दोस्तों ये खुदा की रहमत है
दोस्तों ये खुदा की रहमत है
माँ के होने से घर भी जन्नत है
माँ के होने से घर भी जन्नत है
माँ के होने से घर भी जन्नत है
माँ के होने से घर भी जन्नत है
दोस्तों ये खुदा की रहमत है
दोस्तों ये खुदा की रहमत है
मागे होने से घर भी जननत है
मागे होने से घर भी जननत है
मागे होने से घर भी जननत है
मा की हर बात में नसीहत है
जो समझता है मा की अजमत है
दोनों आलम में उसके इस्सत है
मा की नपुरत में भी महावत है
मा है नाराज को पयामत है
मा की हासिल जिसे भी पुरुबत है
ऐसा इनसा बलंद पिस्मत है
एक मा ही फ़कत वो आरत है
जिसके होने से घर में रहमत है
रख सबसे बड़ी ये दौलत है
मा की आरो ना कोई कीमत है
मा के होने से घर में जीनत है
दोस्तों मा ही एक वो आरत है
मा का दीदार भी इबादत है
मा से कर प्यार भी
इबादत है
मां का दीदार भी इबादत है
मां से कर प्यार भी इबादत है
ये कहावत नहीं हकीकत है
मां के होने से घर भी जननत है
मां के होने से घर भी जननत है
मर्तबा मां का लिख नहीं सकते
कोशिशे हम जरूर है करते
मैं भी कुछ लिके लेके आया हूँ
दो हदीसे भी चुनके लाया हूँ
सुनिये फर्मान मुस्तपा का है
यानी महभूबे की बुरिया का है
दोस्तों में बुरिया का है
दोस्तों में बुरिया का है
जो हदीस नभी है
जो नभी की है बात रब की है
हर मुसलमां को ये विशारत है
हर मुसलमां को ये विशारत है
हर मुसलमां को ये विशारत है
हर मुसलमां को ये विशारत है
मा के होने से घर भी जन्नत है
जिनकी किस्मत में मा अगर होगी उनकी तकदीर तार अगर होगी
कुछ तो बच्चपन में ही गुजरती हैं अपने बच्चे यतीम करती हैं
दोश मा का ना इसमें कोई है वो ही होता जो रब की मरजी है
और शैं एक हजार मिलती हैं मा बकत एक बार मिलती है
मा जो जन्नत तो बाप दर्वाजा बाप से मा का दर्जा है आला
सैदा बाते खुदा अगर होता ये सजा ताज मा के सर होता
मा की खिदमत बड़ी इबादत है
मा की खिदमत बड़ी इबादत है
मा के होने से घर भी जननत है
मा के होने से घर भी जननत है
जिनके मा बाप खुश नहीं रहते
लोग जननत वो पा नहीं सकते
दिल से भीवी से प्यार करते हो
मा से नफरत हजार करते हो
प्यार मा का नहीं समझ पाए
वो समझदार कौन समझाए
मा को ना पाए
मा राजी करके मा के बिन
खुल्द पाले वो शक्स ना मुम्किन
जब कलक मा नाराजी होती है
उसकी पिस्मत भी उस पे रोती है
मा है राजी तो खुल्द पालोगे
वरना दो जफ में तुम सजा लोगे
मा की अजमत का क्या ठिकाना है
मा का आचल भी आशियाना है
मा की अजमत को जो समझते हैं
अपनी मा से वो कब उलझते हैं
जिनकी भी मा हयात होती है
खुशनसीबी की बात होती है
मा की खातिर पड़े जो दुप सहना
फिर भी मा से ना उपतलक कहना
लेना जो भी सवाब हज जाए प्यार से मां को देख ले जाके
काबे से मिलती जुलती अजमत है
मां के होने से घर भी जननत है
मुक्तसर वापया सुनाता हूँ
पर्जुमा का है क्या बताता हूँ
एक इनसान अपने कांधों पे
पर्जुमा का है क्या बताता हूँ
मां बिठा करके हज कराए थे
हज करा करके दिल में ये सोचा
पर्जुमा का उतर गया होगा
जानने ये नभी के पास आया
