محبت कमुझसे करीना न छूतेमुहबत का मुझसे करीना न छूतेउमीदों का हर किस दफिना न छूतेनबूत का दिलकष्णगी न न छूतेहभीबे दो आलम का जीना न छूतेकभी मुझसे यारबो मदीना न छूतेनहीं गम जो किसमत मेरी फूट जाएमेरा दिल, मेरा आसरा तूट जाएमेरी जिन्दगी भी कोई लूट जाएबला से ये सारा जहाँ छूट जाएमगर मुझसे हज का महीना न छूतेकलामे नभी है, कलामे लाहीदो आलम को बादु शाहीवो पहुँचे जहाँ छट गई हर से आहीहर एक जीज़ देती नभीतो क्यों दुश्मनों को पसिना न छूटेसहर आज मौका मिला जिन्दगी मेंतू आ गया मुस्तुफा की गली मेंमजा आ रहा है, बहुत मैं कशी मेंमगर याद रखना कहीं अब खुशी मेंतिरे हाथ से आपो भी न न छूटेमगर मुझसे यारब मदीना न छूटे