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Kaisi Kathor Tapasya Dhruv Ji Ne Ki

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Lời bài hát: Kaisi Kathor Tapasya Dhruv Ji Ne Ki

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

सुन्दर यहां से जाना मदुवन के किनारे जमना जी में इश्टनान करना क्योंकि भगवान मित्य जमना जी के किनारे निधिवन में वास करते हैं वही पर जाना हो सुन्दर भगवान का इसी मंत्र के दुआरा तपश्यः बगवान ने चाहा तो कुछ दिन में आपको भग�
कज्जयन नाराज्य ने दिया और दृप्रजी महाराज मधुबन पहुंच गए मधुबन में पहुंचकर शुंदर जुमना इष्णान करके
हैं और तपस्या करना प्रारम कर दिया दिया तो तपस्या करते ही पहले दिन से उन्होंने नीयम
सब्सक्राइब कर दियज़ तपस्या में तपस्या में लियम क्या लगाया तीरात्रांते तीरात्रांते कपिठ बद्राशना
3 दिन में एक बार
कि कैसा प्रत करते हैं 3 दिन में एक बार कपिठ बद्राशना फल का आहार ले लिए वह 3 दिन तक वह भी नहीं
आप लोग सुन भी रहे हो कि अपने में मगन हो सब लोग तो तिरात रांते तिरात रांते कपित वदरासना तीन दिन में एक
बार दुर्भ जी फल का आहार लेते हैं और तीन दिन तक फिर कुछ नहीं निराहार रहते हैं और भगवान की कठोर तपस्या
करने लगी एक महीना यह नियम चलता रहा भगवान जब आते नहीं दिखाई पड़े तो इन्होंने दूसरे महीने में नया
नियम लागू कर दिया और तगड़ा दूतीय चतुथा मां से सष्ट में सष्टमें रुक दिने हैं कि दूसरे महीने में ने क्या
कर दिया अब तीन दिन था पहले महीने में दूसरे महीने में छह दिन में एक बार है कि त्रण पढ़नाद भी
कि बच्चों के पत्तों को खाते हैं जो अपने से चोटकर गिर जाते हैं और जल पान कर लेते हैं और छह दिन तक
टीन दिन में एक बार दुरजी करते हैं और हम एक दिन में तीन बार करते हैं
के दूसरों महीना निकल गया भगवान् आते नहीं दिखाई दिए तो दूसरे जी ने अपनी तपस्या को और कठिन कर दिया
कर दिया अब क्या कर दिया नव में नव में हंडी का नाव दिन में एक बार क्या करते हैं अवक्ष अवत जलका पान
करते हैं और नौ दिन दक जलना भी नहीं करते हैं कठोर तपस्या करते हैं कि कि जब वह तीन महीने पूरे
मोड बगवान आते नहीं दिखाई दिए तो छव्ते महीने में थोड़ा और तपस्य शकृण हुए तपस्य हनि
नी में छव्ते महीने में नियम को 12 दिन में एक बार
को 12 दिन में एक बार खाली आहार करते हैं क्या करते हैं
वायु का आहार एक बार ले लिया, फिर दुबारा सांस भी नहीं लेते हैं, वायु का आहार भी नहीं लेते हैं, चार महिने बीट गये, भगवान जब आते नहीं दिखाई पड़े, पाँचवे महिने में शुन्दर दुरुबजी महाराज ने अंगुष्ट के उपर खड़
चराचरश्याः खिलसत्वधामनाः विधेहितन्नो ब्रजनादिमोक्षम् प्राप्तावयम्ताम्सरण्यम्सरण्यम्
ऐसा प्राणायाम चढ़ाया कि समस्त प्राणयों का प्राण वायु अबृद्ध कर दिया,

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