प्रेवी भक्तों
गुरो
मच्छंदरनाथ
धारा लग्री में पहुँच जाते हैं
विक्षा मांके हुए
जब
सर्स्वती के द्वार पर गुरो मच्छंदरनाथ अलग जगाते हैं
तो आए एक बात के द्वारा,
एक भजन के द्वारा किस तरीके से बताया है
आईए सुनते हैं
तारा राजी रहे परिवार जोगी ने अलग जगाई
आखे सर्स्वती के द्वार जोगी ने अलग जगाई
वाँ सर्स्वती भी आई
और भिक्षा साथ में लाई
वाँ सर्स्वती भी आई और भिक्षा साथ में लाई
होबा लाग करन सत्कार जोगी ने अलग जगाई
आखे सर्स्वती के द्वार जोगी ने अलग जगाई माई
वा मन मैं दुखी सी होके न्यूं कहने लगी रो रोके
वा मन मैं दुखी सी होके वा कहने लगी रो रोके
हो मैं किसका करूँ
दुलार जोगी ने अलग जगाई आखे सर्स्वती के द्वार जोगी ने अलग जगाई
साधूने दई भभूती तेरी जागे किसमत सूती
साधूने दई भभूती तेरी जागे किसमत सूती
भे मैं लेले हाथ पसार जोगी ने अलग जगाई आखे सर्स्वती के द्वार
जोगी ने अलग जगाई
भिक्षाँजार दे माई
तेरी सक्तीत तो पर जगाई
तेरी सक्ती भूले भलेगी मारे कुल की बेले चलेगी
हो
मानु सुसील का उपकार जोगी ने अलग जगाई आखे सर्स्वती के द्वार
जोगी ने अलग जगाई और मेरे भिक्षाँजार दे माई
तारा राजी रहे परिवार जोगी ने अलग जगाई आखे सर्स्वती के द्वार
जोगी ने अलग जगाई