इस सरीर का भोग मत कीजिए उपयोक कीजिए
उपयोक और भोग दोनों में बड़ा अंतर है
चिनी जरूरत से ज़्यादा खाओगे शूगर हो जाए
नमक जरूरत से ज़्यादा खाओगे ब्लग पेसर पढ़ जाए
भोजन जरूरत से ज्यादा करोगे तब क्या होगा हर चीज की एक मर्यादा बनी है तो मर्यादा को कभी मत भूलो
संसार में बस एक कई चीज है चाहे जितना करो कोई दिक्कत नहीं आएगी जानते हैं क्या बिना मात्रा की अगर
वस्तु है तो भजन भजन की जाहे जितना करो कोटत हो जितना अजय को भजन आपके जीवन पर परिवर्तन क्या लाएगा
भजन आपके जीवन में परिवर्तन क्या लाएगा कि महराज भजन परीवर्तन राज्यवजन बिचार को पता चल गया कि इसके
के हाथों हमारी मृत्यु होगी तो कंस ने क्या किया हां
कि सुखेंद्र कंस को पता चला कि इनके आठ में गडब से मेरी मृत्यु होगी तो कंस ने क्या किया अत्याचार
करने लगा और परिक्षित को पता चला कि आज के साथवे दिन मेरी मृत्यु होगी तो परिक्षित जी ने क्या किया सबकुछ
छोड़ करके गंदा के किनारे आ गए भजन यही करता है महाराज कंस ने और पाप करके और पाप करके और पाप करके
अपने जीवन की यात्रा दुरूह बना ली
और परिक्षित जी
सात दिन तक कथा सुन करके
अपनी यात्रा को महायात्रा
के रूप में परनित कर दिया
आज पूरा विश्व उनके बताये
मार्ग पर चल करके भौसागर को पार करवा
भजन यही करता है
भगवान की शन्निधी यही करती है
कि आपका बिवेग जाकरत रखती है
क्या करना है क्या नहीं करना है
इसका भली भाथ ही आपको ग्यान प्रदान करता है
और एक चीज़ और बताये
भजन जबन जस्ती करो
अगर मन न लगे न तब भी करो
काई है
कह बड़े भाग्यां पाईं सत्संगा
भाग्यो देन भहु जन्म समर्ज देन सत्संग मम चलवते पुरुषो यदावै
सत्संग का बड़ा महत्व है मारा
आपको अगर कहीं कोई भी जरूरी नहीं इतना बड़ा मंच हो
अगर कमरे में भी कहीं कथा चल रही हो ना तो वहाँ चले जाना सुनना
कोई भगवान की चर्चर कर रहा हो तो वहीं चले जाना सुनना
और सुनना और गोश्वामी तुलसी दाज जी ने पता है किसको सुनाया
अगर मान लीजिए आपको कभी सतसंग ना मिले ना तो एक आदत डाल लो बिना सतसंग के नहीं रहेंगे
आप कहो कि माराज मान लीजिए कभी कहीं कथा नहीं हो रही हो तो तो खुद ही कथा सुना नहीं हो
तो आप यह कहो कि माराज हम कहां से कथा सुनाएं हमको तो नहीं आती है
तो कोई बाहर वाले को तो सुना नहीं रहे हो घरवाले को आप चाहे जैसे सुनाओ कि चल जाए
अपने मन को सुना जाएगा
और हर जगा गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने आपको लिका है
मतिमंद तुलसीदास
अच्छा आप सतसंग कर आप एक बात और बता तू अगे बढ़ता हूँ
ये सतसंग की सिद्धी आप सिद्ध हो गए ये आपको कब पता चलेगा
भाई जब परिक्षा दो तो परिणाम जरूरी होता है ना
अगर result नहीं आया पास हुए कि फेल हुए अगर ये नहीं पता चला तो आनंद नहीं आता
तो आप अपने आपको शिद्ध कब मानना, जानते हो कब
उरामायड में तिवारी जी अंतिमोवा में जो है
गोस्वामी तुलसी दाजी लिए फल लिखा है
कौन सा
कहमोश्रम दीन नदीन नहीं तो
तुम समाले रघुबी
असमी चारे रघुबं समनी
खरोहु भिसाब भावभी
ये फल है कब
जब आपके अंदर नमरता आया
जब आपके अंदर जुकाव आजाए
वैसे मंच से किसी के भीसे में कहना नहीं चले
मगर ये सही है
मैं जो
सुखेंदर जी को देखता हूँ तो बड़ा प्रसन्न हो जाता हूँ
बृजेश को भी देखता हूँ
या इनके चारों बच्चो
महाराज
जब आपके अंदर जुकने की कला आजाएगा
अगर कोई चार बात बोले भी ना
तो मुस्कुरा करके हट जाओ
आप सिद्ध हो चुके हो
और ये सब कब होता है जब परमातमा की कृपा होती है
कंस उसको पता चला
कि मेरी मृत्तु आठने गर्ब से होगी
तो वह पगला अपने मृत्तु के विधान को बदलने के लिए चल पड़ा
और परिक्षित जी साथ दिन में अपना उदार कर गए
मृत्तु के पस्चात
भगवान गुरुकुल गए
और गुरुकुल से लोट करके है
मैंने बताया कि गुरुसेन को बुला करके गादी पर बिठा रही है
और राजा वो हो गए भगवान कारे देखना लगे
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