे ही पंडित जी थाल उ�
वापिस रख दिया और चुक चाप वहां से निकल लिये। इसी परकार वहां पर उपस्तित सभी पंडितों ने कुछ को अजमाया। लेकिन साइद उनमें कोई भी सचा बगत नहीं था। जो भी उस थाल को उठाता तो वह थाल पितल का हो जाता तो उन्हें थाल को वहीं प
इसलिए महादेव मुझे पर अती पशन है तो थाल को मुझे ही मिलना चाहिए। इतना कहे कर बड़ी खुशी से राजा आगे बड़े और जैसे ही थाल उठाया तो थाल तो तामबे का हो गया। तो यह देखकर राजा भी बड़े लचित हुए और थाल को वहीं पर रख कर
एक तरब खड़ी हो गए। इसके बाद इसी तरहें एक सेंबट कर एक दानी महातमा और भग जन वहां पर बधारी। और थाल उठाया तो थाल कभी तामबे का हो जाता कभी पितल का हो जाता सोने का नहीं रहता। तब सभी लोगों को पता चल गया कि हम मेंसे महादेव का स
सच्चा भग कोई नहीं है। उसी समय अचानक वहां पर एक किसान आ गया। वो बिचारा महिनों बाद आज चात्रु मास के सोंवार के सुब अवसर पर शिवची के दर्शन करने के लिए आया था। गरीबी और गरस्ते के बोस तले दबा दिन रात खेतों में महनत मजदू
वहां पर थाल के बारे में चर्चा हो रही थी। लेकिन उस किसान ने उस चर्चा की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। सिदा मंदिर में गया और महादेव का पूजन करके बाहर आ गया।
जैसे ही वो प्रिकर्मा करके जाने लगा तो बिच्चे से एक व्यक्ति बोला की भाई तुम भी थाल उठा कर देख लो। हो सकता है तुम ही सच्चे भक्त हो। तुमारे लिए ही सोने का थाल आया हो। तो किसान को लगा की साइद वह व्यक्ति उसका मज़ार बना रहा है�
तो किसान ने हसते हुए कहा भाई मैं तो कोई पूजा पाठ भी नहीं करता हूँ। महिनों में एक आदवार मंदिर आता हूँ। मैं कहे का सच्चा भक्त हूँ। तो वह आदमी कहने लगा भाई हम तो सब देख चुपे हैं। हमारी भक्ति तो दो कोड़ी की भी नहीं है�
इसलिए तुम से कह रहे हैं कि तुम अपना हाथ लगा कर देख लो सोने का थाल ना मिले तो कोई बात नहीं पता तो चल जाएगा कि तुम्हारी भक्ति में कितनी सच्चाई है। तो वहाँ पर खड़े सारे लोग आग्रह करने लगे तो आखे उस बोले वाले किसान ने जा
जोड़ गए। सबी लोग उसके जेकारे लगाने लगे और पूछने लगे कि भाई तुम सच्चे वक्त हो तो वह हमें मी बता दो कि तुम बक्ति कैसे करते हैं। जिससे महदिर तुम से इतने परशन है। तो किसान कहने लगा कि भाई मैं कोई बक्ति नहीं करता। मैं तो
तो लोग पूछने लगे कि तुम लोगों की मदद क्यों करते हो।
तो हंसते हुए किसान कहने लगा कि सुखून।
दूसरों के चहरे पर मुश्कान देखकर मुझे जो आनन्द और खुशी होती है उसे मैं सब्दों में बयान नहीं कर सकता।
सायद यही कारण है कि महादेव मुझसे आज इतने परशन है।
हमेशा अच्छे करम करने चाहिए।
बोलो महादेव जी की जे हूँ।
तो ये थी परदोस वर्थ और माशिक शिवरत्री की संपूर्ण कथा।
कथा समाप्त होते ही कमेंट बूक्स हुई।
महादेव जी का जे करा अवश्य लगाना।
आप अपने सुनते हैं लपसी और तपसी की कथा।
