हम धर्म,
निर्पेकशिता,
धर्म,
निर्पेकशिता का ढहून कर।
और धर्म,
निर्पेकशिता के नाम पर अधर्म को अपणाईने लगे जैस।
धर्म, निर्पेकशिता का अर्थ क्या होता है?
हिंदु धर्म, धर्म नहीं हैं।
ये आर्ट औफ लिविंग है।
ये जीने की कला है।
ये कोई पंथ नहीं है,
ये कोई संप्रदाय नहीं है,
ये जीने की कला है।
कोई किसी धर्म का हो,
जीना तो सब को आना चाहिए।
मनुष्य में पशु में कुछ तो फर्क होगा
मणुष्य को मनुष्य की तरय जीना चाहिए
कि पशु की तरह हैं
सनातम धरम तो जीने का
उपायं बताता है
कर्टव्यों के निष्ठा बताता है
आचरण की गरिमा बताता है
पर धर्मनिरपेकशता ने बहुत लुक्सान किया
जब तक भारत में राजा लोग धर्म सापेक्ष रहे बंदूम
जब तक राजाओं के दरबार में धर्म गुरू बैठते रहे
तब तक भारत विखरा नहीं
तब तक मुगल लोग पएर जमा नहीं पाये
और जब धर्मनिर्पेक्ष का ढोंग देश में आया
उससी समय बटबारे शुरू हो गये
मुगलों के आतंग शुरू हो गये
यदि सारे समाज को कोई धागा बान सकता है
कोई डोरी बान सकती है
तो वो एक मात्र धर्म है
धर्म कोई पूजा पढ़धती नहीं है
वो जीवन जीने की कला है
मानवता के मुल्य है
फिर सबको अपनी-अपनी उपासन करने की आजादी है
इसमें विरोद कहां है
जिसको निराकार भगवान अच्छे लगते हों बहुत बढ़िया
निराकार को भजले
जिसको साकार प्रिये लगते हों वो साकार को भजले
इसमें विरोद कहां है
जैसे दूद के भीतर घी व्यापक है
तो वो निराकार परमात्मा है
और उसी दूद को जमा दिया,
पिघला दिया,
माखन बन गया,
उससे घी बन गया,
वही साकार परमात्मा है
जिसको दूद पीना अच्छा लगता है वो दूद पी ले,
जिसको घी अच्छा लगता है वो घी ग्रहन कर ले,
इसमें विरोद कहां है, लड़ने की गुञ्जाईश कहां है,
लेकिन धर्म निरपेक्षता ने बहुत नुक्सान किया,
जो व्याक्याकार थे, वो भी बिक गये,
वो धर्म गन्थों की व्याक्या ऐसी करने लग गये,
जिससे उनके स्वार्थ की पूर्टी होए, उनका भला होए,
बाकि समाज गढ्डे में गिरता हो तो गिर जाये,
हमको बास समजनी होगी,
भागवत एक सुर्य के समान हैं,
उस सुर्य में हमारे अज्ञान का अधेरा दूर होना चाहिए,
हमें सनातन धर्म की गर्मा को समजना चाहिए,
और भाईया,
सुधार को अपने से
और अपने घर से शुरू करना चाहिए,
हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा।