ओम्भूर्भुवस्वः तत्सवितुल्वरेण्यम्
भर्गोदेवस्यधीमही धियोयोनः प्रचोदयात।
तूने हमें उत्पन्द किया, पालन कर रहा है तू।
तुझसे ही पाते प्राण हम।
भर्गोदेवस्यधीमही धियोयोनः प्रचोदयात।
दुख्यूं के कष्ट हरता है तू।
छाया हुआ सभी जगहा, तेरा तेज है महान।
सृष्टी की वस्तु वस्तु में, तू हो रहा है विद्यमान।
तेरा ही धर्ते ध्यान हम, मानते तेरी दया।
इश्वर हमारी बुद्धी को,
शिष्ट मार्ग पर चला।
प्रचोदयात।
यह गुर्वमंत्र को मन्त्रों में सर्वश्वेष्ट महामंत्र,
अर्थात गुरुमंत्र कहा गया है।
ओम्भूर्वुवस्वह तड्शवितुर्वरेञ्यं।
भर्गोदेवस्यदिमही धियोयोनः प्रचोदयात।
ओम्भूर्भुवस्वः तत्सवितुर्वरेञ्यम् भर्गोदेवस्यदीमही धियोयोनः प्रचोदया
ओम्भूर्भुवस्वः तत्सवितर्वरेञ्यम् भर्गोदेवस्यधीमही धियोयोनः प्रचोदया
ओम्भूर्भुवस्वः तत्सवितर्वरेञ्यम् भर्गोदेवस्यधीमही धियोयोनः प्रचोदया
ओम्भूर्भुवस्वः तत्सवितर्वरेञ्यम् भर्गोदेवस्यधीमही धियोयोनः प्रचोदया
ओम्भूर्भुवस्वः तत्सवितर्वरेञ्यम् भर्गोदेवस्यधीमही धियोयोनः प्रचोदया
ओम
सर्वव्यापी पर्मात्मा भूः प्राण स्वरूत भूः दुख नाशक स्वः सुक्स्वरूत तत् उस सवितु प्रकाश रूप वरेणय अपनानि योग्य भर्गो पाप नाशक
देवस्य दिव्य को धीमही हम् धारण करें धियो बुद्धी को योग् जो नहां हम सबकी प्रचो तयात प्रेरित करें
उस प्राण स्वरूत दुख नाशक सुक्स्वरूत श्रेष्ट
प्राण स्वरूत दुख नाशक सुक्स्वरूत श्रेष्ट
ते जस्वी पाप नाशक देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तर आत्मा में धारण करें। वो परमात्मा हमारी बुद्धी को सन्मार्क में प्रेरित करें।
वो परमात्मा हमारी बुद्धी को सन्मार्क में प्रेरित करें।
गायत्री के समान चारों वेदों में और कोई मंत्र नहीं।
सिद्ध की हुई गायत्री काम धेनों के समान है। गंगा शरीर के पापों को तूर करती है। गायत्री से आत्मा निर्मल होती है।
गायत्री के समान चारों वेदों में और कोई मंत्र नहीं।
साक्षात शक्ति का अवधार है।
गायत्री मंत्र का जप यदि शुद्ध चित्त होकर किया जाए तो जप करने वाला रोग ग्रसित ही नहीं होता।
उसके समस्त कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
जो जिग्यासु गायत्री मंत्र का प्रेम से और नियम्पूर्व कुछारण करते हैं।
उनके लिए ये मंत्र संसार सागर में तरने की नाव और आत्मप्राप्ति की सड़क है।
अयत्री युगशक्ति है। अनिगण को सुगण बनाने का साधन है।
गायत्री बुद्धि को काम से हटाकर राम में लगा देती है।
गायत्री बुद्धि को काम से हटाकर राम में लगा देती है।
ओ मुर्भु अस्वहा तत सवितुल वरेञ्यम् भर्गो देवस्य धिमही धियोयोन प्रचो दया।
ओ मुर्भु अस्वहा तत सवितुल वरेञ्यम् भर्गो देवस्य धिमही धियोयोन प्रचो दया।
अर्गो देवस्य धीमही धीयो यो नह प्रचो दया
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