तो लीजे महरवानों ये रागनी दुरूबगत के इतिहास से और बात इस मौके से
ये राजा उत्तान पाध की बड़ी राणी अपने महराज
की सगाई अपनी चोटी बेहन से करवा देती है
धूमधाम से शादी हो जाती है डोला ले कर राजा उत्तान पाध चल देते हैं
कुछ दूर आयी थे आते आते एकदम से चोटी राणी
के मन में ख्याल आने लगे और कहार से कहती है
कहार जरा डोला रूपो महराणी डोला क्यों रूपा रही हूँ ने
महराज पहले आप से मुझे कुछ बाते करनी है
हाँ हाँ बोलो प्रिये तुम्हें क्या कहना है
राणाद आपके साथ मैं तब चलूँगी जब महल में आपकी बड़ी ढाणी नहीं रहेगी
क्या कहा?
नहीं नहीं ऐसाय मत करो राणी
तो मैं आपके साथ नहीं चलूँगी
तो मेरी बात एक सुनो राणी
कहतो अपनी बात
एरे गर में राण जगावन वाली बीर नहीं हो शाइनी
उसमें घरते महरे काण देजो चोक दूसरी राणी
गर में राण जगावन वाली बीर नहीं हो शाइनी
उसमें घरते महरे काण देजो चोक दूसरी राणी
जगावन वाली बीर नहीं हो शाइनी
पहरपणा में कुछ ना रहता जब वक्त आने लागे से
घरते महरे काण केने जब पीऊं सीला पाणी
आननद काया हो जा उसने हवालात में देखे
भोला वान करके काण दे बास हात में देखे
पर देखे वान करके पाणी
बीर नहीं हो शाइनी उसने घरते महरे काण दे जब सौक दूसरी राणी