दिल में लेकर बड़ी आसाया
ये कहा उसने या रसूल अल्ला
मुझको इतना बताई ये आपा
अपनी मां को बिठा के
कांधों पे साथ हज को करा दिये
मैंने हाँ कदा मां का हो गया
के नहीं पर्जुमा का मेरी चुका
के नहीं सुनके सरकार उन्हें ये
फर्माया हाँ मगर हो गया है
एक पल का अपनी मां के तु जब शिकम
में था चुम्बिशे जब कभी भी तू
करता तुझ से तकलीफ मां को रहती
थी तेरे खातिर वो दर्द सहती
थी मां को तू साथ हज करा आया
एक पल का मगर चुका करजा
मां को तू साथ हज करा आया
एक पल का मगर चुका करजा
रब की सबसे बड़ी ये दौलत है
रब्जी सब से बड़ी ये दोलत है
मा के होने से घर भी जननत है
रब्जी सब से बड़ी ये दोलत है
मा की अजमत है क्या बताता हूँ
एक इनसाने एक मिन्नत की
सामने रब के अपने हाजत की
गर फला काम मेरा हो जाए
ऐ खुदा ये दोआ असर लाए
इस तरहा शुक्र फिर बजाओंगा
हजरे असवद को छूम आओंगा
वो दोआ हो गई
एक उबूल उसकी
याद आई जो उसके मिन्नत की
पास उसके ना इतने पैसे थे
हजरे असवद जो छूमता जाके
वो हबीवे खुदा के पास आया
बाकया अपना सारा बतलाया
सर्वरे दीने ये कहा उससे
मा के कदमों को छूम ले जाके
ये कहा उसने मा नहीं मेरी
वो तो दुनियां से जा चुकी कब की
फिर मेरे मुस्तफा ने फर्माया
कबर को मा के छूम के आजा
फिर ये बोला के या रसूल अल्ला
कबर मुझे को नहीं पता
आका बोले के फिर भी घम न कर
तु इसी वक्त अपने
घर जाकर
एक जमी पर लकीर कर देना
है कदम मा के ये समझ लेना
पुरी मिन्नत ये मानु रब लेगा
वो सा कदमों के मा के जब लेगा
पुरी मिन्नत ये मा ने रब लेगा
वो सा कदमों के मा के जब लेगा
ये समझ लेना मा की तुरुबत है
ये समझ लेना मा की तुरुबत है
मा के होने से घर भी जन्नत है
मा को परदंद जितना प्यारा है
मा को ये दर्द कब गवारा है
मेरे बच्चों को खुश होदा रखना
दूर हर दर्द और गंबला रखना
दिल से एक मा दौआ जो करती है
अर्शे आजम तलक पहुँचती है
जाए मा की दौआ ना जाती है
हक से मकबूल होके आती है
दोस्तों मा को खुब खुश रखो
पीट मा की तरफ ना कर बैठो
ये जईब है तो क्या होना
मा यारो अपनी हिम्मत अभी से मत हारो
मा नहीं दिल की पूछ लो जाकर
क्या कयामत गुजरती है उन पर
मा ने यूँ ही तुमे नहीं बाला
फून भी जिसम का पिला डाला
मा के फर्मान को नहीं तालो
आदते अनसुनी से मत डालो
प्यार करें
प्यार करके जिसने फाला है
हाथ के चूले में जुलाया है
जब तु पेशा बुरात में करता
अपने बिस्तर में गंदगी भरता
तुझको सूके में मा सुलाती थी
लप के शिक्वा गिला न लाती थी
खुद तो गीले में वो तु सूती है
तुख अपना वो भूल जाती है परवरिश में कमी ना आती है
अब उसी पर जुबां चलाता है तु कभी हाथ भी उठाता है
तुम अकड़ता है इस जवानी पे क्या भरोसा है जिन्दगानी पे
चर दिल की तेरी जवानी है फिर जवानी तुझे गवानी है
फिर जवानी ना तुझ पे आनी है क्यूंके दुनिया ये तार पानी है
मासे जैसा सुलूख करते है जैसा करते है लोग भरते है
पुषे मा तो फुदा बुडासी है
पुषे मां तो खुदा भी राजी है परना उसको सजा तो पानी है
देख आशिक तुझे नसीहत है
देख आशिक तुझे नसीहत है
मां के होने से घर भी जन्नत है