खरगोश।
खरगोश ते खरगोश।
हुआ रे मधोश।
कच्छूए से रेस्ट लगाई।
खरगोश ते खरगोश।
हुआ रे मधोश।
कच्छूए से रेस्ट लगाई।
तेज़ तेज़ भागे।
कहन जाये आगे। ये शर्त लगी अपनी।
होले होले बोले ये धीमी धीमी चले।
कच्छूए का करिका लोखा।
खरगोश आया दोड़ते आगे गया।
ये कच्छूए ने चुप के से देखा। रस्ते में रुका नहीं।
कच्छूए ने तोका नहीं। धीरे से आगे बढ़ता जाए।
खरगोश।
खरगोश ते खरगोश। हुआ रे मधोश।
कच्छूए से रेस्ट लगाई। तेज़ तेज़ भागे।
कौन जाए आगे। ये शर्त लगी अपनी।
हरे हरे पत्ते बंची के गाने सुनते।
खुश हुआ खरगोश मन में।
पत्ते खाते खाते फिर पीठ पर सोते।
हलके हलके आये उसको जफकी। आँखों में नींद चलके।
मिटने लगी हपके। पेड की छाओं में सोया खरगोश।
खरगोश खरगोश हुआ रे मदभोश। कच्छुए सिरेस लगाई।
तेज़ तेज़ भागे। कौन जाए आगे। ये शर्त लगी अपनी।
कौन जाए आगे। ये शर्त लगी अपनी।
हो गई जो शाम, जमय बिता तमां। सुरज तो धलने लगा।
की नींद खुली, विमा की बत्ते
जली। मन्ज की ओर दोडा दोडा भागा।
कच्छुआ था नमबरवनेश। मिन्दा हुआ मन्ने।
सोया जो उसने जब खोया खरगोश।
कौन जाए आगे। ये शर्त लगी अपनी।