टूटके बिखरके चुड़की मनसलों की राह ताके ये दिल
खुआयशों की बारिशे है फिर भी क्यूं अन्धेरे से डरे ये दिल
लकीरे मिटे तो भी क्या राशनी बजे तो भी क्या
उमीद ना रहे तो भी क्या किरके उठपडेंगे हम
काँच को समेट के भी उंगलियों के जख्म ये बरते नहीं
तिन रात मैं ही सोचते हूँ तुछ को हूँ मैं आदरी या नहीं
खेर
लकीरे मिटे तो भी क्या राशनी बजे तो भी क्या
तेरा साथ ना रहे तो भी क्या किरके उठपडेंगे हम
कम ही तो है आज आसूं है कल खुशियों का मेला है
कम ही तो है तर्द से तो डर ना पुछ पल ही तो सहना है
कम ही तो है कम ही तो है
लकीरे मिटे तो भी क्या राशनी बजे तो भी क्या
नीद ना रहे तो भी क्या किरके उठपडेंगे हम
किरके उठपडेंगे हम
किरके उठपडेंगे हम