शिरे क्रेष्म जी योधिस्थर को पावन कता सुनाते हैं
ही पावन प्रेम से गाठा गाते हैं
हाँ,
नीच योणि में पड़ पित्रों को ये तो पार लगाती हैं।
एक अदशी के वरत की महिमा सारे पाप मिटाती हैं।
सारे पाप मिटाती हैं।
सत्युग में एक इंद्र सेन थे बड़े धार्मिक राज़ कुमार।
गोविंद नाम का जप करते थे प्रजाति करती जै जै का।
प्रजाति करती जै जै का।
नील गगन से उतर वहां पर नारद मुनि जी आते हैं।
भगतों कता सुनाते हैं।
शिरी क्रिष्ण जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं।
भगतों कता सुनाते हैं।
सबसे पहले इंद्र सेन ने नारद कोशीश नवाया
था। पिधी पूरवक पूजन करके आसन पर बिठलाया था।
आसन पर बिठलाया था।
आगमन का क्या कारण मुझे बताओ है भगवान। यग्य
क्रियाएं सपल मेरी हैं। मुझे आपके हुए दर्शन।
मुझे आपके हुए दर्शन।
सुनके है राहो जाओगे जो हम बात बताते हैं।
पिंद्रा एकादशी की पावन भगतों कथा सुनाते हैं।
शिरी क्रिषन जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं।
पिंद्रा एकादशी की पावन प्रेम से गाथा गाते हैं।
नारद बोले ब्रह्म लोक से मैं यम लोक गया था पदाँ।
यमराज की सभाम मैंने तेरे पिता का किया दिदा।
व्रत भंग के दोश से तेरे पिता सभामे आये थे।
तुम से कहने खातिर उनोंने ये संदेश सुनाए थे।
ये
संदेश सुनाए थे।
इंदिरा एकदशी व्रत कर लो पिता तुमारे चाहते हैं।
इंदिरा एकदशी की पावन भगतों कता सुनाते हैं।
शिरी क्रिष्ण जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं।
इंदिरा एकदशी की पावन रेम से गाथा गाते हैं।
इंदिरा एकदशी व्रत करके पुन जो नहीं कमाओगे।
स्वर्गलोक में अपने पिता को तुम ना पोचा पाओगे।
राजन बोले है नारद जी इसका कोई कहो उपाई। किस
पक्ष में किस तिती को किस विधी से किया ये जाय।
नारद मुन जी इंदिरा व्रत की सारी विधी समझाते हैं।
नारद मुन जी इंदिरा व्रत की सारी विधी समझाते हैं।
अश्विन मास के क्रिशन पक्ष में पितर देव काथर के ध्यान।
तश्मी के दिन श्रधा यूपत हो प्राते काल करो इस नाम।
प्राते काल करो इस नाम।
ख़त्धालू को दोपहर में फिर से नहाना होता है।
एक समय ही बोजन करता वो धर्ती पर सोता है।
वो धर्ती पर सोता है।
मन चित बुधे कर सैयम में ध्यान नहीं भटकाते हैं।
पिंदिरा एकदसी की पावन भगतों कता सुनाते हैं।
शिरी क्रिष्ण जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं।
पिंदिरा एकदसी की पावन प्रेम से गाधा गाते हैं।
रात गुजरते ब्रह्म मुहूर्त में दातुन कर मुह धोलेना।
एकदसी का नीम गरहन कर हरी नाम तो सुमर लेना।
ए नारायन मुझे शरण दे मंत्र जाप कर कहना है।
अरी वजन में लीन मगन हूँ निराहार ही रहना है।
श्राध करम को अपने घर में पंडित जी बुलवाते हैं।
पिंदिरा एकदसी की पावन प्रत की कथा सुनाते हैं।
श्री क्रिष्ण जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं।
पिंदिरा एकदसी की पावन प्रेम से गाथा गाते हैं।
