जैं माता दी
भक्तजनोग
मा सैल पुत्री कौन थी इनकी महिमा क्या
है आये सुनाता हूँ इस कत्हा के माध्यम से
जै मा सैल पुत्री
हम सैल पुत्री मा दुर्गाजी की कत्हा सुनाते हैं पावन महिमा गाते हैं
कत्हा सुनाते हैं
पोड़ जाएगा तल्यार,
पोड़ जाएगा तल्यार,
करों अवदुर्गा कान्यार
माता सेल पुत्री की कथा जानने के लिए
आपको दक्ष प्रजापति यग की कथा सुनाता हूं,
किस परकार इन्होंने भोने संकर का अपमान किया?
पिता सती के प्रजापति ने भारी यग किया,
निवता भेजा तीनो लोक में सिव को भुला दिया,
वो बैर हमेशा भोले संकर से,
पुत्री सती से भी चिड़ते थे अंदर अंदर से,
उनके मन में जरा नहीं था सिव के लिए सम्मा,
निवता ना देकर सिव जी का करडाला यपमा,
हम वही सुनाते हैं,
उन्हें यह कहकर रोकने का परियास किया,
कि हे सती बिना आमंतरण कहीं जाना नहीं चाहिए,
प्रतु माता सती अपनी हट पर अडी रही,
फिर आगे क्या हुआ,
आईए कथा के माध्यम से जानते हैं,
हट में अडी थी सती पिता के यग में जाने की,
लाख जतन की सिव जी हैं उनको समझाने की,
महा यग में जाने की आज्या दे देते हैं,
होगा वहाँ अपमान तुम्हारा यह कह देते हैं,
बिना पती के सती चली है अपने पिता के घर,
होनी टले ना टाले किसी की होनी रही होकर,
पहुची जब महा यग में तो इन्हें मिला नहीं सम्मान,
कोई न पूछे क्यूं आई, हो हुआ बड़ा अपमान,
बिना निमंत्रण जाने का परिडाम दिखाते हैं,
हां कथा सुनाते हैं,
सैल पुत्री मा दुर्गा जी की महिमा गाते हैं,
हम कथा सुनाते हैं,
खुदान करनों दुर्गा का ध्यान हो जाएगा कल्यान,
तिरसकार ही तिरसकार था मिला वहां उनको
सोच के मन जो आयी थी नहां मिला वहां।
उनको
पिताने बोला क्यो आयी हो किसने बुलाया है
मुझे बता किसने तुझको न्योता भिजवाया है
पैडोके नीचे धरतिरही
नासती हुई हैं रा।
पिता के घर में क्या पुत्री भी होती है महमा
पती की बात मान लेती तो यहां नहीं आती
भरी सभामें इतना मैं तिरस्कार नहीं पाती
पश्टाप के सागर का तुफान दिखाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
करुनो दुर्गा का ध्यार हो जाएगा कल्यार
पिता द्वारा भगवान सिव का तिरसकार
माता सती सहन नहीं कर पाई
क्रोध और जुख से भड़ी माता सती ने अपने
प्रानों की आहूती देने का निशै किया
इसके बाद आगे क्या हुआ आयी कथा के माध्यम से जानते हैं
राजा दक्ष ने क्रोध में बोला कैसे चली आई
बिन निवता क्यों भेजा सिव को लाज नहीं आई
व्यंग बाप की सहते सहते सती हुई बेहा
आग्या पती की अगर मानती नहोता इहा
क्यों आई मैं आहामती क्यों गई मेरी मारी
इसमें गलती नहीं किसी की मेरी है सारी
सहनही सकती मैं जीते जी पती का ये अपमार
ऐसे जीने से अच्छा मैं देदू अपनी जान
सती ने फिर क्या किया वहां पर वही बताथे हैं हम कथा देते हैं
सेल पुत्रि मा दुर्गा जी की महिमा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं
करूनो दुर्गा का ध्यान हो जाएगा कल्यान
हवन कुंड की लप्टे उठके उड़ने लगी आकास
माता सती के कानों में सब गूज रहा अटहार
कान को अपने बंद कर लिया दोनो हाथों से
सावन की बरसात हो रही सती के आखों से
आपने मन में पती से चमाया चिना की
कर देना मुझे चमा है स्वामी मन से प्राथनक
हवन कुंड को करके नमन फिर कूद गई उसमे
लप्टों का बहता सागर था डूब गई उसमे
मचा था हाहा कार वहाँ जी वही बताते हैं हम कथा सुनाते हैं
सैल पुत्रि मा दुर्गा जी की महिमा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
परमगती को सती चली गई हो गई वो स्वाहा
वेद, मंत्र थम गए थम गए सब स्वाहा स्वहा
किसी को भी बिस्वास नही था उस अन्होनी का
ना करते उपहास अगर सिव, बाबा, मौनी का
साधु,
संत का वेद, सास्तरी और सभी मेहमाद
देख के ऐसी अनहोनी को था हर कोई हैराँ
सती चली गई प्रान त्याग के अगनी में जल के
मात प्रसूती के दो नैना लहर लहर छल के
इसके आगे कातुम को वृतांत सुनाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
हम कहा सुनाते हैं
भक्त जनों जैसे ही भगवान संकर को सती के जलने का समाचार प्राप्त हुआ
वे अत्यंग क्रोधित हुआ उन्होंने उसी चढड राजा दक्ष के सर्वनास करने का
मन में ठाल लिया फिर आगी क्या हुआ आईये कथा के माध्यम से जानते हैं
ग्यात हुआ सिवसंकर को जब सती के जलने का
पिता के द्वारा पूत्री को प्रातारित करने का
रूद्र रूप धर्तांडव करते पहुच गए ततका
तीनो लोक में लग रहा जैसे आ गया था भूचा
तहस नहस सब कर देते हैं कुछ भी न रहानसे
चले उठाके पतनी का अपने कंधे पे आउसे
सती ने अगला जन्म लिया है सैल राज के घर
सैल पूत्री के नाम से जाना जाता है घर घर
हाथ जोड सुख देव सति का सीस जुखाते हैं हम कथा सुनाते हैं
सैल पूत्री मान दुरगा जी की महिमा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं
करु नौ दुर्गा का ध्यार हो जाएगा कल्यार