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Bài hát mahakumbh katha (prayagraj) do ca sĩ Prem Prakash Dubey thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat mahakumbh katha (prayagraj) - Prem Prakash Dubey ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Mahakumbh Katha (Prayagraj) chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Mahakumbh Katha (Prayagraj)

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

को कहिस कई प्रयाग प्रभाऊं कलुष पुञ्ज कुञ्जर मृगराऊं
जैस्याराम प्रभुप्रेमियों आप सभी प्रभुप्रेमियों को प्रेम प्रकाश दूवे का साधर जैस्याराम
आज हम आप सबको तीर्थराज प्रयाग के जीवन की अद्भुत लीला की कथा सुणाते हैं
जिसे सुनकर आपको भी आश्चरीन
ਤੋ ਚੈਲੀਏ
ਸੰਗਮੁ ਕੇ ਵਾਸੀ ਅਵิਣਾਸੀ ਤੀਰ੍ത ਰਾज ਭੀ ਨਿਆਰೇ ਹੈ
ਇनੁ ਕੀ ਲੀਲਾ ਅਦਭुत ਹੈ ਲਾਖੋ ਕੋ ਪਾਰ ਉਤਾਰੇ ਹੈ
संगम के वासी अविनाशी तीर्थ राज भे न्यारे हैं
एक बार वेक्रमा दित्य करने शिकार निकले बन में
चलते चलते ठके हुए थे पहुँचे मड़ी परवत बन में
पहुँचे मड़ी परवत बन में
एक ब्रिक्ष के तले छाओं में अपना डेरा डाल दिये
शीतल मंद सुगंध पवन का जी भर के आनंद लिये
शान्ति मिली तो मन बोला नृप कितने सुन्दर नजारे हैं
संगम के वासी अविनाशी
परवत बन में
संगम के वासी अविनाशी तीर्थ राज भी नियारे हैं
संगम के वासी अविनाशी तीर्थ राज भी नियारे हैं
प्रभू प्रेमियों
बन में सुंदर फूले खिले थे
भावरे गुनगुना आ रहे थे
तितलियां उड़ रही थी, पंची चहचहा रहे थे, धर्ती की हर्याली देखकर राजा का मन मोहित हो रहा था, मन प्रकृति की सराहना करते नहीं अघा रहा था,
इतने में ही उन्होंने देखा की, एक काले रंग का घोड़ा तवड़ता हुआ आया, और सर्यू नदी के जल में कूद गया, उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ, और वे सर्यू की तरफ देखने लगे,
काला रंग तो रंग एक दौड़ा,
गोड़ता हाफता आया है,
सर्यू में कूदा धीरे धीरे जल बीच समाया है,
घंटों बीत गये ना निकला, मन में कौ तू हल जागा,
सोच विचार लगे करने आनन्द उड़ा जैसे कागा,
कोई हल चल नहीं है जल में, सब चुप चाप किनारे हैं,
सब चुप चाप किनारे हैं,
संगम के वासी अविनाशी तिर्थ राज भी नियारे हैं,
संगम के वासी अविनाशी तिर्थ राज भी नियारे हैं,
भक्त जनूम महाराजा विक्रमाधिति जी इसी विचार में पड़े थे कि घंटों बीत गया घोड़े का कोई अतापता नहीं है आखिर घोड़ा गया तो कहां गया
अचानक काफी समय जब बीता जल में छपाग की एक आवाज हुई राजा ने देखा कि एक सफेद रंग की छाया जल से उभर रही है
प्रभु प्रेमियों यह छाया कोई और नहीं थी वह सफेद रंग का एक घोड़ा था
राजा को आश्यर्य हुआ की
घोड़ा तो काले रंग का था ये सफेद रंग का कैसे हो गया
राजा अपनी जगह से उठे और घोड़े के सामने जाकर खड़े हो गये
बड़ी विनम्रता से राजा ने घोड़े को नमन किया और पूछा
क्या तुम वही अश्वकाले हो जो सर्यूमें
समा गया कैसे रंग सफेद हो गया काला रंग फिर कहा गया
विर विक्रमा की विनम्रता घोड़े का मन जीत लिया
घोड़े ने मन में सौचा इक धर्म रती मन मीत मिला
एक धर्म रती मन मीत मिला
गोड़े का मन जीत लिया
इनको सत्य बताया जाये अब ये मीत हमारे है।
संगम के वासी अविनाशी तीर्थ राज भी न्यारे है।
भक्त जनू महाराज आविक्रमादित्य पशुपक्षी की भाषा समझते थे।
घोड़ा बोला महाराज मैं ये रहस्य किसी को बताता नहीं।
खिन्तु आपकी विनम्रता ने मेरा मन मूह लिया।
भक्त जनू इतना कहकर घोड़ा मानपूर्ण।
वरूप में प्रकट हुआ और बोला राजन मैं तीर्धराज प्रयाग हूँ।