शाली गाम शिला के प्रत जी बुलवाते हैं।
शाली गाम शिला के सनमुख विधी पूरवक शाद करें।
मध्यान का समय उचित है पितर देव का ध्यान करें।
अनन के पिंड को सूंग के उसको गाय को फिर तो खिला देना।
चक्षिन देकर ब्राहमनों को चर्णन शीष जुखा लेना।
ब्राहमनों को बड़ा सात्विक भोजन भी करवाते हैं।
भज़ों कथा सुनाते हैं।
भूप गंध से शिरी हरी का करना होता है पूजन
पितर देव को पुन मिलेगा करे जागरण और किरतन
सबेरे द्वाधशी को हरी के पूजा करनी है
मौन रहकर भोजन करना माला मन में सिमरनी है
माला मन में सिमरनी है
भिंदिरा एकदशी के व्रत से पितर पुन्य तो पाते हैं
भिंदिरा एकदशी के पावन व्रत की कथा सुनाते हैं
वही किर्षन जी योधिस्थर को पावन कता सुनाते हैं
भिंदिरा एकदशी की पावन प्रेम से गाता गाते हैं
इंद्रसेन को ऐसा कहकर नारद हो गए अंतर ध्यान
देर लगाई नाराजान तबी मंगाया सब सामान
तबी मंगाया सब सामान
उत्रों भाईयों राणियों को तबी पास बलवाया था
एकदशी के उत्तम वरत का अनुस्थान करवाया था
अनुस्थान करवाया था
कही कोई भी कमी रहे ना ऐसा ध्यान लगाते हैं
इंदिरा एकदशी के वरत की पावन कता सुनाते हैं
भगतों कता सुनाते हैं
शिष्ण जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं
इंदिरा एकदशी की पावन प्रेब से गाथा गाते हैं
ब्रामनों को दाख़िन देकर उत्तम भोज कराया था
पिताशरी को पितर रूप में ये पुन्य दिलवाया था
व्रत के पूरण होते ही वहाँ पूल गगन से बरसे थे
पितरों को वो मिल गया पुन्य जिन के लिए वो तरसे थे
वण्छ हमारा श्राध न भूल पितर देव भी चाहिए थे
पितर देव भी चाहिए थे वंच हमारा श्राध न भूल पितर देव भी चाहिए थे
पिंदिरा एकदशी के व्रत की पावन कता सुनाते हैं भगतों कता सुनाते हैं
किष्ण जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं
पिंदिरा एकदशी की पावन प्रेम से गाधा गाते हैं
इंद्रसेन के पिता गरुड पर बेठ के रखते कृष्णाराम
उनके मन को मिली थी त्रिप्ती पहुँच गये थे वैकुंडधाम
इंद्रसेन भी राज भोग कर स्वर्गलोक को चले गये
इंदिरा एकदशी व्रत के तप से कर के सब के भले गये
कर के सब के भले गये
इंदिरा व्रत के फल पाने से पाप नहीं रह पाते हैं
इंदिरा एकदशी के व्रत की पावन कता सुनाते हैं
बजदों कता सुनाते हैं
प्रिक्रिष्ण जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं
इंदिरा एकदशी की पावन प्रेम से गाधा गाते हैं
जिनके पितर भटक रहे हो उनको व्रत ये करना हैं
धर्म का पलडा भारी रहेगा हरी का नाम सुमिरना हैं
गुरु करन सिंग मक्डॉली में देते रहते दिव्य ज्यान
कमल सिंग शुब करम ही करना चूक न जाना है नादान
चूक न जाना है नादान
पितरों को सुक देने वाले सुक से जीवन बिताते हैं
इंदिरा एकदशी के व्रत की पावन कता सुनाते हैं
नज़ दो कता सुनाते हैं
पिरीक्रिषन जी योधिस्ठर को पावन कता सुनाते हैं
इंदिरा एकदशी की पावन प्रेम से गाता गाते हैं