भाव!
देवारू दे लहाँ अधे मज़िया छड़के गई
नदी
ताप ददिया यत मारू भेला
अधे मज़िया छड़के गई
मज़ियों स छड़ू वन गई
नाही दी नारंज बचानी दियो चोराने
कसलेई यार बगी दाँचल खैरीयां
जिर्या बाज छड़ू दे
मीम बना बतलान मैनू मैं मैं के जमलून
मुड़ी साँ जान पिदारी लखी लखी रकवारी
जान पिदारी
मदी केच तपा
जग कवशिवान कुछ सुनिया हो सी मेरी तो अकावर की दिनी थी
नदी ना कमला करीगी माही
मेरी कही नलगुछ शुनी दिनी थी वाफिनाद में मुक देगर मुकाव
धड़ी दीद नहीं थाई मदी दिनी
कुछ खौफ खुदा दाखा
भरी दाख गया दाखा रुबाई ना दुल्बदा दीद दर्जावा
लगी
दुखी दिनी दे आती लाग लगी तरी मल मल शूले शानूले दभी
आता गयेंगे माम बाबली दीता
जेन याने
बलशे दरी
सद त्यार से मिठी पैजाव
जो अकत मेरी आजीती तिब तरी स्यदार उठली या चान लखी यकी दार दी
पर दिवानी
लगी अती कबदारी लगाई
वो जोद मेरा परदेशी
सक्वित्री ते बिद्या दिया से आजी
जिन खल्क दे लार गुलारी
दे दी
असरोग जिगल्मुनाली पर सोचा
लगी अती