कि मनुष्य से पूछते हैं
कि राम न रमश कौन दट लागा कि मर जीवय का करीबी अभागा
कि कोई तीरत कोई मुंडित केशा कि पाखंड मंत्र भरम उपदेशा
विद्या वेद पढ़ी करे हंकारा अंतकाल मुक्पां के छारा
दुखित सुखित होई कुटुम जेमावे मरण बार एक शर्तुख पावे
कहें कवीरी कलिहे खोटी जो रहे करवा सुखी
निकरे टोटी
बड़ी मार्मिक पंक्तियां हैं
सहे पूछते हैं कि ही मानो
तुझे कौन सा दंड लगा है कौन सा पाप लगा है
जो तु
राम में रमण नहीं करता है
गंदी गंदी यादतों में रमण करता है
तेरा मन
जहां नहीं रमण करना चाहिए वहां रमण करता है
तुझे कौन सा पाप लगा हुआ है
है जिस कि आत्मा के बहुत पाप होते हैं
कि उसका मन होंगा कि बक्ति में नहीं लगता है
कि उसका मन सत्संग में नहीं लगता है
है रामन रमश कौन दंड लगा है
है और यह मन बड़ा विचित्र हैं है कवीरशाहब ने मन के बारे में देखैं।
में कहा है कभीर मन तो यह कहें चाहे जहां लगाओ चाहे गुरु की भक्ति करो चाहे विषय कमाओ
एक मन है
इसको चाहे जहां लगा दो
चाहे गुरु की भक्ति में लगा दो
तो शांती, शुक, शकून मिलेगा है
और चाहे संसार की भोगों में लगा दो
चिंता, दुख और अस्मंजस मिलेगा है
लेकिन मन बड़ा चंचल भी है
जहां
लगाना आवश्यक है, वहां लगता नहीं है
और जहां मन लगाने की जरूरत नहीं है, वहां अपने आप लग जाता है
विद्यार्थियों की समस्या है
विद्यार्थी कहता है कि पढ़ने में मन नहीं लगता है
तुम विद्यार्थी हो तुमारा मन पढ़ने में नहीं लगता है
किशान का मन खेती करने में नहीं लगता है
दुकाणदार का मन दुकाण में बैठने में नहीं लगता है
सिच्छका मन इस्कोल में पढ़ने में नहीं लगता है
महिलाओं का मन भोजन बनाने में नहीं लगता
ती मन लगता कहा है आखिर कहीं तो लगता होता
तो लोग कहते हैं मन में बहुत गलत गलत बिचार आते हैं
तो पूछो गलत बिचार क्या आते हैं
अरे बोले क्या इज्जत बोरी ले डालो के क्या
बस गलत आते और क्या गलत आते
इसीलिए इशारा समझ जो गलत विचार आते
मन में गलत विचार आ रहे
पंडिश सिरीराम सर्मा अचर ने कहा है
ये मन की दशा ये है
जितना तुम बेस्त रहोगे ये मन शांत रहेगा
और जितना तुम खाली रहोगे तुमारा मन उत्पात मचाएगा
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