चली हम
गुबिन्द केला आपसों के बीच सुर्धा समाज के पेड़चुके पड़ाम करते नी
प्रसंगत करते नी अन्जनी भीया,
बेंजी प्रसंगत करते नी
हरेंदर भीया,
पंचम इस्टिडियो के माध्यम से
एक बिरा रसेगीत भीयाता नी रोषको बिच में,
आशान पूरा विश्वास बाया कि पियर दुलारी मिली।
एक जणा
बाहर गुलबाने,
एक जणी फोन करके कहले बड़ी,
कौना भावसे पताड़ी,
कि बाहरा छोड़के आजाईं,
कि बाहरा छोड़के आजाईं,
सिले लहुरा देवारवा हमसे करे छेड़ खानी,
बाहरा थोड के आ
जाईं
एहो राजा जानी
लहुरा देवा रावा
हमसे करे छेड़खानी
बाविया बाविया
करेला मजाक हमारा सटि जाल भीरिया
कथनोखियाईं हम ओकराके किलिया
आरुको हातारी
होता बारदास
होता बारदास नही
एसे कहताआनी लहुरा好啦देवार् रावा
हमसे करे छेड़खानी
लहुरा देवारावा
हमसे करे छेड़खानी
लहुरा देवारवा
गोवतं विकास्ट देवर के मन भहल माती,
ना हो के फोना वेप अरे उनका के डाटी
गोविन्द यकेला
खाला कैल परस्तानी,
इन लहुरा देवरा भाई हमसे करे थेड़ा खानी
इन लहुरा देवरा भाई हमसे करे थेड़ा खानी
इन लहुरा देवरा भाई
पहारा थोड़के आई जाई,
ये भाहरा थोड़के आई जाई,
ये हो राज़ा जाणी
लहुरा देवरा भाई हमसे करे थेड़ा खानी