कब्रियों भी आँ
मेरी आँख में कि मेरी नज़र को खबर नहो
कब्रियों भी आँख मेरी आँख में कि मेरी नज़र को खबर नहो
मुझे एक रात नवाज दे
मगर उसके बाद सहर नहो
कब्रियों भी आँख मेरी आँख में
कब्रियों भी आँख में कि मेरी नज़र को खबर नहो
जरा और दिल के करीब आ तुझे दड़कनों में बसा लू मैं
कि बिछडने का कोई दर नहो
कब्रियों भी आँख मेरी आँख में
कभी धूप दे कभी बदलिया
दिलों जासे दोनों कभूल हैं
कभी धूप दे कभी बदलिया
दिलों जासे दोनों कभूल हैं
मगर उस नगर में ना पैद कर
जहां जिन्दगी की हवा नहो
कब्रियों भी आँख मेरी आँख में
कि मेरी नजर को खबर नहो
मुझे एक रात नवाज दे
मगर उसके बाद सहर नहो
कब्रियों भी आँख मेरी आँख में