वही गुरुजी का खालसा, वही गुरुजी की पते।
एहे कथा पाईराम कुईर भाबाग गुरुबक्षि
सिंजी वर्णन करके सिंगानु सुना रहे सं।
सिंग इसनू सुन के मानवच बड़ी खुशी मनौंदे हन।
ऐसी सुन्दर कथा सुन सुन के सिंगान दे मन तृत्त नहीं
हुंदे ते फेर होर अगे सुनन बास दे बेंक्तिया कर दे हन।
शिरी हरगोबिन जी जो योध्या दे श्रोमनी हन,
एहे उन्हां दी कथा चाल रही है।
पाई रामकुईर जी सिंगानू कथा सुनौन दे हन,
पाई साहब सिंग जी लिखारी लिखते हन के परशाद शाक
के जद गुरू जी अपने महलां वच बिराज रहे सान तां,
माता मरवाही जी अते नानकी जी ने पुछया,
महराज एहे युदद बखेडा किस तरह बाद गया,
पाथशाद इड्डा वड़ा लशकर तुहाडडे उते क्यूं चाड आया।
अपने महलां दी गल सुनके गुरू जी ने उननानू दस्या के पाथशादे
दो बहुत प्यारे कोडे पाई बिद्धी चन एक वारी काही बनके अते
दूजी वारी नजूमिया बनके लहोर दे किले दी कंद तपाके लै आया सी,
पाथशाने अपने कोडे बापस लेन वास्ते साडडे
उते पैंती हजार जवानादा लशकर पे दितता,
बड़ा कमसानद युद्ध होया जिस विच तुरक सेना सारी दी सारी मारी गई,
एहे गल सुनके माता नानकी जी ने हरान होके किहा,
तादपाई बिद्धी चांद बड़ा प्यानक चोर है,
जेड़ा के अगे कदी डिठा सुनेया नहीं,
एहे पाथशाने हजारा पहरेदारान दे फुंदेया सारेनों छलके कोडे ले आया,
इसनु कुछ डार ना आया,
गुरुजी ने कहा,
बिद्धी चांद बाल अते बुद्धी करके बहुत बड़ा है,
इसदे बराबरदा होर कोई नहीं है,
इसने पहला विप्रोपकार वास्ते चोरी कीती सी अते फिर शिरी गुरु
अर्जन साहब जी दी शरन आनके सिख बान किया सी और चोरी त्याग दिती सी,
यहे गल अस्चर्ज दी सुनके माता नानकी जी ने कहा,
महराज इसनु सादलो वो,
इस पासो सारी गल सुनियें के इसने ऐड़ा कठन काम किस तरह किता,
ताद गुरु जी ने सेवादार नु पेज के पाई बिद्दी चंद नु बुला लेया,
पाई बिद्दी चंद ने पहला गुरु जी दे चरना ते मठा
टेक गया अते फिर माता जी नु मठा टेक के बैठ गया,
गुरु जी ने किहा,
बिद्दी चंद तुहाड़े पासों शिरी नानकी जी
अते मरवाही जी यहे सुनना चाहूंदिया हानकी,
तुसी एड़े चोरी आदक दे कठन काम किस तरह किते सन,
बिद्दी चंद ने हाथ जोड के इस तरह दसया,
पहला जवानी समे चोरी आदक दे मैं बहुत काम करदा सी,
इक बार मैं कुछ मज्जां चरा के कारवाल ले आओंदा सी,
पिछो मज्जां वालेनों खबर हो गई ते ओहो,
बहुत सारे आदमी लेके मेरे पिछे आगे,
मैंनु चोले पिंड पास आनके बाहर मिल पई,
उस वेले मज्जानु पानी दे परे होए छपड विच बाडके,
मैं आप एक गुर्सिक जिस ता नाम अदली सी उस दे चरणा ते जाके पैगेया,
उसनु मैं अपनी चोरी दी गल सुनाके बेंती किती के,
आप प्रोपकारी संत हो,
मिन्नु इनना तो बचा लगो,
उपरंत आपना सिख कर लगो,
प्रोपकारी पाई अदली मेरी बेंती सुनके बहुत किरपालू हो गया,
मिन्नु कहा,
शिरी गुरु अर्जन देव जी दे चरणा दा आपने हिर्दे विच त्यान करके,
उनना दा सिम्रन कर,
ओहो गुरु जी तेरी लाज रखनें,
फिर तू एह चोरी दा काम छाड़के,
उनना दा सिख बान जावी,
पाई अदली जी दा उपदेश तारण करके,
मैं सत्गुरु जी नू अराधन कर लगा,
ताथ तक पिछो वाहर भी पहुँँच गी।
वाहर ने अदली नू कहा के, साड़ीयां
मजजां एक होर चोर लाएके इठे आया है,
जेकर तुसां उसनू वेख्या है ता सानू दसो।
पाई अदली ने कहा के कुछ मैंया इस छपड़ विच बैठीया हैं,
इन्ना तो बिना होर मैं कोई अग्ये जानदी नहीं देखे।
मजजी दे मालकाने कहा एहे मजजा चंगी तरह वेख लिया हण,
एहे साडिया नही हण,
साडिया सारीया मैंया कालिया हण पर एहे बूरिया हण.
इस तरह आख के वहो बाहर पिछे नू मुड़ गई.
जदो बाहर चली गई ता मैं पाई अदली जी नू कहा,
गुरुजी जाहरी कला वेखी है,
उन्हां दा सिम्रन करन नाल मेरी साइता
करके उन्हांने मिन्नं बचार लिया है.
पाई अदली ने मिन्नू कहा,
उन तू चोरी दा काम छाड़के गुरुजी रे जर्नी जापव,
तेरी कल्यान हो जावेगी,
तेरे बड़े पाग हो जानगे.
एहे अब्देश सुनके मैं छपड़ विच्चो मैंया
कड़के तरमशाला दे ग्रंथीनु दे दितियां
अथे उसनु बेनती कीती के एहे मज्जान ने मालकां दे करे पहुचादेओ.
वाहि गुरुजी का खालसा, वाहि गुरुजी की फते.
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