बोला बोला बास की ना धग्गी
ये
अब घामना सहाता हो
तुहरा का कुछ ना बुझाता हो
बुझाता हो
अब घामना सहाता हो
तुहरा का कुछ ना बुझाता हो
पथर गरम बादी अनरम बाद
कबले पसीना पोचत रही
पोचत रही आरे पोचत रही
लिए
लिए
रंज ना हो खाई गउरा की बेना हकत रही
पानी बरसे बदरसुना कोई ना बावे छाया
जडस धरधर कापे दही भीज जला मोरे काया
जनी जई हा नाई हर गउरा माना भाता मॉड़ाई
पर नुगरा ना रही ना बावे छाया
छावाई देहबन मड़ाई मेटी दी आउरी थंधा खातिर पूलर लागावाई देहबन
जनमार भावतु वतन बनावा रत दिनी हो सोचत रही
सोचत रही आरे सोचत रही
रन्ज ना हो खाई गौरा ए गौरा ए गौरा
रन्ज ना हो खाई गौरा की बे ना हकत रही
रन्ज ना हो खाई गौरा की बे ना हकत रही
खाड़ी पहाडे जिनगे हमरो खाले भी तातावे
भंग धातूरा गांजा खाले मन के तुहरा भावे
बता है के बेची जारे जाकलाई बुधोनिया हमार सुना
जाहत पह बूता आता हां भूमाई बुरोनिया हमार सुना
बिगनमा तलबी हो खनाया जनाबी के सर्या के हमत का जानता रही
ज्यानत रही, अरे ज्यानत रही
रञजना हो खाए गऊरा, एक गऊरा, एक गऊरा
रञजना हो खाए गऊरा, की बेना खकत रही
परगम, रञजना हो खाए गऊरा, की बेना खकत रही