जब सास भी हमारा
भुवारा ही रूप है और बहुवी हमारा ही रूप है
बड़ी गोतनी और चोटी गोतनी भी हमारा ही रूप है
बेटी भी हम ही है और मा भी हम ही है
ननद भी एक औरत का ही रूप है और बहुजाई भी एक औरत का ही रूप है
तो फिर
आखिर हम अपने ही रूप से नफ्रत क्यों करते हैं
कभी सास भुवारा का ज़गडा,
कभी दो गोतनी आपस में लड़ती हैं
कभी ननद भुजाई एक दूसरे से जगड़ती हैं
क्या हम एक दूसरे से प्यान नहीं कर सकते?
आप सब ऐसा क्यों नहीं सोचती कि हमें
बड़े भाग्य से लक्षमी का रूप मिला हैं?
नारात्र में लोग हमें देवी मान कर बच्पन
में पूजा करते हैं और खाना किलाते हैं.
एक दूसरे को गाली देकर क्यों मा दुर्गा,
लक्षमी,
सरस्वती,
पार्वती के रूप को हम बतनाम करते हैं?
पूजा करते हैं अगर
पूजा करते हैं.
बेटी भी तो एक मा के गर्ब से ही जन्म लेती हैं.
फिर बेटी वाला ही दहेज देगा, ऐसा क्यों?
एक तो आप बेटी लेकर चले जाते हो,
उपर से बैग भर के नोट भी जाएएं.
दहेज माँगना भीक माँगने से कम नहीं हैं.
दहेज हमारे समाच का बहुत बड़ा रोख है,
प्लीज इसकी दवा कीजिए.
पत्नी के माईके से कोई घर आये,
तो पत्नी को लगता है कि सारा दन उनको दे दू.
माँबाब,
भाई भोजाए,
कोई भी हो,
दिन बर पत्नी तरा तरा का खाना बनाती है.
पत्ती का हाजारों खर्च करवाती है,
पर पत्ती थोड़ा भी दुखी नहीं होता.
बाई आता है,
पत्नी का दिमाग खराब हो जाता है,
वो ऐसा वेवहार करती है कि पत्ती और उसके
रिश्तेदारों का जीना हराम हो जाता है.
आखिर ये हमारी कैसी सोच है?
पत्नी का भाई आये तो अच्छा, पती का आये तो बुरा.
इस दुनिया में ऐसे ही हाजारों दुख है,
हम अपनी कर्मों से उन्हें क्यों बढ़ाये?
क्यों ना हम कुछ ऐसा करें कि किसी के एक तो दुख दूर हो जाये?
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật