यम्प्रवरजन्तमनुपेतमपेतकृत्यम् दैपायनोबिरहकातर्याजुहाव।
पुत्रेतितन्मैतयातर्वोभिनेदुस्तम्सर्वभोतहिर्दयम् उनिमानेतोस्मी।
बरहापीडम् नटवर्वपुह। कर्णयोकर्णिकारं। विभ्रदवासहकनककपिषं। बैजयन्तीम् चमालाम्।
रन्धान्वेणर्धर्सुधयः पूरयन्यगोपवृण्दें। वृण्दारण्यम् सपदरमणं प्राविषदगीतिकीर्ति।
श्रीस्वामिशुगदेव मुनिजी महराज्जिनुने महराज्जपरिक्षितको लक्ष करके सम्पूर्ण जगतको मानो इस कलुजुगमे कलुषित प्राणियोंके जीवनके मुक्तिकेले श्रीमद्भागवत्महापुराणके अठाराहजार इश्लोकोंसे रचित यह महा
बार बार प्रणाम करते है कैसे कि हर की कथा सुनाने वाले अमृत पानि कराने वाले तुमको लाखो प्रणाम
तुमको लाखो प्रणाम
बोली इसलिए स्वामि सुखदेव मुनिजी महराज की जय हो।
बोली इसलिए स्वामि सुखदेव मुनिजी महराज की जय हो।
बोली इसलिए स्वामि सुखदेव मुनिजी महराज की जय हो।
बोली इसलिए स्वामि सुखदेव मुनिजी महराज की जय हो।
बोली इसलिए स्वामि सुखदेव मुनिजी महराज की जय हो।
बोली इसलिए स्वामि सुखदेव मुनिजी महराज की जय हो।
बोली इसलिए स्वामि सुखदेव मुनिजी महराज की जय हो।
बोली इसलिए स्वामि सुखदेव मुनिजी महराज की जय हो।
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हम पार तेरा क्या पावे बस शीष जुका यही गावे
हरी दरश कराने वाले इश्वर ज्ञान कराने वाले तुमको लाखो प्रणाम
कराने वाले अम्रत पान कराने वाले हर की कथा सुनाने वाले तुमको लाखो प्रणाम
कराने वाले हर की तुमको लाखो प्रणाम
बोली स्वामी स्री सुगदेव मुने जी महराजे की श्री मत भागबत महापुराणे की
स्री किष्टद देव पायण बेदब्यास जी महराजे की रुकमणी रवण सरकारे की
जै जै श्री राधे
जै जै श्री राधे
जै जै श्री राधे
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