भटक रहा क्यों बन दे दरदर घर में ही संसा
मात पिता के चरणों में है मुक्ष कपावंबा
भटक रहा क्यों बन दे दरदर घर में ही संसा
मात पिता के चरणों में है मुक्ष कपावंबा
तू करले मन से सेवा मिलेगी तुझ को मेवा
पीरत्थ धामत घूम रहा है एश्वर को तुपकारे
घर में बैठे मात पिता जो कब से राह निहारे
घर ही मत्फुरा बिंदावन है घर ही है हरी बार
मात पिता के चरणों में है मुक्ष कपावंबा
तू करले मन से सेवा मिलेगी तुझ को मेवा
जन जन में भगवान बसे है क्यूं जन का अपमान करे
मोह माया के लालच में क्यूं पाप करम इनसान करे
जन जन में भगवान बसे है क्यूं जन का अपमान करे
मोह माया के लालच में क्यूं पाप करम इनसान करे
अच्छे करम तू करले बन्दे हो जाए उध्धार
मात पिता के चरणों में है मुक्ष कपावंबा तू करले मन से सेवा
मिलेगी तुझको मेवा
तू करले मन से सेवा
मिलेगी तुझको मेवा