हम करवाँ चोत की भप्तों कथा सुनाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
क्यों अरधांगेने पतनी को सब वेद बताते हैं
क्यों अरधांगेने पतनी को सब वेद बताते हैं
हम कथा सुनाते हैं
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
नारी तेरी माया तू धूप में हैं
कोशि की नाम का एक लड़का था भ्रामण कूलीन
पतिश्ठान पुर गाउं में रहता था उनका परिवार
उसके पिता उसके विवाहा का बनाते विचार
सांडली नाम की कन्या से उसकी शादी रचाई
बनके उसकी पतनी वो कन्या फिर धर आई
लेकिन उसकी किस्मत ने कुछ ऐसा खेल दिखाया
तू कर्मों के कारण कोशि की कोपोड है आया
किस्मत के इस खेल को वो तो समझ ना पाते है
कथा सुनाते हैं
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
अपना ध्यान ना रखती लेकिन पतित देती जानदी
अपने पती की सेवा करती माने उसे भगवान
लेकिन सांडल के पती का मन वैश्या पर आया
देख कि उस वैश्या का रूप मन उसका फिर हर शाया
पतनी से कहता है जाना चाहूं उसके पास
एक बार तो सुनकर पतनी हो जाती है उदास
लेकिन पती व्रता वो नारी मान ही जाती है
लेकर उसको वो वैश्या के घर जाना चाहती है
कैसे कैसे दिनेश्वत नारी को दिखाते है
पता सुनाते है
पता सुनाते है
पता सुनाते है
कथा सुनाते है कथा सुनाते है नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
कोशिक की ताया की कोड़ी फिर भी लाज ना भाई
जान सका ना वो सपी समपतनी उसने पाई
ललचाए मन से हर फल उस वैश्या का है दाई
कामा तुर हुआ है वो इस बात से है अनजान
की अपनी पतनी के हाथ क्यों तू कर्म कराओ
सोचे बस एक बात ही कैसे उसके घर जाओ
पती की इच्छा को इश्वर की इच्छा माने वो
पती बन गया है एक पापी अब कैसे जाने
वो जाने अनजाने में ठोकत खाही जाते हैं
कथा सुनाते ही है
कथा सुनाते ही है
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
पीठ पिलाद के चलदी सांडली पती को अपने साथ
चलते चलते उनको पड़ जाती है भगतो रात
इतना कदन था रास ता सांडली समझ नहीं पाई
अन्धकार मैं रात जोन के सामने आई
वहाँ था एक राजाने मांडव रिशी को सूली चड़ाया
उसके पती का पै लगने से दर्द उसका बड़ आया
कोन हो तुम दोनों जिनोंने किया है सापा
रिशी वर देख न पाए अंधेरे में कोन हो आप
घाव पड़ा ही गहरा था रिशी वर कराते हैं
कथा सुनाते हैं
कथा सुनाते हैं
नारी तेरी माया
तु धूप में है छाया
नारी तेरी माया
तु धूप में है छाया
तैर से सूली हिली तो उनका घाव बढ़ गया था
जिस कारण उन दोनों को रिशी ने शाप दे दिया था
बोली रिशी वर हम दोनों तो ये मूरक अज्ञानी
पति इच्छा को पूरा करना था मन में खानी
कैसी मूरक नारी हो क्या तुम तो नहीं है
पति से पाप कराने को तुमने किया प्रस्थान
कर सुभा तेरे पति को मृत्यों निष्चित है आनी
यही शाप है मेरा मुझे को समझ लु तुम ज्ञानी
सुनकर ऐसी बात वो दोनों घबरा जाते है
हम कथा सुनाते हैं
कथा सुनाते हैं
कथा सुनाते हैं
कथा सुनाते हैं
कथा सुनाते हैं
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
करती है विलाप और मांगी कितनी माफी
लेकिन ये विन्ती रिशी के लिए है ना काफी
कहती है अन्जाने में हमसे हुई ये भूल
कर तो माफ समझ कर हमको अपने चरण की धूल
लेकिन अपना वचन ना वापस लेना फिर चाहा
ये देखकर सती सांडली को भी क्रोध आया
कहती है अपने पती के ना जाने दूखान
सती धरम का इसी घड़ी से करने बैठ मैं धान
देखके भक्ती उसकी सूर्यनाव दैहो पाती है
हम कथा सुनाते हैं
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
पीते हैं छे मास सूर्यना दिखलाई देते
कैसी विपदा आई अब ये देव सभी तहते
अब तो दिन और रात कभी ध्यान नहीं रहता
सारी सिष्टी पर छाया ये अंधकार कैसा
सूर्य को यदि घोर अंधेरे से न बचा सकेंगे
देखे हम से राज हमारा छीन ही लेंगे
कोई भी धार में कुछ सबना होगा पूरा पास
लाना है सूर्य को सब इस बात की बांधल मात
दुविधा जाकर ब्रह्मा जी को सब बत लाते है
हम कथा सुनाते ही है
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
बैखी है जो सती सांडली लगा के अपना ध्याने
ना निकल के सूर्य ने सती का किया है मान
ब्रह्मा जी ने सब देवों को मात ये बतलाई
इसलिए तो ये विपदा सूरज पे आई
जाकर तुम सब देव महा सती अनतुया को बताओ
की माता तुम जाकर सती सांडली को मनाओ
महा सती अनसुया को ये बात समझ में आई
अनसुया जा पहुँच सती सांडली समक्ष आई
सती सांडली महा सती को दुविधा बताते है
हम कथा सुनाते हैं
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
सती सांडली के सामने जब अन्सूया आई
अपने मन की सारी रखा फिर उनको बतलाई
सती सांडली को अन्सूया ने ये वचन दिया
तुम्हारे पती की जान बचाओ मैंने वचन किया
सती सांडली ने जोड़े तू रैदेव के हाथ
अब ना रोखू हे प्रभु प्रस्ता आज के बाद
निकला सूरज मुर्छित हो गया जब उसका पती
लेकिन उसमें महा सती ने फिर जान डाली
सती धरम की शक्ती को सब जाने ही जाते हैं
कथा सुनाते ही है
नारी तेरी माया तू धूप में है छाया
अपने पती को मृत्यू के मुख से जाती है पाने
मृत्यू से भी तक्रा जाए धरमन में ठाने
जो नारी का मान करें वाहो इश्वर का वाले
धन और वैभव उसके धर में बन आती है दास
नारी की भगती में इतनी शक्ती है मानी
नारी के आगे जुकते हैं बड़े बड़े ज्यानी
रश्मी भी अपने पती की सेवा करती है
महा सती मा उनके सारे दुखों को हरती
है नारी इश्वर का है रूप सब जाने ये जाते हैं
कथा सुनाते हैं
नारी तेरी माया तू धूप में है च्छाया
नारी तेरी माया तू धूप में है च्छाया
करते हैं
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