Nhạc sĩ: Radha Choudhary
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महरवानों, बात कृषन सुदामा प्रसंग से
मौका उस समा का जब सुदामा अपने बाल सखा
स्री कृषन से मिलकर लोटते हैं
तो अपनी धौपडी की जगए एक आलीशान महल को देखते हैं
अपनी पतनी सुशीला तक को नहीं पहचानते
उसकी इस हालत को देखकर उनकी पतनी एक बात के द्वारा भला क्या कहने लगती है
लेकर आ रही है रादा चौधरी बल्लावगर
आ जाओ मेरे पती भरता
खड़े क्या आ जाओ
करते सोच विचाँ
बता क्यूं ना भीतर या वैसे
तेरा बिगड रहा से धंग खड़ा जन कहा लखा वैसे
आ जाओ मेरे पती भरता रे खड़े क्या
करते सोच विचाँ
बता क्यूं ना भीतर या वैसे
तेरा बिगड रहा से धंग खड़ा जन कहा लखा वैसे
आ जाओ मेरे पती भरता
गया यार के पास भूल गया दुनियादारी ने
बिलकुल नहीं पिछाने अपनी ब्राणों प्यारी ने
नारी से क्यूं मुने फेरे बता क्या बसकी मन में तेरे समझना
या वैसे तेरा बिगड रहा से धंग खड़ा जन कहा लखा वैसे
आ जाओ मेरे पती भरता
आईए इस रागनी पे खुशो करके आदर्णिये पुत्पु चोहान
बास कुसला गुड़गावा से ग्यारे हजार रुपे का प्रुशकार देते हैं
बार बार धन्यवाद करते हैं
इस दासी सपियाजी क्यों मुने मोडे बता दे क्यों मुने मोडे
आखिर लिये फेरे आज मन अध्वर में छोड़े
छोड़े मत प्यारी से पीत चलावे साजन न्यारी रीत घोल के ना बतलावे से
तेरा बिगड रया से ढंद खड़ा जने तहा लखावे से आजाओ मेरे पती भरता
होते है.
बार खड़े दरवाच पह ये तेरा ही घर से पिया ये तेरा ही घर से
पेखट के भीतर या जातने काहे का डर से बताते
काहे का डर से
सर से बोज हटाते मेरा धक कुछ अलग दीख जाते
तेरा मन में क्यों घवरा वैसे
तेरा बिगड रया से धक खड़ा जाने कहा लखाव से
आजाओ मेरे पती भरता ले
मादर्णिये सत्य नाराणे शर्माजी
इस रागणी पे खुशो करके यारे हजार रुपे का प्रशकार देते है
मैं बार बार धन्यवाद करती हूँ
कर दिये सब ठाट फिरी सिरी किरसन की माया
उसके न्यार खेल कहीं पर धूब कहीं छाया
कहीं पर धूब कहीं छाया
खाया ना तेरी कश्टी ना पर खाया
खिलीत से उठावै जीत रामडागर लिख जावै
युज़मे राधादर वैसे तेरा बिगड रहा줘
से ढंगे खडया जने कहां लिखावै से आ जाओ
मेरे पती भरता है खडे क्या करते यी प्यार वता
ता क्यों ना भीतर आवेसे तेरा बिगड रहा से ढलने खड़ा जाने कहा लखावेसे आजाओ मेरे पत्री भरता
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