रो रहे थे सभी लेके बस हिच्किया
बाप भाई बहन सखियां हम जो लियां
दो सगी बहनों की ढोली उठनी लगी
दर्द से मम्ता की छाती फटनी लगी
माने रोकर कहा है मेरी बेटियो
हो रही हो विदाए मेरी बेटियो
तुम ही से हूं मुखातिब नहीं और से
सुनलो मा की नसीहत जरा गोर से
ये हकसन कोई कहानी सुनो
घर की घरवाली होती हेरानी सुनो
चाहे घर को बनाए चाहे घर को लुटाए
चाहे घर को बनाए चाहे घर को लुटाए
चाहे घर को बनाए चाहे घर को लुटाए
सब है घरवाली के हाथ में
सब है घरवाली के हाथ में
चाहे घर को बनाए चाहे घर को लुटाए
चाहे घर को बनाए चाहे घर को लुटाए
सब है घरवाली के हाथ में
रोती और सब को रोता हुआ चोड कर
चल पड़ी अपने अपने पिया के नगर
कुछ दिनों बाद सुस्राली से नाजमा
लिपती है मेरी चोटी बहन फातमा
कितने खत लिखे कितनी ही बेजी खबर
चाहे आ चाहे हम को बुला अपनी घर
तू ही आयी न चिठी ही तेरी ही बहन
बूल ही बैटी आपा को मेरी बहन
फातमा बोली शौहर से जाने करम
कब तक आखिर जबाब उनको देगे न हम
चलिये कलकता मिलने चले आपा से
लिख रहे हैं वो खत हमको एक अरसा से
कुछ जरूरी सा सामा लिये एक दिन
दोनों कलकता चल ही दिये एक दिन
देख कर ठाट उनका ये हैरान थे
पुखता घर घर में क्या क्यान सामान थे
फ्रिज, टीबी, पलंग, सोफा, मेज और चियर
एक नाकर इधर एक नाकर उधर
फात्मा वापस आई तो खामोश थी
बोला शोहर मैं शर्मिंदा तुम हो दुखी
घर में सामा नहीं तनपे जेवर नहीं
हम किसी तरह उनके बराबर नहीं
क्या करूँ मुझे को तनखवा है मिलती है कम
वरना खुशियों के बदले मैं देता नगम
फात्मा बोली सरताज ऐसा नहीं
और ही सोच में गुम हूं कीजे यकीं
धन, जेवर, नबंगना बढ़ा चाहिए
आप हैं तो मुझे और क्या चाहिए
लाप शिक्वा न लाए थोड में घर चलाए
सब हैं घरवारी के हाथ में
लाप शिक्वा न लाए थोड में घर चलाए
सब हैं घरवारी के हाथ में
या खुदा पहली तारीख आई जहां
लेके कागज कलम बैठा उसका मिया
लिखता है लिख के फिल काट देता है वो
ठक कर आखिर में सर धाम लेता है वो
फात्मा बोली हसके के किस्ता है क्या
बोला शोहर के सुनकर भी क्या फाइदा
बीबी बोली के मैं भी तो देखूं जरा
उसके हाथों से कागज कलम ले लिया
बोली सो जा ये सर दभाऊंगी मैं
आज से अपना घर खुद चलाऊंगी मैं
तीस दिन का खरच उसको मिलता रहा
और सलीते से घर उसका चलता रहा
बोला बस पर ही आफिस निकलता था मैं
पंधरा दिन पैदल ही चलता था मैं
या खुदा बीवी तो निकली नेमत बड़ी
उसके हाथों में दी तूने बरकत बड़ी
पूछा शौहर ने मैं जोड कर ठक गया
खरच कैसे चलाया बचा भी लिया
फातमा देर तक मुस्पुराती रही
फिर ये अपने मिया को बताती रही
छूटी दोबन को दी नौकरानी को दी
कपड़े धोती हूं बरतन हूं खुद माजती
थोड़ी थोड़ी कमी की हर एक चीज में
मा की बात आई अब मेरे तमहीत में
घर को जन्नत बनाए घर को दोधख बनाए
सब है घरवाली के हाथ में
घर को जन्नत बनाए घर को दोधख बनाए
सब है घरवाली के हाथ में
एक दिन फात्मा बोली जाने करम
हम किसी काबिल अब हो गए हैं इदर
हमने खाई है आपा की दावत कभी
कहिये तो हम भी दें उनको जहमत कभी
सुभो को रेल के दो थिकट लेते हैं
उनको लाने ये गलकता चल देते हैं
जैसे पहले हुए थे पशेमान ये
आज उससे देवादा हैं हैरान ये
क्यूंके राउनक थी घर में ना सामान थे
आपा और दूला भाई परेशान थे
आप असर को जुकाए खड़ी थी उधर
दूला भाई बताते रहे यूं इधर
नाज मा की बदौलत गई शान भी
घर है बंदक बिके घर के तामान भी
शान का वक्त जुटी देखाती रही
ये कमाई से जादा नुटाती रही
आज साउरत के चलते हैं नादार हम
सर से पातक हैं सागर करददार हम
लके छोटी बहन से वो रोनी लगी
मा की बातों से कुर्वान होनी लगी
उन ही लाई हूँ सारी मसीबत बहल
उन बेटी थी मा की नसीहत बहल
राज चाहे रचाए भीक चाहे मनाए
सब है घर्वान के हाथ में
राज चाहे रचाए भीक चाहे मनाए
सब है घर्वान के हाथ में