Nhạc sĩ: SEEMA KAUSHIK
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अब जैसे ये पैदा होए, ये बड़े हो गए, जैसे गटो उठ गच इनके पिता बड़े हो गए, सोचो अपने भी बच्चे पैदा होते बड़े हो जायें तो कितना आनंदा है, ने रोने का टेंशन, ने खिलाने का टेंशन, ने उनका पेट में दरद हो पता नहीं चलता,
सर में दर्द वो पता नहीं चलता
वो बिचारे सिफ रोते रहते हैं
और हम उनको टॉपी देते हैं
चुकलेट देते हैं
पता नहीं क्या क्या देते हैं
समझ में नहीं आता
यह तो एक माँ है जी
जो समझ पाती है कि मेरे बच्चे को क्या तकलीफ है
बोलो सभी माताओं की
देखो जी मा एक इतना अन्मोल शब्द है
कि मा अपने जीवन का बलीदान दे करके एक बच्चे को जन्म देती है
इस जननी को मैं इस व्यास फीट से नमन करता हूँ
आपके चर्णों में बारं बार कोटी नमशकार है
क्योंकि आपकी वज़े से ही हम आज जो भी हैं पुरुष लोग
सब अपनी माताओं की वज़े से ही आज इतनी काम्यावी इतनी तरक्की पर हैं
जैस्री शाम
तो बाबा जैसे ही बड़े हो गए उन्होंने तुरंत अपने पिता से सवाल पूछना शुरू कर दिया
पापा ये क्या है पापा वो क्या है जैसे बच्चे बोलते ना ये क्या है वो क्या है
देखिया आब छोटा बच्चा जब होता है तो वो सवाल करता है ये क्या है ये क्यूं है
ये कैसा है ये कौन है ये बुआ है ये आंटी है ये हमको बताना पढ़ता है
वो कुछ नहीं जानता, वो सवाल करता है
तो वैसे ही हमारे बरबरीग जी ने सवाल पर सवाल प्रारंब कर दिये
पूछना शुरू कर दिया कि ये कौन है, वो कौन है, कैसे आए है, कहां से आए है
और जैसे एक माता पिता अपने बच्चे को समझाते है
बिचारे घटोद गच्ची, ज्यानी कम थे, लेकिन जितना ज्यान था वो अपने बच्चे को
मा के जैसा हुशार था जी बच्चा हमारा बाबा शाम
मा उसकी इतनी दिव्य थी, तो बच्चा भी दिव्य था
तो वो इतने सवाल पूच रहे थे, कि घटोद गच्ची ने कहा कि चल भाई
मैं हर सवाल के जवाब देने वाले के पास तुझे लेकर चलता हूँ
और वो मेरे गोविंद के पास द्वारका नगरी गए
बोल द्वारका धीश भगवाने की
अब ये वायू मार्ग से पिता पुत्र एक दूसरे का हाथ पकड़ करके
सीधा पहुँचे द्वारका
वहाँ द्वारका धीश के महलों में प्रवेश किया
वहाँ पर राजा ग्रसेन, उग्रसेन जी
समस्त यादव वीर, मेरे बड़े भईया बलदाओ जी
सभी यादव वीर वहाँ उस सभा में कत्रित थे
भगवान तो जानते थे कि मेरा परम भक्त मुझसे मिलने आ रहा है
परन्तु उनको लीला करनी थी
वो ऐसे अंजान बनकर बैट गए जैसे कुछ जानते ही ना हो
और जब घटोदगच उनको हाथ में अपना हाथ पकड़ करके
मेरे गोविंद के पास पहुँचते हैं
वहाँ पर मेरे गोविंद कहते हैं कि आओ घटोदगच कैसे आना हुआ
तब घटोदगच जी कहते हैं
कि हे गोविंद
हे गोविंद
हे गोविंद यह है मेरा पुत्र बर्बरी इसके मन में बहुत सी जिग्ञासाएं हैं इसके सवालों के जवाब देना
मेरी बुद्धि में नहीं है मेरे गोविंद इसे तो आप ही ज्ञान दे सकते हैं बर्बरीग जी ने कहा कि हे केशव आपको बारंबार नमस्कार है यह मानव देह हमें किसलिए प्राप्त हुई है केशव इस मानव देह का क्या परिणाम है
कोई राज्य पाना चाहता है कोई मंत्री बनना चाहता है कोई कार खरीदना चाहता है कोई बंगला खरीदना चाहता है कोई कुछ चाहता है
लेकिन वास्तविकता में
ये देह हमें प्राप्थ होने के बाद
हमें किसे पाना होता है केशव
हम किसे पाएं
तब मेरे गोविंद ने उनसे कहा
कि मानव देह प्राप्थ होती है
भक्ती के लिए
करम करने के लिए
और तुम करमों से
अपने भाग्य को वो भी बदल सकते हो
अपने भाग्य को बदलने के लिए तुमें भक्ती का मार्ग अपनाना होगा
क्यूंकि भक्ती मार्ग वो दिव्य मार्ग है
जिस पे चल कर असंभव को भी संभव किया जा सकता है
असंभव को भी संभव किया जा सकता है
छोटा सा बालक द्रूब जब उसकी माने उसके पिता के गोद से उसे हटा दिया
तो उसने दिर्ड भक्ती से और भकती की शक्ती से उस त्रिलोकी नाथ को पा लिया
तो तुम भी बरबरीख गुप्त क्षेत्र में जाओ
महिसागर तीर्थ में जाओ और मां सिद्धंभिका की भक्ति करो उनकी आराधना करो मेरे भगवान शिव की आराधना करो
बोल मां सिद्धंभिका की जैहो बोल परम इश्वर महादेव की जैहो बोल परम बिता महादेव की जैहो
मेरे गोविंद चाहते तो उसे अपनी भी भक्ति करा सकते थे लेकिन उनोंने क्या कहा कि तुम मां की भक्ति करो क्योंकि मां बहुत करुणा मही होती है
पप्पा भले ही कुछ दे न दें
मम्मी जरूर दे देती है
है ना
मा अमेशा बहुत जल्दी प्रसन हो जाती है
मेरा नंद लाल भी मैया को ही सताता था
कभी सुनाए नंद बावा को सताया है
ना
उसकी सारी लिलाओं में उसने मैया को ही सताया है
वैसे ही हम भी बच्चे अपनी मैया को ही सताते हैं
उसे ही रुलाते हैं, उसे ही मनाते हैं
तो मेरे केशव ने कहा कि तुम जाओ और मा शिद्धम्विका की तपस्या करो
इस तपस्या के से तुम्हें ऐसे दिव्य शक्तियां प्राथ होगी
जिसके बल से तुम मानव मात्र का कल्यान कर सकोगे
ऐसा मेरे केशव ने वीर बरबरीग को समझाया जीवन का उद्देश क्या है
और बरबरीग भी बहुत ज्यानी थे जनम से ही ज्यानी थे
उन्होंने तुरंथ भगवान सी कृष्ण को अपना गुरुदेव मान लिया
बोलो भक्त और भगवान की जै हो
उन्होंने कहा हे गोविंद आपने मुझे भक्ती का वो दिव्य सूत्र प्रदान किया है
इसी के नाते आज से मैं आपको अपना गुरु मानता हूँ
और मेरे बाबा वहाँ से अपने पिताजी के चरण स्पर्श करके आशिर्वाद ग्रहन करते हैं
और यहां घटोदगच पुना अपने राज लोट आते हैं हिडंबापुर
और वहाँ से मेरे बाबा शाम बरबरीक अपनी तपस्या के लिए आगे बढ़ते हैं
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