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Maa Ganga Amritvani

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Lời bài hát: Maa Ganga Amritvani

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

जय जय जय हे गंगे मईया
भवसागर की पार लगईया
महिमा अपरंपार तुहारी
तुमको पूजे सब नरे नारी
जय जग जननी जय कल्यानी
जय माता अदभूत वरदानी
जय जय त्रीपत गामिनी गंगा
जय जय पतित पावणी गंगा
अखिलेश्वरी मातू अविनाशनी
तुम हो पाप शाप की नाशनी
महा मोह को हरने वाली सब की जोली भरने वाली ज्यान और विज्ञान तुम ही हो
स्वर्ग आदि सौपान तुम ही हो सुर नर मुनि
जन ध्यान लगाते अपना जीवन धन्य बनाते
अपना जीवन धन्य बनाते
विव्य प्रभाव जगत विस्तारा
सूर्य चंद्र सम निर्मल जोती
चम चम चमती जैसे मोती
अमरित जैसा है जल प्यारा
सबसे अच्छा सबसे न्यारा
जो इस जल का पान करेगा
वो यम से भी नहीं डरेगा
जै जै मासुर स्वामिनी
सकल जगत आधार निर्भर है तेरी दया पर सारा संसार
गंगा की उत्पत्ती कहानी भक्तों हैं अथ्यंत पुरानी
जब हरिवामन रूप बनाएं तब राजा बली के घर आएं राजा बली ने शीश जुकाया
भूशन बसन भेट दिलवाया बोले हैं मुस्का के भगवन वो भगवों चाहिए राजन बली
ने जब संकल्प किया है प्रभूने रूप विराट लिया है ब्रम्ह लोक तक मावा
बड़ाया भरि चर्णों से निकली माता भकत जनों
की भाग्य विधाता ब्रम्ह कमंडल वास बना है
आवन दिव्य निवास बना है
इंद्र आदि देवों ने मिलकर ब्रम्ह देव
कोशीश जुकाकर अपनी सारी व्यता सुनाई
ब्रम्ह से अर्दास लगाई
ब्रम्ह देव ने विनती सुनकर देवों से अतिप्रसन होकर मा गंगा की पहली धारा
देवों का मन अतिहर छाया सुर्ग लोक में मंगल छाया सब ने मिलकर मा का वनदं
सुर्ग लोक जो धारा आई मन्दा की निमा वही कहाई जिय,
जिय,
जिय,
मन्दा की नियम्बा
जै जै स्वर्ग निवासनी रिध्य सिद्ध की खान
जै माता भैहारणी परमशांत इस थान
भक्त राजः प्रहलाद ने जाकर किया तपस्या ध्यान लगाकर
प्रगड हुई है गंगा मैया अन्धकार की दूर करेया
बोली माता ध्यान से जागो जो भी इच्छा हो वर मागो
कहा प्रहलादन शीश जुका कर कृपा करो मा हम भक्तों पर
मा गंगा प्रसन्नती होकर चली कृपा करने दानव पर
दैत्य लोक में गंगा माई भक्ती भक्त राज संग जाई विश्णुपदी गंगा की
धारा ने पाताल लोक को तारा जो गंगा के तट पे आया उसे जीवन सपल बनाया
अन्धक दानव अति अभिमानी करने लगा सकल मन मानी धर्म करम पे रोक लावा
जब वो धाया जब वो धाया मां गंगा के सनमुख आया मां पे उसने वार किया है
शर्षस्त्र प्रहार किया है आर ठका वो करके चलबल
सारी शक्ती हो गई निस्फल जब कोई उपाइन पाया
ओ माता को शीश जुकाया है दैते गुरू ने जब रन ठाना माता के
प्रभाव को जाना शमाया चिना की है जाकर मां गंगा के गुड को बाकर
जाकर मां गंगा करती सदा भक्तों पे उपकार तीन लोक में
गूजता बस इनका जैकार
भागी रतने वन में जाकर किया तपस्या ध्यान लगाकर हो करके प्रसन सुख दाता
प्रगट हुए है भाग्य विधाता
बोले ब्रह्मधेव इस अवशर जो भी इच्छा हो मांगो वर भागी रतने शीश जुकाया
मन का सारा आल सुनाया मां गंगा धर्ती पर आयी
पित्रों को मुक्ती दिलवाई धर्ती वासी भी हरशाए
जो गाद से मुक्ती पाएँ
ब्रह्मधेव बूले हे राजन पहले करो कोई शुब सादन
गंगा की धारा प्रलयंकर प्रलयंचातेगी धर्ती पर
इस कारण से अब तुम जाओ महाधेव का ध्यान लगाओ
परमदयालू है शिवशंकर
भागीरत ने ध्यान किया है शिवजी का
अहवान किया है प्रगट हुए हैं भोले शंकर
भागीरत ने शीश जुकाया शिवजी को सब कुछ बतलाया बोले महाधेव अब जाओ
गंगा माता प्रले रूप धर्त ब्रह्म लोक
से चली धरापर शिवने अपना जटा बढ़ाया
शिवशंकर के शीश पर बना दिव्यस्तान मा गंगा करने चली भक्तों का कल्यान
शिवजी ने गंगा की धारा इम्गिरी पे है स्वयं उतारा
