बाजो अम्दी ने यहो जान प्रेमी जी के
लिखलो सता बड़ी लगता रुठी के
माजो अम्दी ने जान प्रेमी जी के
लिखलो सता बड़ी लगता रुठी के
तुनोंले बहनी छाराचा बहते
सबोरु तहारा है नहा हची के
अपना कोमर के कला देखाई हा यढी हा
नहचा खाँ तेरे पाची
अपना कामर के काला बेखाई हो यही हो नाचे खाती पाचके
होई खूबे पाटी माज़ा लिहो रत भाँ रहो
धूम का लागा के मौने कल थी हता रहो
क्यों लगे काल को लागे
होई खूबे पाटी माझा ली हो राते भारा हो
ठूम का लगा के मौने कोई दिहा तारा हो
दिल के दोहराओ दिहा बढ़ाई चाओ की हो माँ अच्छिके
अपना कोमर के कला देखाई हो यही हाँ नाचे खाती बाचिके
अपना कोमर के कला देखाई हो यही हाँ नाचिके
ठूबे प्यार कोरी प्रेमी परिवार से
पिती रज की जाने जोनी भूली हो तू बहत के
अपना कोमर के कला देखाई हो यही हाँ नाचे खाती बाचिके
अपना कोमर के कला देखाई हो यही हाँ नाची