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Kishori Tere Charnan Ki Raj Paun

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Lời bài hát: Kishori Tere Charnan Ki Raj Paun

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

کि سوری تیرے چرنن کی رد پاؤں
کی سوری تیرے چرنن کی رد پاؤں
کی سوری تیرے چرنن کی رد پاؤں
کی سوری تیرے چرنن کی رد پاؤں
چرنن کی
رد پاؤں
چرنن کی
رد پاؤں
چرنن کی
رد پاؤں
کی سوری تیرے چرنن کی رد پاؤں
پاؤں
गिरा अरत जल वीचि सम कहियत भिन्न न भिन्न।
सीताराम जी के चरण का चरणोदक चरणरज।
बिना चरणोदक के चरणरज मिलने वाली नहीं है।
इसलिए चरणरज के लिए आप मंदिर जरूर करें।
उसको नित पीते रहें, पान करते रहें।
परस मोक्ष मिल जाएगा,
तरण हो जाएगा,
उध्धार हो जाएगा। उदास होने की आवस्चकता नहीं है। चलता रहता होगा।
लेकिन मैं दावे के साथ कह रहा हूँ,
हजारों का इसमें सईयोग लिया जाता है,
तब यग सफल होता है।
बेटी के جनम लेते ही।
यग का भूम पूजन,
बोलो हो जाता है,
उसी دिन कि नहीं हो जाता है।
वो घर ही यग भूमी बन जाती है।
जिस दिन बेटी का जनम हो जाता है।
इसलिए मैं कहता हूं कि चाहे कितनों बड़े
घ्यानी ध्यानी ब्रह्म घ्यानी बने रहो
लेकिन बेटी के विणा तो जीवन अधूरा है
महराज स्री जनक ने बहुत ही संसकारी बेटों को पाया था
लेकिन असान्ती तव तक रही जब तक सीता जी जनव नहीं लिं
परतातार छानी पड़े माम का सहिरीन देना फरिंज हो
मांडवी और सुर्थकीरती जैसी बेटियोंने जन्म लिया
और जन्म लेते ही मंगल वरसा होने लगी
जरजर पानी वरसने लगा
हरितमा चा गई, हरे आली चा गई मिथला में
और सांती का सामराज इस्थापित हो गया
साऊधान,
जनक से पूछा गया
कि आपके घर में बेटी सीता आई हैं ये क्या हैं इनका परचे दो,
तो जनक जी ने कहा ये मेरे पुन हैं,
क्या हैं ये मेरे पुन हैं
ओदगिया जी और डसरत जी से पूछा गया कि आपके घर मनें राम
आ गय सौ तो काव डसरत जी बोले नाम हमारे जीवन में पुण हूँ
पुन के रूप में होती हैं tasted गईफ़ी किस्स रूप में होती
यैur रूप में
जनक सूकरत मूरत बई देही
जनक सूकरत मूरत बई देही
दसरत सूकरत राम धर देही
जनक जी के पुन हैं सीता जी
और दसरत जी के पुन हैं प्रभु राम
तो बेटा बेटी पुन होते हैं
लक्षमर पुन हैं भरत शत्रभन पुन हैं
साथ भैन खर करतु हैं लग रहा है सूम्न कर बिर
उसके लिये बोलो,
उसको समालती है ये तप नहीं है तो क्या है?
संतान को चैंदी हो,
चैंदी ये बेटा हो,
किसी को भी जन्म देना है,
बोलो उसके जीवन की वो तपस्या है की नहीं?
है तपस्या की नहीं?
अब एक बात का द्यान रखना
इसलिए कहें रहा हूं कि जब संतान के जनम का समय आ जाए
उस समय पती पत्नी को साउधान होने की आवश्यत्ता है
पती पत्नी को अपने विचारों में अनुकूलता लाने की जरूरय थे
कभी भी, किसी भी दिन,
किसी भी थे
बिरोदाभास की कंडिशन पती पत्नी की नहीं होनी चाहीे
पुरा दुस्प्रभाओ शंठान पर प्रेगा चाहे बेटी हो चाहे बेटा हो इसका
दुस्प्रभाओ किस पर बोलो साओधानी हटी और दुरघटन गटी सुन लीजीये इस बात को
हमेशा इस बात का धियान रखा जैओ के पती पतनी दोनों अनकूल �
पनचं बेद हैं
पती पत्नी हैं अगर संतान गर्भ में हो
पती पत्नी हल्डी घाटी की लड़ाई लड़ाई हो
थो दिनते तुलवारे नैकिलाinski
परखरण करना
ये जीवन की तपस्या मानी जायेगी तुम्हारी
और इस तपस्या को अगर तुमने पूरा कर लिया है
तो निष्चत रूप से राम,
कृष्ण जैसी संधान तुम्हे अवश्च प्राप्त होगी
सीता,
उर्मिला,
मांडवी जैसी बेटिया अवश्च प्राप्त होगी
इसमें शंका करने की आवश्चक्ता नहीं है
महराज स्री दसरत के यहां क्या हो रहा है
तब राम, लख्षमन, भरत, सत्रुघन ये चारों आये
बोले कौसिल्यादि नारी प्रिय
कौसिल्यादि नारी प्रिय सवाचरन। पुनीत। पती अनकूल।
अच्छा कौसिल्यादि ये पती के अनकूल हैं,
और महराज दसरत किस के अनकूल हैं
बोले अब दपुरी, रघ, कुल, मनी, राऊ
वेद विदित तहीं दसरत नाऊ
धरम धुरंधर गुन निधी ज्यानी
हिर्दाय भगत मति सारंग पानी
बोलो दसरत जी महराज भी भकती कर रहे हैं
कौसल्या के के सुमित्रा ये उनके अनकूल चल रही है
बोलो जब ये सब देखा
तो पुन के रूप में
कतनी जाना चरें छे हे तुनर evolution

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