मा का वास बना धर्ती पर परभत राज भिमाले उपर
मा गंगा का अति मीठा जल यहां हमेशा बहता
कल-कल शेत्र कुमाईयों का है निर्मल मुल
मा गंगा का उद्धमस्तल गंगोत्री ये धाम कहाए
यहां की महिमा कहीं न जाए गंगोत्री जो कभी नहाए
जनमन से निर्मल हो जाए
गंगोत्री से गंगा चलकर बारा धाराऊं में बटकर धर्ती को पावन करती है
बठों के संगट भरती है
देव प्रयाग में गंगा आकर आपस में मिलती है जाकर संगम ये इस थान कहाए
जहाँ भीर भक्तों की आए
भागिरती और अलक नंदा
काटे भक्तों के भवफन्दा
रिशी केस से गंगा बहकर
हरी द्वार पहुची है जाकर
हरी द्वार से आगे बढ़कर
कई नदियों के संग में मिलकर
गंगा सागर में कल्याणी
मिल जाती है सब उण खानी
जै जै जहनू बालिका गंगा पावन किरन मालिका गंगा
त्रीपत गामनी जै जगदेवी सिध संत सुर्णर मुनी सेवी
रिध्य सिध की दायनी मंगल करनी मात
तुमसे ही जीवन
मिले तुमसे नवल प्रभात
भक्त भागिरत को अपना कर कपिल रिशी का श्राप मिटा कर
सागर सुतों को तुमने तारा
रेत योगी से उल्दे उबारा
के तट गण मुप्तेश्वर कार्थिक मेला लगता सुन्दर दूर दूर से भक्त हैं आते
अरे रिश्धान जर्म पल पाते दुरवासाने अति क्रोधित हो
श्राप दिया तब शिव के गण को तब शिव गण मुप्तेश्वर आये
और शाप से मुप्ती पाए
चंद्र ने यही किया तप भारी
राज यक्षमा मिटे बिमारी
न्रग ने तब गिरगित तन पाया
इसी जगाँ पर द्यान लगाया
संत यहां अगिनित आते हैं
दर्शन करके हरशाते हैं
कार्खंडेश्वर यहीं पिस्थत
जणों का करते हैं हित्सवर
गड़ मुप्तेश्वर में जो जातें
गंगाजी में डूप की लगातें
फिर शिव को जल अरपण करतें
वोनि पे कर्ष्ठति लोचन हरतें
महिमा है इस धाम की भारी
यहां सदा आते नर नारी
इसके दरशन का फल ऐसा
यहां भाव से जो आता है शिव के सनमुख गुन गाता है जीवन मंगल में होता है
मा गंगा के दरश से बनते हैं सब का
सब धर्मों में है बड़ा मा गंगा का धाम
दानव मानव मा को ध्याते हात जोड कर विनै सुनाते
सब की जोली भरते मैंया बदसे पार लगाती नईया मा का नाम परम सुख
कारी मूल संजीवन मंगल कारी जो भी निस दिन नाम उचारे मैं संकत
से कभी नहारे आती जाती सांसों में भी नाम सजा दो माता का ही
बाधा से मुक्ती पाओगे अभी कही ना घबराओगे जिसने मा के नाम को साधा
मिट गई पत की सारी बाधा अपने अंतर पट को खोलो हर हर गंदे निस दिन बोलो
साधु हो या हो सन्यासी या फिर कोई सुख अभिलाशी जो मा गंगा के तट जाता
वल्मलवाचित फल कोपाता जहां जहां गंगा की धारा वहां वहां का गजब नजारा
चारो और परम खुश हाली लाखो जीव जन्तु है आते
चलपी करके प्यास बुजाते मधुमे है माता तेरा जली
सिद्ध मुनी तेरे तट जाकर तप करते हैं
ध्यान लगाकर आत्म ज्ञान होता है मन में
ए माता भागेश्वरी तेरी भक्ति विशेश तेरे दर पर हैं
खड़े काटो कस्ट कलेश
गंगा जमना सरस्वती का पावन जल है कलप वृच्च सा
ये तीनों प्रयाग में मिलकर पर्वरा वर्षा की भक्तों पर
कुंब पर्व जब भी आता है भक्तों का मन हरषाता है
अर्ध कुंब की महिमा भारी महा कुंब जाते नरणारी
गंगा में जो डूब की लगाए सनान ध्यान करके गुन गाए
उसकी नाव कभी ना अटके वुपानों के बीच न भटके
दीप दान करके नरणारी पाते हैं यश्वे भवभारी
जो मा गंगा को है ध्याते बे अपना परलोक बनाते
जो माता गंगा के द्वारे भाव सहित आरती उतारे
फुश्प चड़ा के आशुश पाए तसो दिशाओं में यश्व छाए
वेद पुराणों में है छाया संत महात्माओं ने गाया
पाप मोचनी पावन गंगा
खाटे कोटित काईश्ट कुसंगा
सोते जागते आठो याँ
सदा पुकारे मा का नाम
यही जगत में सत्य सहारा
भवसागर के बीच किनारा
यह गंगा की अमरित धारा
सबसे मीठा सबसे प्यारा
जो सानद करे रसपां उसका हो जाए कल्यां
अमरित धारा जो सुने भाव सहित मन लाए
उसपे हो मा की दया रोग दोश मिठ जाए

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