मैं साल में एक बार इसी तरह यहां अर्थात सर्यू नदी में आता हूँ।
और अपने तन पर चड़े हुए पापों को धोकर इसी तरह निरमल हो जाता हूँ।
ये सर्यू का पावन जल है जिसमे रघुबर समा गए।
छोड अयोध्या को रघुनन्दन अपने पावन धाम गए।
सर्यू के तट पर ही लक्ष्मन भस्म किये अपनी काया।
वो शेषावतार पा गए।
शेष नाग की फिर छाया।
इतने पावन सर्जू जल से बदले रूप हमारे हैं।
संगम के वासी अविनाशी तीर्थ राज भी न्यारे हैं।
प्रभु प्रेमियों प्रयाग राज कहते हैं महाराज विक्रमादित्य जी से।
राजन जिस जगह आप खड़े हैं ये अयोध्या है।
ये परमपिता परमेश्वर श्री विष्ण के अवतार भगवान श्री राम चंद्र जी की पावन भस्म किये।
ये भूमि स्वर्ग से भी ज्यादा पावन और सुन्धर है।
भगवान श्री राम जी ने अपनी इस जन्म भूमि के विष्ण में स्वयम कहा है।
जननी जन्म भूमिष्चर स्वरगाद अपिगरियसी।
जन्म भूमि ममपुरी सुहावनी।
सरजूब पावनी।
और स्वयम भगवान ने कहा मुझे यहां रहने वाली बहुत प्रिय हैं।
प्रभु प्रेमियों।
तीर्थराज प्रयाग महाराज अविक्रमादित्य जी से कहते हैं।
इस अयुध्याजी की पावन भूमि का दर्शन करके जीवन धन्य हो जाता है।
साल भर मैं प्रयागराज में लोगों के मन की मलीनता और उनके पापों को धोते धोते स्वयम काला पड़ जाता हूँ।
तब साल में एक बार यहां अर्थात श्री अजुध्याजी में आकर सर्यू के पावन जल में स्नान करता हूँ।
सर्यू के महिमा अनन्त हे गरिमा बड़ी है इस जल की।
नव जीवन देती है सर्यू सदा सहायक निर्बल की।
तेर्थराजने कहा विक्रमा आओ तुम्हे बताते हैं।
जन्म भूम श्रेराजी में आकर सर्यू के पावन जल में स्नान करता हूँ।
तीर्थराज विक्रमादित्य को जग दिखाते सारे हैं।
संगम के वासी अविनाशी तीर्थराज भी न्यारे हैं।
भक्त जनू प्रयागराज ने कहा महराज युग बीते समय बीता परिस्थितियां बदली यहाँ कुछ भी नहीं रहा सब कुछ ढह गया।
अब ये उजाडवन है सिर्फ यहाँ।
भक्त जनू केवल इतना कहकर तीर्थराज प्रयाग जी अन्तरधान हो गए।
विक्रमादित्य ने प्रयागराज की बताई हुई जगहुं पर श्री अजुध्या जी में पथ्थर गड़वा दिये।
राजधानी अवंतिका पहुँचकर विक्रमादित्य जी ने श्री अजुध्या जी को पुन्ह स्थापित करने की योजना बनाई।
अयुध्या में विक्रमादित्य द्वारा निर्माण कार्य कराया गया।
देश के सभी राज्यों के राजा, राणियां आते रहे, समय समय पर कोई न कोई निर्माण कार्य करवाते रहे, अभी राम जन्म भूमि की खुदाई में ये सारे साक्ष मिले हैं।
यही है प्रयाग राज की जीवन गाथा की एक अद्भुत कहानी। ऐसे पावन और तारन हार तीर्थ राज को सो सो बार कोटी कोटी प्रणाम। उनकी महिमा का वरण करना हम साधारण मनुष्य के लिए संभव नहीं है। क्यों?
स्वेम गो स्वामी जी ने कहा।
को कही सकई प्रयाग प्रभाऊ। कलुष फुञ्ज कुञ्जर म्रिगराऊ। भरद्वाज मुनी बसही प्रयागा। ते नही राम पद अति अनुरागा।
गंग सकल मुद मंगा।
सब सुख करनी हरनी सब सूला। बट विश्वास अचल निज धर्मा। तीरत राज समाज सुकर्मा।
माघ मकर गत रवि जब होई। तीरत पति ही आव समाज।
सब कोई देवद नुझ किन्नर नरशेनी। साधरम जहि सकल त्रिवेनी।
पूजहि माधव पद जल जाता। अरसि अक्षै बट अहर सहि गाता।
इनकी लिला अद्भुत है।
रक्षों को पार उतारे हैं।
संघम के वासि अविणाशि तीरत राज भिन्यारे हैं।
आप सभी प्रभुप्रेमियोंको महा कंभ पर्वे की बहुत बहुत बधाई।
आप सभी भक्त जनुं का � scrolling수를at Product shall happen.
मैं प्रेम प्रकाश दूबे प्रयागवासी होने के नाते हार्दिक स्वागत अभिनंदन करता हूँ। आईये कुछ दिन बालू के रेत में गुजारिये। यहाँ विश्राम कीजिये। जै सियाराम। जै प्रयागराज।

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