जो की हर वर्थ के बाद में अवश्य सुननी चाहिए।
एक लपसी था, एक तपसी था।
तपसी हमेशा भगवान की तपस्या करता था।
लेकिन उसे चोरी करने की आदत थी।
लपसी हमेशा सवा सेर की लापसी बनाता
और पहले भगवान को भोग लगाता उसके बाद में श्वेम भोजन करता।
दोनों भाईयों का यही नियम था।
तो एक दिन कोई बात को लेकर दोनों में कहा सुनी हो गई।
तो तपसी बोला कि मैं रोजाना भवान की तपसिया करता हूं, इसलिए मैं बड़ा हूं।
तो लपसी बोला कि मैं रोज भवान को सवा से लापसी का भोग लगाता हूं, इसलिए मैं बड़ा हूं।
ऐसा कहते हुए दोनों जोर जोर से लडने लगे।
तबी वहां से नारत जी गुजर रहे थे, दोनों को लड़ता हुआ देखकर वहां आये और उनसे पूछा कि तुम दोनों लड़ क्यों रहे हो,
तो दोनों ने अपनी आपको बड़ा बताया और साथ में बड़ा होने का कारण भी बताया, तो नारत जी बूले कि मैं तुम्हारा फैंसला कर दूँगा, कल आउंगा बता दूँगा भी कौन बड़ा है, दूसरे दिन लपसी और तपसी नहा कर अपनी रोज की बक्ति करने आ
वाली, लपसी की नजर अंगूठी पर पड़ी लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया, उसने पहले बगवान को बोग लगाया और फिर स्वयं बोजन करने के लिए बैठ गया, थोड़ी देर बाद नारत जी सामने आये तो दोनों ने पूछा कि अब बताओ हम में से कौन बड़
ये अंगूठी मैंने ही तुम दोनों के आगे रखी थी, मैं ये देखना चाहता था कि तुम दोनों में से किन के मन में लालच है, तो तुने तो अंगूठी दिखाई पड़ते ही जड़ से अपने पैर के निचे दबा ली, लेकिन लपसी का ध्यान अंगूठी पर जाने के
कि बात पी लपसी ने अंगूठी को ना ही उठाया और ना ही ध्यान किया, उसने सिर्फ अपने भगवान जी में ही ध्यान रखा, उन्हें बोग लगाया और बात में स्व्यम भोजन करनी लगा, इसी लिए लपसी बड़ा है और तुम्हें तुम्हारी तपस्या का कोई भी
जलती माख करो और मुझे बताओ कि मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा आज के बाद कभी भी मैं चोरी नहीं करूंगा तो नारत जी
अगर कोई व्यक्ति दिये से दिया जलाएगा तो उसका फल भी तुझे ही मिलेगा अगर कोई औरत आंगन लीप कर चोका नहीं लीपेगे तो उसका फल भी तुझे ही मिलेगा यदि कोई वर्त कथा में सारी कहानी सुन ले लेकिन तुम्हारी कहानी ना सुने तो उसका फल भी
वरी तुझे ही मिलेगा। उसी दिन से हर वर्थकथा और कहानी के साथ लपशि तप्षी
की कहानी कही और सुनी जाती हैं। और कथा सुनने के बाद में कहना चाहिए
लपशि का फल लपशि को मिले तप्षि का फल तप्षि को मिले। हमारी कहानी का
और हमारे वर्थ का फल हमें मिले
काथा समाप्त होते ही कमेंट बोक्स में
शिव गोरी का जैकारा जरूर लगाएं
सारे शिव वक्तों से मेरा निवेदन है
कि मीरा बगती स्टोरी चैनल पर कार्टिक मास की अध्याय परस्तुत किये गई है
उन्हें भी एक बार अवश्य सुने
और चैनल को सब्सक्राइब करके वीडियो को ज़्यादा से ज़्यादा शेर करें
जैस्री कृष्णा राधे राधे

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