बताते हैं गोकुल की सारी गोपिया मन ही मन में
यह विचार यह भावना चाहती थी कि किर्षन भगवान
किर्षन कनया हमारी भे घर आये
और दही माखन खाये
स्री किर्षन
उनके मन की इच्छा जानकर
अपने गवाल बाल की टोली लेकर चला जाता है
चुप चाप इसके घर में गुझ जाते हैं
चीके पर दही माखन की मत्की भोड देते हैं
कुछ खाते हैं कुछ इदर दुर डोल देते हैं
गोपिया उलाणा देने के लिए आती हैं और
कहती की येशोता
तेरे किस्समे संजाले
एक बात के दवारा येशोता माँसे कहते सिकायट करती हैं
आईयो इस बजन के दवारा आपके बीच में रखना हूँ कैसे
हाँ
मईया तेरा नन्द किसोर पोड़ गया मत्कीरी
मैया तेरा नन्द किसोर पोड़ गया मत्कीरी
पोड़ गया मत्कीरी
मैया तेरा नन्द किसोर पोड़ गया मत्कीरी
चोरी चोरी मारे घर में आवें
माकन खावें दही किन्दावें
तेख सकड़वें तोर पोड़ गया मत्कीरी
मैया तेरा नन्द किसोर पोड़ गया मत्कीरी
एक बाल बाल की राके ढोड़ी
बाल बाल की राके ढोड़ी
कती करे यो चोरी दिन दोड़ी
ओर यास गली मैं सोर पोड़ गया मत्कीरी
एक बाल बाल की राके ढोड़ी
नटे खटे नहीं परिशान करी से
आत नहीं वेहरान करी से
मर कुछ नहीं चाले दोर पोड़ गया मत्कीरी
उम्या तेरा गंध के सोर पोड़ गया मत्कीरी
देखें जितने पर जो परिशान करी दोड़ी नहीं परिशान करी
देखें जितने सीदा साथा अल बाती से उस ते ज्यादा
गंध देशन कठोर पोड़ गया मत्कीरी
उम्या तेरा गंध के सोर पोड़ गया मत्कीरी
अमल सीँग जो हट के आवें मारे ते ना बच के जावें
ओर आयो माकन छोर पोड़ गया मत्कीरी
उम्या तेरा गंध के सोर पोड़ गया मत्कीरी