धार्मिक
जब मैं जूटा था संसार से
माना मशूर थे तब भी दुनिया से दूर
एक दूजे का गुरूर थे खुद में ही कोई नूर
जलसी अलग सी आँखों से जलग थी
वो दूसरी लड़की ओं के जैसी होके भी अलग थी
मरम थी दरद की मेरी भी तलब थी
तो दिल ने जगा दे दी उसको मरते दम दलखी
बाइट्स मिट गए पर दिल पे है निशान
हर नाइट को फोन पे बातें गवा उसका चान
माना जान तो जान से जादा दिया उसको मान
उसकी याद में ताज ये गाना और मैं शाजहान
मेरी जान, मैं शायर, मैं लिखा शायरी
सचा प्यार, ना कायर, ना जूटी आशिकी
रिष्टा है साम, मैं देखा पहला और आखरी
जीना यादों के सहारे, दिल का इंतहा यही गली का बॉय
लेकिन सफीना मुझसे अब जुदा
हम ते वाकिब, फिर भी न जाने क्यों ते गुमशुदा
है दुआ, दिल से हम दोनों हाथ उठा के मांगे
अगले जनम में धर्म से अलग न कर खुदा
मैं कलम, तू किताब, सर्या करने का बात
जो कहना पाया मुझसे अब वो लिखती आ जजबात
तेरा हाथ मेरे साथ, तू हकीका, तू ही ख्वाप
दिल से मुहबत होती तो न देखा धर्म जाप
मैं कलम, तू किताब, सर्या करने का बात
जो कहना पाया मुझसे अब वो लिखती आ जजबात
सपनों में तुझसे बात, सपनों में मुलाखात
सताता था मैं उसको अब सताती उसकी याद
तू जो रोज गई कलम या तब से रोज बनी
छुपती हाथों को पर दिल तो मद होश कही
है खुश्बू तेरी जब रूप में समाई
इत्री कितना भी लगा लूँ उस बिचारे का कोई दोश नही
दॉलत उससे बड़ी अब तलक मैं खोया नही
मैं नींद में था फिर भी ख़्वाबों में क्यों सोया नही
हाँ उसकी खामोशी ने कह दिया जो तै किया
आँखें भरी मेरी पर मैं उसके आगे रोया नही
वो जोया मैं अर्जन, जिंदगी थी जन्नत
मैं खोया माया जाल में, साथ थी वो हर बक
मैं बादिशा जो दुनिया जीतने को चल पड़ाता
खुद से बेगर हो चुका तो उसके बाहों में थी मननत
आज एक अलग ही नशा, कलम में एलिया बसा
दिल उदास बैठा, तू उसे हसाने की दवा
दर्द देता नहीं सजा, गम को लिखना एक मज़ा
जब नसीब बेवफा, कौन किसे हो कफा
दुआ दी उसने कामियाब होगा तू रैप में
अब उससे बात करना हो तो लिखता रैप मैं
सोना चाहता था वापस तेरी गोद में
पर ख्वाईशों के पन्नों को बहा दिया जहाज में
परिष्टे मिलते जैसे मिलने मुझसे आफिर
तलाश में भटकता रहता मैं मुसाफिर
ये आशिकी जूटी लग रही थी उनको
जो आवारा में को बोले अब वो खुद ही निकले काफिर
मैं कलम दू किताप