हमने आगन नहीं बुहारा
चंचलमन को नहीं समभारा
कैसे आएंगी भगवान
हिदे हमारा पिघल नपाया जब देखा दुखियारा
इसी पंथ भूलेने हमसे पाया नहीं सहारा
सूखी है करुणा की धारा
कैसे आएंगी भगवान
अंतर के पट खोल देखलो ईश्वर पास मिलेगा
हर प्राणी में ही परमेश्वर का आभास मिलेगा
सच्चे मन से नहीं पुकारा
कैसे आएंगी भगवान
निर्मल मन हो तो रखो नायक शब्री के घर जाते
वाव वाव हो तो नोक मनने खुकमाए
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