नचवा के मजा लेला, अब गनवा के मजा ला
लकडी जल कोईला भयो, कोईला जल भयो राख
मैं बिरहन ऐसी जली, कोईला भयो नराख
नहीं आवेला कौनों खबरीया, पर सइया आग लागे तो हरी नगरीया
जब से तु गईला सैया, भेजलान चिठिया, तडबत बीत सैया सारी सारी रतिया
नहीं सोचला तु हमरी उमरीया, पर सैया आग लागे तो हरी नगरीया
सूतल रही ला रोज, देखी ला सपन, कब तु आईबा सैया हमरी समन, लेबा हम बदला से जरीया
पर सैया आग लागे तो हरी नगरीया
हम के सतावे मूरी बैरल जमनीया, ऐसां डसे लजे से डसे ला नगिनीया
पर सैया आग लागे तो हरी नगरीया