यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारता अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम सजाम्यम परित्रानाये साधुनाम विनाशाये चदुष्टिताम धर्मसंस्थाप नार्थ्या संभवामी युगे युगेअखंड है प्रचंड है जो गीता में लिखित है श्री कृष्ण की है वाणि वेद व्यास से रचित है श्री गणेश ने लिखा था जिसको अपने दाद से है एक महान गाता जिसपे जीवन आशरित हैआकंड है प्रचंड है जो गीता में लिखित हैश्री कृष्ण की है वाणी वेद व्यास से रचित हैश्री गणेश ने लिखाता जिसको अपने दाद से हैएक महान गाता जिसपे जीवर आशरित हैअंधकार जो भी मन में उसमें खिल खिलाती धूपशुक्ष्म कण में भी है कृष्ण और वही विश्वरूपजिसने शस्त्र ना उठाया और धर्म को जितायाचक्र धारी वो महान जो है विश्णू का स्वरूपकुरुख शित्र में खड़े है देखो सारे ही महारतीविश्म के विपरीत धर्म सादे कृष्ण सारतीशीश काटे पांडवों का शस्त्र में ना धारतीजो कर्ण के थी सामने वो पंक की ही ढालतीशस्त्र डाले देख कर कुटुम्ब सामनेथा शेष्ट धनुर धारी जो ना आया काम मेंगांडिव जो हाथ में ता छोड़ा हाथ सेपार्थने फिर हाथ जोड़ पूछा नाथ सेकि प्रभू दूविदा में फसा हूँ मुझको रासता दिखाएमेरे सामने है अपने कैसा युद फिर बताएजिसने कोद में किलाया उस पे कैश शस्त्र सादूजिनके हिर्दय में ही मैं हूँ उनको कैसे बाण मारूपीडा मेरे मनी की प्रभू आप समझियेकैसे निकलूं बंद से ये जाने दीजियेठोटा सा वुभाग है ले जाने दीजियेवे सारे मेरे भाई उनको माफ कीजियेवो विजय भी क्या विजय हो जिसमें रक्त बहे अपनों कारहता है आशीस सदा सर पे मेरे अपनों कामैं सब को लेके इस जगा से दूर चला जाओंगावो तो मेरे अपने उन पे शस्त्र ना उठाओंगातात शी ने हाथ ताम चलना है सिखायागुरू द्रोन ने धनुष मुझे पकड़ना है सिखायाकृपा चारे वो जिनोंने मुझे को ज्यान दिया धरम कातीनोंने सही गलत का भेद है बतायाइन पे शस्त्र सादूंगा तो ये तो निंदनीय हैवेश्म द्रोन कृपा चारे सारे पूजनीय हैयुद्ध ना करूँगा करता मित्त को स्वीकार मैंअगंड है प्रचंड है जो गीता में लिखित हैश्री कृष्ण की है वाणी वेद व्यास से रजित हैश्री गनेश ने लिखाता जिसको अपने दाद से हैइत महान गाता जिसपे जीवना शरित हैअगंड है प्रचंड है जो गीता में लिखित हैश्री कृष्ण की है वाणी वेद व्यास से रजित हैश्री गनेश ने लिखाता जिसको अपने दाद से हैइत महान गाता जिसपे जीवना शरित हैबात सुनो पार्थ तुम ये ज्ञान की ही बात हैवो तुम्हारे अपने है पधर्म के खिलाफ हैमैंने स्वयम युद्ध को प्रयतन किया टालेने कादुष्ट ने सभा में मुझको यतन किया बांधने कापाँच गाओं मांगे पूरे राच के बदले मेंदुष्ट ने वो देने से भी मना कर दियागमन्ड से भरा हुआ खड़ा था दुर्योधनबरी सबा में युद्ध का एलान कर दियाउस सबा में चीक कर ये बात भी कही थीबिना युद्ध के ना दूँगा सुई की नोक भर जमीभी जिने धर्म का प्रतीक तुम बता रहे हो पार्थवो तब कहा थे जब सबा में नगन द्रोपदी थीये बोल नाथ ने फिर अपने रूप को बढ़ायावो रूप था विराट पूरे जग में ना समायाविराट रूप देख हाथ जोड़े पार्थ नेफिर गीता का जो सार था वो बोला नाथ नेआरंब का आरंब मैं और अंत का भी अंत हूँआधर्म का हूँ नाश और धर्म का मैं संत हूँसूर की किरन भी मैं ही मैं ही वर्षा मेग हूँज्यान का भंडार मैं ही मैं ही चारो वेद हूँशांत और शालीन है जो त्रेता का वो राम हूँप्रोध का भी रूप मैं ही मैं ही परशुराम हूंदेम का जो रूप मेरा वो तो कृष्ण रूप हैबफत का जो रक्षक नरसिंग मैं महान हूंमुसे ही शरजन है सब का मुसे ही प्रलै हैआत्मा है नित बदलती वस्तर रूप देहशरीर का मरन है, होता आत्मा अमर हैरिष्टनातों से बड़ा है तेरा जो धर्म हैधर्म के लिए लड़े तू तेरा ये करम हैखुद को मुझे को सौप करके गांडिव तू उठा लेआधर्म तेरे सामने तू धर्म को जिता देअधर्म तेरे सामने तु धर्म को जिदा देदेख कर पिचण्ड रूप ना तका अननत रूपकृष्ण का विस्तार था वो कृष्ण का जो विश्व रूपदुजा का कोई अन्त ना था धड़की विश्व रूप ना थीअनगिनत अनन्त सर थे जिनकी कोई था हना थीपार्थ भी चकित हुआ और बोला चक्रधारी सेओरा बैबीत मैं ये पोला वो गिरदारी सेस्वयम को समेटो सर पे पंक को सजाओजो रूप आपका था उसी रूप में आजाओपिर प्रभून स्वयम का वो चलिया रूप धर लियाहाथ में थी मुरली सर पे मोर पंक धर लियापार्थ ने प्रणाम करके धनुष को उठायागीता का जसार था वो तुमको है सुनायाश्री कृष्ण का ही कहना है तुम हाथ में कमान लोधरम को बचाना है तो धरम का तुम ज्ञान लोधरम से बढ़ाना कोई बात तुम ये मान लोधरम की हो बात कर तो जान दो या जान लो