शाम की वही बात है
इंतिजार है जल रात से बिकरार है
इंतिजार है
खुद से खुद को कब तक ये कैसे कहे
इंतिजार है
गुमसुम गुमसुम इंतजार हमें कब तक रहें
फिर वही हाल है
बेहाल है
फिर वही आवाज है
वही सवाल है
खुद से खुद को कब तक ये कैसे कहें
गुमसुम गुमसुम इंतजार हमें
कब तक रहें
खुद से खुद को कब तक ये कैसे कहें
गुमसुम गुमसुम इंतजार हमें
कब तक रहें
आज नहीं
शाम है
ये नई
आवाज है